'पीरियड्स के दर्द से भी बड़ा था वो दर्द…'
पीरियड्स का दर्द शुरू होने के साथ ही मेरे मन में एक धक्क सी हो जाती थी.
ओह! इस बार भी मिस कर गई... अब सुबह बताना होगा और फिर वही कई दिनों तक तानों का सिलसिला शुरू हो जाएगा.
वो ताने, वो बातें जिनका जवाब नहीं दे सकते, जिनके लिए जिम्मेदार भी नहीं. फिर भी सुनने होंगे और हर बार सुनने होंगे.
शादी के कुछ महीनों बाद ही मुझे इन उलझन और तकलीफ भरे हालातों से गुजरना पड़ा था.
पीरियड्स का दर्द शुरू होने के साथ ही मेरे मन में एक धक्क सी हो जाती थी.
ओह! इस बार भी मिस कर गई... अब सुबह बताना होगा और फिर वही कई दिनों तक तानों का सिलसिला शुरू हो जाएगा.
वो ताने, वो बातें जिनका जवाब नहीं दे सकते, जिनके लिए जिम्मेदार भी नहीं. फिर भी सुनने होंगे और हर बार सुनने होंगे.
शादी के कुछ महीनों बाद ही मुझे इन उलझन और तकलीफ भरे हालातों से गुजरना पड़ा था.
हर महीने के पीरियड्स और बच्चा न होने को लेकर दिल चीरती हुई बातें हर रोज की बात हो गई थी. लाचारी तो ये थी कि न मैं पीरियड्स रोक सकती थी और न ताने.
सास के ताने...
शादी को एक महीना बीता था. मैं एक दिन सास के साथ रसोई में काम कर रही थीं. तभी सास ने बोला, "अब बच्चे के बारे में भी सोचो. फिर उम्र निकल जाएगी."
इतनी जल्दी मैंने बच्चे के बारे में सोचा नहीं था. पर फिर भी पहली बार तो मैंने इस बात को मुस्कुराकर टालने की कोशिश की.
जब उन्होंने दूसरी बार बोला तो मैंने 'हां सोचते हैं' बोलकर बात टाल दी. तब मुझे लगा कि घर के बड़े तो ऐसा बोलते ही हैं.
लेकिन, धीरे-धीरे ये बात आए दिन का किस्सा होने लगी. यहां तक कि वो कई बार बातों-बातों में प्रीकॉशन न लेने की सलाह भी देने लगीं.
निजी जिदंगी में ये उनका बार-बार का दखल मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था. जिस दिन उन्होंने पहली बार प्रीकॉशन पर सलाह दी थी तो मुझे बहुत अजीब लगा.
मेरे संबंध कैसे हों इस पर कोई कैसे बोल सकता है. ये मेरा निजी मामला था और इस पर बात करते मैं असहज हो जाती थी.
पीरियड निशाना बन गए
एक दिन जब मुझसे सहन नहीं हुआ तो मैंने अपनी सास को बता दिया कि मेरी नई नौकरी लगी है और मैं अभी बच्चा पैदा नहीं कर सकती. कुछ साल बाद तो करना ही है.
उस वक्त वह बिल्कुल चुप हो गईं और कुछ नहीं बोलीं. मुझे लगा कि शायद वो मेरी नौकरी की बात को समझेंगी और कुछ सालों के लिए रुक जाएंगी.
लेकिन, मेरा सोचना गलत था. मेरी बात का उनकी सोच पर कुछ खास असर नहीं हुआ.
अब तो जब भी कोई रिश्तेदार, पड़ोसी आते, कोई पूजा या फंक्शन होता तो घर में बच्चे की बात जरूर छिड़ती. 'दूधो नहाओ, पूतो फलों' का आर्शीवाद मिलना तो तय ही होता.
बेटा हो या बेटी इस पर लंबी चर्चा होती ही थी. दूसरों की दखलअंदाजी मुझे और ज्यादा परेशान करती थी.
उनके पास ऐसी-ऐसी लड़कियों के उदाहरण होते जो शादी के एक-दो महीने में ही प्रेग्नेंट होग गईं. इससे मेरे घरवालों की उम्मीदें और बढ़ जातीं.
रसोई के बर्तन बजने लगते...
ऐसा लगता था जैसे मेरे सिवा पूरी दुनिया को मेरा बच्चा चाहिए. सलाह देते-देते वो खुद को मुझ पर थोपने लगे थे.
