घाटी में पाक पोषित गुरिल्ला युद्ध को अंजाम देते थे कश्मीरी अलगाववादी!
बेंगलुरू। पाकिस्तान की नापाक हरकतों पर से पर्दा लगातार हटता जा रहा है। पूरे कश्मीर पर कब्जे के सपनों को पूरा करने के लिए पाकिस्तानी हुक्मरानों द्वारा 90 के दशक में शुरू किए गए वॉर ऑफ लो इंटेंसिटी यानी आधुनिक गुरिल्ला युद्ध में सहभागी अलगाववादी पाकिस्तान की अदृश्य सेना की तरह भारत के खिलाफ कश्मीर घाटी में काम कर रही थी। इसका खुलासा एनआईए के ताजा रिपोर्ट में हुआ है। हैरत की बात यह है कि पूर्ववर्ती सरकारें पिछले कई दशकों से उन्हें सरकारी खर्चे पर पाल-पोष रहीं थी।
एनआईए के खुलासे के मुताबिक कश्मीर में मौजूद अलगाववादी पाकिस्तानी हुक्मरानों के छोड़े गए तरकश के तीर थे, जो कश्मीर को अशांत करने के लिए भारतीय सेना पर पत्थर फेंकते थे। इनमें नजरबंद किए गए यासीन मलिक और आशिया अंद्रावी समेत सभी कश्मीरी अलगाववादी शामिल हैं, जो पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से पैसा लेकर भारतीय सेना के जवानों पर पत्थर फिंकवाने का काम करते थे।
कश्मीर घाटी को आंतक में झोंकने के लिए जम्मू एंड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के बैनर तले तथाकथित कश्मीरी अलगाववादी यासीन मलिक, दुख्तरान-ए-मिल्ली की चीफ आसिया अंद्राबी और हुर्रियत कांफ्रेंस के जनरल सेक्रेटरी मर्सरत आलम पाकिस्तानी हुक्मरानों के शतरंज के मोहरे थे, जो कश्मीर घाटी में रहकर पाकिस्तानी मकसदों को पूरा करने में लगे हुए थे। एनआईए के खुलासे में इसकी पुष्टि हुई है कि उपरोक्त कश्मीरी अलगावादियों को लश्कर-ए-तैयबा चीफ हाफिज सईद से बाकायदा फंड दिया जाता था, जो करोड़ों में बताया जाता है।
एनआईए के खुलासे के बाद कश्मीरी अलगाववादियों की पाक परस्ती का ही खुलासा नहीं हुआ है बल्कि इससे यह भी खुलासा हुआ है कि भारत की पूर्ववर्ती सरकारें कैसे आंखें बंद कर कश्मीरी अलवादवादियो को सेवा में लगी रहीं, जो भारत में रहकर पाकिस्तानी मंसूबों को पूरा करने में जुटी हुई थीं। यही नहीं, पूर्ववर्ती सरकारें कैसे पाकिस्तानी मोहरे और तथाकथित कश्मीरी अलगाववादियों को कश्मीर पर बातचीत के लिए टेबल ऑफर करने वाली थीं। ताजा खुलासे के बाद गृह मंत्रालय ने एनआईए को उपरोक्त सभी के खिलाफ अनलॉफुल एक्टिविटी (प्रिवेंशन) एक्ट के तहत मुकदमा चलाने का इजाजत देने जा रहा है।
गौरतलब है कश्मीरी अलगाववादियों का वजूद कश्मीर घाटी में वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद आया। इस युद्ध में पाकिस्तान बुरी तरह से हार गया था और उसके करीब एक लाख सैनिकों को भारतीय सेना के आगे आत्म समर्पण करना पड़ गया था। इसी युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान पाकिस्तान के नक्शे से हमेशा के लिए निकल गया था। पूर्वी पाकिस्तान यानी वर्तमान का बांग्लादेश वर्ष 1971 की लड़ाई के बाद ही वजूद में आया। पाकिस्तानी हुक्मरानों की पूरी हेकड़ी इस युद्ध में खत्म हो गई। पाकिस्तान को समझ में आ चुका था कि वह भारत और भारतीय सेना से प्रत्यक्ष करके कभी नहीं जीत पाएगी।
वर्ष 1971 की युद्ध में बुरी और शर्मनाक पराजय का बदला लेने के लिए काबुल स्थित पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी में पाकिस्तानी सैनिकों को हार का बदला लेने के लिए शपथ दिलाई गई और भारत के साथ अगले युद्ध की तैयारी की जाने थी, लेकिन पाकिस्तानी सेना वर्ष 1971 से 1988 के बीच अफगानिस्तानी कट्टरपंथियों के ऐसे उलझी कि 17 वर्ष बाद जाकर उबर सकी। तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति जरनल जिया-उल-हक अच्छी तरह जानते थे कि भारत के साथ एक और युद्ध लड़कर भी कुछ नहीं मिलने वाला है इसलिए वर्ष 1988 में जिया-उल-हक ने भारत के सीधे लड़ाई करने के बजाय ऑपरेशन टोपाक नाम से वॉर विद लो इंटेंसिटी की योजना तैयार की।
वॉर विद लो इंटेंसिटी की योजना के तहत पाकिस्तानी हुक्मरानों ने भारतीय कश्मीर के लोगों के मन में अलगाववाद और भारत के प्रति नफरत के बीज बोने के लिए यासीन मलिक, आसिया अंद्राबी, मसर्रत आलम और अली शाह गिलानी जैसे अलगाववादी कश्मीर घाटी में खड़े किए थे, जिन्हें पाकिस्तानी हुक्मरानों ने पाक अधिकृत कश्मीर में तैयार आतंकी संगठनों के जरिए फंड दिलाया जाता रहा। पाकिस्तानी हुक्मरानों का भारत के खिलाफ यह आधुनिक गुरिल्ला युद्ध था, जो भारत में रहकर भारत के खिलाफ युद्ध कर रहे थे, जिन्हें भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए उसने बाद में बंदूकें भी थमा दीं थीं।
