पाकिस्तानी किसानों ने निकाला टिड्डियों का शर्तिया इलाज, नुकसान की जगह कर रहे हैं मोटी कमाई
नई दिल्ली- 27 साल बाद हुए टिड्डियों के सबसे बड़े हमले को लेकर भारत के कई राज्यों में हाहाकार मचा हुआ है। किसान फसलें चौपट होने की आशंका से परेशान हैं। लेकिन, पाकिस्तानी किसानों ने इस आफत को भी नुकसान की जगह मोटी कमाई का जरिया बना लिया है। सबसे बड़ी बात ये है कि इसके लिए न तो हानिकारक कीटनाशकों का इस्तेमाल हो रहा है, जिससे पर्यावरण को खतरा हो और न ही टिड्डियों को फसल बर्बाद करने का ही मौका दिया जा रहा है। सबसे बड़ी बात ये है कि सिर्फ किसान ही नहीं दूसरे सेक्टर से जुड़े लोगों की कमाई भी टिड्डियों की वजह से आजकल बढ़ चुकी है।
खतरनाक टिड्डियों का मामूली समाधान
पाकिस्तान के ओकरा जिले में टिड्डियों की समस्या से निपटने के लिए एक बहुत ही नए तरह का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। इस प्रोजेक्ट का मूल मंत्र ये है कि किसानों को टिड्डियों को पकड़ना होता है, जिसका इस्तेमाल मुर्गियों के चारे के रूप में किया जा रहा है। मुर्गियों को टिड्डी खिलाने से क्या फायद होता है, इसकी भी हम चर्चा करेंगे, लेकिन ये बात जान लीजिए कि मुर्गियों का चारा बनाने वाली मिलों में इन टिड्डियों की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई है और पोल्ट्री वाले भी इस चारे को बहुत ज्यादा पसंद कर रहे हैं।
पहले उड़ा मजाक, अब मान रहे हैं लोहा
पाकिस्तान में टिड्डियों को मुर्गी के चारा के तौर पर उपयोग करने का विचार सबसे पहले वहां के नेशनल फूड सिक्योरिटी एंड रिसर्च में नौकरशाह मोहम्मद खुर्शीद और पाकिस्तान एग्रीकल्चर रिसर्च काउंसिल के बायोटेक्नोलॉजिस्ट जौहर अली के दिमाग में आया। जौहर ने कहा है, 'ऐसा करने के लिए हमारा मजाक उड़ाया गया। किसी ने नहीं सोचा था कि लोग वास्तव में टिड्डियों को पकड़ सकते हैं और उन्हें बेच सकते हैं।' जबकि, खुर्शीद ने बताया कि उन्हें मई 2019 में यमन के एक उदाहरण से प्रेरणा मिली। अकाल का सामना करने वाले उस युद्धग्रस्त देश में आदर्श वाक्य था 'फसल खाने से पहले टिड्डों को खाएं।'
'टिड्डियों को पकड़ो, पैसे कमाओ, फसल बचाओ'
अपने इस प्रोजेक्ट को कामयाब बनाने के लिए उन्होंने नारा दिया, 'टिड्डियों को पकड़ो, पैसे कमाओ, फसल बचाओ।' इस प्रोजेक्ट के तहत किसानों को एक किलो टिड्डी पकड़ने के लिए पाकिस्तानी 20 रुपये (0.12 अमिरेकी डॉलर) का ऑफर दिया गया। खुर्शीद के मुताबिक टिड्डियां दिन में उड़ती हैं। रात में वो पेड़ों पर या खाली जमीनों पर सुबह होने तक मृतप्राय पड़ी रहती हैं। इसलिए रात में उन्हें पकड़ना बहुत ही आसान होता है। जब किसानों के समूह को टिड्डियों को पकड़ने के काम में लगाया गया तो उनका औसत एक रात में करीब 7 टन टिड्डी पकड़ने का था। उन्हें बाजार में मुर्गियों का चारा बनाने वाले मिलों को बेचा गया और हर एक किसान को एक रात की कमाई के तौर पर पाकिस्तानी 20,000 रुपये (125 अमेरिकी डॉलर) तक मिलने शुरू हो गए। नतीजा ये हुआ कि शुरू में 10 से 15 किसान ही आते थे, लेकिन जैसे ही कमाई की खबर फैली तीसरे दिन से ही इस काम के लिए सैकडों किसी पहुंचने लगे।
बहुत ज्यादा प्रोटीन की मौजूदगी
इससे पहले पाकिस्तान में पोल्ट्री ब्रीडर्स और जानवरों का चारा बनाने वाली कंपनियों ने कुछ हफ्तों तक ब्रॉयलर चिकन पर टिड्डियों वाले चारे के प्रभाव का आंकलन किया था, जो बहुत ही प्रभावी साबित हुआ। दरअसल, इनकी न्यूट्रिशनल वैल्यू काफी अच्छी होती है। क्योंकि, इसे बिना किसी कीटनाशकों के छिड़काव के पकड़ा जाता है। इसलिए इन्हें मछली, पोल्ट्री और डेरी वालों को दिया जा सकता है। आमतौर पर प्रोटीन के लिए पाकिस्तान में सोयाबीन का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें 45 फीसदी प्रोटीन होता है, जबकि टिड्डों में 70 फीसदी। इन्हें खाने के लिए तैयार करने में भी ज्यादा खर्च नहीं करना होता, क्योंकि इन्हें सिर्फ पकड़कर सुखाना होता है। जबकि, पाकिस्तान को सोयाबीन आयात करना पड़ता है।
कोरोना काल में रोजगार का जरिया
अब पायलट प्रोजेक्ट के अगुवा इस तरकीब के व्यापारिक प्रयोग पर दिमाग लगा रहे हैं। मसलन, जौहर का कहना है कि कोरोना वायरस महामारी के चलते लोगों के रोजगार खत्म हो गए हैं। उन सबको टिड्डियों को पकड़ने और बेचने के काम में लगाया जा सकता है। इस काम का दायरा ग्रामीण इलाकों में और रेगिस्तानी क्षेत्रों में बढ़ाया जा सकता है, जिससे कमाई भी बढ़ सकती है। खुर्शीद ने सरकार से भी मांग की है कि निजी पोल्ट्री और चारा मिलों को भी इसके इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। साथ ही जिन जगहों पर टिड्डियों को पकड़ने का काम होता है, वहां कीटनाशको के इस्तेमाल पर रोक लगनी चाहिए।