भारत के दबाव में पाकिस्तान की नई पैंतरेबाजी: कितना सच-कितना झूठ?
नई दिल्ली- पुलवामा हमले के बाद भारत के चौतरफा दबाव में पाकिस्तान ने यह दिखाने की कोशिशें फिर से शुरू कर दी है कि अबकी बार वह आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर बहुत ही संजीदा है। इसी कड़ी में पाकिस्तान सरकार ने कुछ आतंकी संगठनों की संपत्तियां जब्त करने की प्रक्रिया शुरू करने का दावा भी किया है। लेकिन, पाकिस्तान के इतिहास को देखते हुए तत्काल यह कहना बहुत ही मुश्किल है कि इनका अंजाम क्या होने वाला है?
पाकिस्तान के नए दावे का मतलब
पाकिस्तान सरकार की ओर से कहा गया है कि उसने यूनाइटेड नेशन की ओर से प्रतिबंधित और पाकिस्तानी आतंकवाद निरोधक कानून की लिस्ट में शामिल आतंकवादी गुटों की संपत्तियां जब्त करने का प्रावधान किया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के मुताबिक, "संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 2019 के आदेश (फ्रीजिंग और सीजर) का मकसद किसी खास व्यक्ति या संगठन के खिलाफ सुरक्षा परिषद की पाबंदियों और उसे लागू कराने की प्रक्रिया को सरल बनाना है।" बड़ी बात ये है कि पाकिस्तान ने अब मौलाना मसूद अजहर को अपनी सरकार की उस विशेष लिस्ट में दिखाया है।
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र से उसे ग्लोबल आतंकी घोषित करने की प्रक्रिया पहले से ही चल रही है। इनके अलावा पाकिस्तान की ओर से जिन आतंकी संगठनों पर कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू करने की बात की गई है, उनमें मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार लश्कर ए तैयबा और उसका चैरिटेबल मुखौटा जमात उद दावा एवं फलह ए इंसानियत फाउंडेशन (FIF) भी शामिल है। संयुक्त राष्ट्र के पाबंदी के अमल का मतलब है कि इन संगठनों और सरगनाओं की सभी चल-अचल संपत्तिया जब्त होंगी, उनके विदेश आवाजाही पर रोक लगेगी और उनके हथियार जब्त होंगे।
यह कार्रवाई से ज्यादा चालबाजी लगती है
दरअसल, पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान को इसलिए कार्रवाई करते हुए दिखाना पड़ रहा है, क्योंकि इसपर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अलावा फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) का दबाव भी काफी बढ़ गया था। 38 सदस्यीय यह अंतरसरकारी संस्था आतंकवादी संगठनों को आर्थिक मदद देने वालों पर कड़ी नजर रखती है। पिछले साल एफएटीएफ ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डालकर चेताया था कि वो आतंकियों को पहुंचने वाले आर्थिक मदद पर फौरन लगाम लगाए, वरना उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा। इसलिए पाकिस्तान ने कबूल किया है कि वह जो कार्रवाई कर रहा है, वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और एफएटीएफ (FATF) के मानकों के मुताबिक है।
आतंकियों पर कार्रवाई को लेकर पाक कितना गंभीर?
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को 2001 में ही प्रतिबंधित कर दिया था। 2002 में पाकिस्तानी कानून के तहत भी उसे आतंकी संगठन बताकर प्रतिबंधित किया गया था। लेकिन,उसका सरगना बेखौफ होकर भारत में आतंकवादी हमलों को अंजाम देता रहा है। पाकिस्तान अगर वाकई आतंकावादी वारदाताओं को लेकर गंभीर है, तो उसे मसूद अजहर और हाफिज को तत्काल पकड़ कर भारत को सौंपने में क्या दिक्कत है?
मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद पर कानूनी कार्रवाई की नौटंकी दुनिया पहले ही देख चुकी है। लश्कर पर पाबंदी लगी तो उसने जमात उद दावा और फलह ए इंसानियत फाउंडेशन (FIF) का मुखौटा ओढ़कर मानवता के खिलाफ काम करना जारी रखा। अभी जिस तरह की कार्रवाई की बात कही जा रही है, वह पहले तो पूरी तरह से नाकाम ही रही है। अगर पाकिस्तान उसके नए संगठनों की संपत्तियां जब्त करेगा तो वह फिर दूसरा संगठन बनाकर उगाही नहीं शुरू करेगा, इसकी गारंटी कौन लेगा? पाबंदियों के बावजूद न तो लश्कर रुका है और न ही जैश। उन सबने वहां की कोर्ट और लचर कानूनों का फायदा उठाया है। जानकार बताते हैं कि अगर पाकिस्तान सरकार आतंकवादियों की नकेल कसने के लिए वाकई तैयार है, तो उसे संसद से कानून बनाकर कार्रवाई करनी होगी, अन्यथा यह दुनिया की आंखों में धूल झोंकने के अलावा और कुछ भी नहीं है।