संसद हमला: पूर्व सांसद ने बयां किया खौफनाक मंजर, 'मेरे बगल से निकल गई गोली और शायद पत्रकार को लगी'
नई दिल्ली। संसद पर हुए आतंकी हमले को आज 18 साल हो गए हैं। पूरा देश इस हमले में जान गंवाने वालों को श्रद्धांजलि दे रहा है। 13 दिसंबर 2001 की वो खौफनाक सुबह जब पाकिस्तान से आए लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद को निशाना बनाया था। इस हमले में कुल 14 लोगों की मौत हुई थी जिसमें दिल्ली पुलिस पांच जवान, संसद की सुरक्षा में तैनात दो सुरक्षाकर्मी और एक माली ने अपनी जान गंवाई थी। जिस दिन हमला हुआ था, उस दिन संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। हमले के 40 मिनट पहले लोकसभा और राज्यसभा को स्थगित किया गया था। उस खौफ के मंजर को ओडिशा के पूर्व सांसद आज भी याद कर सिहर उठते हैं।
ऐसा लग रहा था किसी ने पटाखे फोड़े हों- पूर्व सांसद
ओडिशा के पूर्व सांसद खरबेला स्वैन बताते हैं, लगभग हर दिन सदन शुरू होने के कुछ ही मिनटों के भीतर स्थगित कर दी जाती थी, हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही नहीं चल पा रही थी। पूर्व सांसद कहते हैं, 'उस दिन भी लोकसभा स्थगित हो गई थी और मैं रेल भवन जाने के लिए गेट 1 (महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने मुख्य द्वार) से बाहर निकल आया। लेकिन तभी मुझे अचानक आवाजें सुनाई दीं जैसे किसी ने पटाखे फोड़े हों। मैंने कभी नहीं देखा था कि असल जीवन में गोलियां कैसे चलाई जाती हैं, इसलिए मुझे इस बात की जरा सी भी भनक नहीं लगी कि गोलियां दागी जा रही हैं।'
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'पौधों को पानी दे रहा माली अचानक जमीन पर गिर पड़ा'
वे उस खौफनाक मंजर को बयां करते हुए कहते हैं, 'जैसे-जैसे मेरी दाईं ओर से आवाज आ रही थी, मैं उस तरफ मुड़ता गया। मैंने जो पहला दृश्य देखा, वह माली पौधों को पानी दे रहा था और अचानक जमीन पर गिर गया। कुछ ही सेकंडों में एक सुरक्षाकर्मी जमीन पर गिर पड़ा। मुझे ऐसा शॉक लगा था कि एक भी मैं हिल नहीं पाया था। दूर से एक शख्स बंदूक लिए मेरी ओर बढ़ा और उसने फायर किया जो मेरे एकदम बगल से निकल गई और संभवतः एक रिपोर्टर को जा ली। फिर, एक सुरक्षाकर्मी मुख्य गेट के पीछे से चिल्लाया, ' भागो, आतंकवादी घुस गया। इसके बाद मैं कुछ कदम पीछे हटा और महात्मा गांधी की प्रतिमा के पीछे जाकर छिप गया। तब तक फायरिंग तेज हो गई थी, सुरक्षाकर्मियों ने जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी थी।'
'चारों तरफ से गोलियां चल रही थीं, संसद भवन का गेट बंद था'
पूर्व सांसद कहते हैं, 'इसके बाद मैं एक छोटे से पिलर के पीछे जा छिपा, उस वक्त चारों ओर से गोलियां चल रही थीं। लगभग 15 मिनट तक मैं पिलर के पास बैठा था। तब तक फायरिंग उस इलाके में कम हो गई थी, संसद भवन के गेट बंद थे। फिर मैं विजय चौक की ओर निकलने की कोशिश करने लगा जहां एक टैक्सी स्टैंड हुआ करता था। मैं उस ओर भागा और कुछ देर तक कार के पीछे छिपा रहा। उस दिन को मैं जीवन में कभी नहीं भूल पाऊंगा।'
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2001 में हुआ था संसद पर आतंकी हमला
बता दें कि जब आतंकी हमला हुआ था, करीब 100 सांसद और कई अधिकारी संसद के अंदर ही मौजूद थे। हमलावर गलत आईडी स्टीकर को कार पर लगाकर संसद के अंदर दाखिल हुए थे। आतंकियों के पास एके-47 राइफल समेत कई ग्रेनेड लॉन्चर्स, पिस्टल और ग्रेनेड्स मौजूद थे। आतंकी बड़ी साजिश को अंजाम देने के मकसद से संसद पहुंचे थे लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। कई घंटों तक चली गोलीबारी के बाद आतंकियों को मार गिराया गया था। संसद हमले के मास्टरमाइंड आतंकी अफजल गुरु को अदालत ने मौत की सजा सुनाई गई थी, जिसे फरवरी 2013 में फांसी दे दी गई।