पाकिस्तानी हुक्मरानों के ऑपरेशन टोपाक नाम से चलाए जा रहे वॉर विद लो इंटेंसिटी यानी गुरिल्ला युद्ध के खिलाफ भारत सरकार की पूर्ववर्ती नीतियां बेहद लचर थी, जिससे पूरा कश्मीर आतंकवाद की चपेट आ गया था। पाकिस्तान ऑपरेशन टोपाक के पहले और दूसरे चरण में सफल रहा और तीसरे चरण के तहत जम्मू और लद्दाख में पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने मिलकर घाटी से कश्मीरी पंड़ितों और शिया मुसलमानों को भगाया गया। पाकिस्तानी हुक्मरान ऑपरेशन टोपाक के चौथे चरण तक पहुंच चुकी थी, लेकिन भारत सरकार की नींद नहीं टूटी।
वर्ष 2014 में केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ मिलकर सरकार में शामिल हुई, लेकिन कश्मीरी अलगावादियों के प्रति पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की नरमी के भांपते हुए बीजेपी सरकार से अलग हो गई। क्योंकि बीजेपी चाहकर भी कश्मीर घाटी में शांति बहाली के प्रयासों में सफल नहीं हो रही थी। कश्मीर घाटी में शांति बहाली के जरूरी था कि वहां अस्थायी रूप से लागू अनुच्छेद 370 और 35 ए का खात्मा।
वर्ष 2019 में मोदी सरकार 2 के वजूद में आते ही बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर प्रदेश से संविधान प्रदत्त अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटा दिया और कश्मीर को अशांत करने में पाकिस्तानी हुक्मरानों द्वारा लगाए गए मोहरे यानी कश्मीरी अलगाववादियों को नजरबंद कर दिया गया। पाकिस्तानी हुक्मरानों द्वारा चलाया जा रहा ऑपरेशन टोपाक का अंतिम यानी चौथा चरण अपनी मौत मर चुका था। चौथे चरण के तहत पाकिस्तान वहां की आम जनता को भारत के खिलाफ बगावत के लिए तैयार करना था। इसकी झांकी दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में लगे नारे 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' 'कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी-जंग रहेगी' में पूरा भारत देख चुका है।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना पाकिस्तानी हुक्मरानों के गले से इसलिए नहीं उतर रहा है, क्योंकि यह उसकी योजना के मुताबिक नहीं हुआ था। मोदी सरकार से पूर्व पूर्ववर्ती सरकार के राजनेता अपनी आंखों के सामने सबकुछ होता हुआ देखकर भी चुप थे, क्योंकि उन्हें शायद वोट बैंक की अधिक चिंता थी, गठजोड़ की चिंता थी, सत्ता में बने रहने की चिंता थी। यही कारण था कि भारत सरकार के ढुलमुल रवैये के चलते कश्मीर में पाकिस्तानी हुक्मरानों द्वारा शुरू किया गया ऑपरेशन टोपाक बगैर किसी परेशानी के चलता रहा था, लेकिन मोदी सरकार द्वारा कश्मीर पर लिए गए फैसले ने पाकिस्तान के परोक्ष यानी गुरिल्ला युद्ध को भी नेस्तनाबूद कर दिया।
यही कारण है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान बौखलाए हुए हैं, क्योंकि पाकिस्तानी सियासतदानों द्वारा पाकिस्तान की अवाम को दिखाए गए पूरे कश्मीर पर कब्जा करने के सपने टूट गए थे। पाकिस्तान अच्छी तरह जानता है कि भारत की मजबूत सरकार यहीं नहीं रूकने वाली है और अब वह पाक अधिकृत कश्मीर पर वापस कब्जा पाने की कोशिश करेगी। इसीलिए पाकिस्तान हरसंभव कोशिश कर रही है कि भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीयकरण करने में कामयाब हो जाए और पिछले 5 अगस्त, 2019 से पाकिस्तान लगातार इसी कोशिश में भी लगी हुई है, लेकिन अभी तक कामयाब नहीं हो पाई है।
पाकिस्तानी पीएम इमरान खान कई बार घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ परमाणु युद्ध की धमकी दे चुका है, क्योंकि भारत के खिलाफ उसका समर्थन करने के लिए कोई भी देश तैयार नहीं दिख रहा है। यहां तक कि कोई मुस्लिम देश भी पाकिस्तान की दलील सुनने को तैयार नहीं हैं। घरेलू और अतंराष्ट्रीय दोनों मोर्चों पर बुरी तरह त्रस्त पाकिस्तान अभी भस्मासुर मोड पर है, जिससे निपटने के लिए भारत को एहतियात रखने की जरूरत है।
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