धीरे-धीरे घरवालों का ये बोलना गुस्से और ताने में बदल गया. अब निशाना मेरे पीरियड्स बन गए.
पीरियड्स होने पर मैं पूजा नहीं करती थी तो सास को पता चल जाता था कि मुझे पीरियड हो रहे हैं. इसके बाद तो रसोई के बर्तन बजने लगते.
सबकुछ तेज आवाज में पटकने लगतीं. चार बार पूछने पर एक बात का जवाब देतीं जैसे मैं वहां मौजूद ही नहीं हूं.
मुझे शर्म महसूस कराने के लिए पहले ही रसोई के काम कर देंती जबकि रोज वो काम मैं ही करती थी.
कुछ न कुछ बुदबुदाती रहतीं जैसे इस बार भी एमसी (पीरियड्स) हो गई. पता नहीं कब बच्चा होगा.
बच्चा नहीं चाहते थे
पीरियड्स पर नाराज होना जैसे उनकी आदत बन गया.
जब भी पीरियड्स देर से आते तो वो खुश हो जातीं लेकिन जैसे ही हो जाते तो उनकी उम्मीदें टूट जातीं और उसका गुस्सा मुझे पर निकाल देतीं.
मेरे पीरियड्स मुझसे ज्यादा सास को याद रहने लगे थे. कितने दिन देर हुई वो सारा हिसाब-किताब करके रखतीं.
मुझे समझ नहीं आता था कि सास को कैसे समझाया जाए. मैं और मेरे पति दोनों उस वक्त बच्चा नहीं चाहते थे.
लेकिन उन्हें लगता था कि जैसे सिर्फ मेरे चाहने से सब हो जाएगा. अब तो जैसे-जैसे पीरियड्स का समय नजदीक आता, मेरी धकड़नें बढ़ने लगतीं.
शरीर के दर्द को तो बर्दाश्त कर लेती, लेकिन उन तानों का क्या. यही सोचकर एक-एक मिनट जैसे पूरे दिन के बराबर हो जाता. एक अनचाहा भय पैदा हो गया था.
पीरियड छुपाने की कोशिश
हर महीने पीरियड्स पर होने वाला ये व्यवहार मेरे के लिए असहनीय हो गया.
न मैं पीरियड्स रोक सकती थी और न अपनी सास को, इसलिए फिर मैंने अपनी पीरियड्स की डेट ही सास से छुपानी शुरू कर दी.
अब पीरियड्स होने पर मैंने पूजा करना जारी रखा, ताकि उन्हें भनक न लगे. मैंने सोचा चलो एक-डेढ़ महीना ही शांति से गुजर जाए.
एक बार तो दो महीने बीत गए और उन्होंने सीधे पूछा, ''नौकरी कब छोड़ रही हो. दो महीने से पीरियड्स नहीं हुए हैं तो बच्चा ही होगा.''
अब मेरे लिये नई मुसीबत पैदा हो गई. सच कैसे बोलूं मुझे समझ नहीं आ रहा था. मैंने सोचा कि जितने दिन बात छुपाउंगी उतनी मुसीबत बढ़ती जाएगी.
इसलिए एक दिन हिम्मत करके मैंने बता ही दिया कि मुझे पीरियड्स हो गए हैं. सास ने हैरान होकर सवाल किया, ''बच्चा गिर गया क्या?
मातम सा माहौल
मुझे सास के इस सवाल का बिल्कुल अंदाजा नहीं था. मुझे तो लगा था कि वो पहले की तरह नाराज़ होकर बोलना बंद कर देंगी.
लेकिन, अब इसका क्या जवाब दूं मुझे कुछ देर समझ ही नहीं आया.
इसलिए बिना ज्यादा सोचे समझे मैंने जल्दबाजी में बोल दिया कि हां, इसलिए तो पीरियड्स मिस हुए होंगे.
मेरे इस जवाब पर मेरी सास के पैरों तले की जमीन खिसक गई. महीनों तक घर में मातम सा माहौल बना रहा.
उनके लिए तो ये बहुत बड़ी घटना थी लेकिन मेरे लिए इस मातम में भी खुशी थी.
कुछ महीनों तक दुबारा बच्चे के लिए किसी ने नहीं बोला. मुझे थोड़ा ब्रेक मिल गया. हालांकि, ये खुशी ज्यादा दिन तक टिक नहीं सकी.
दो महीने तक पीरियड्स के दर्द बहुत सुखद अनुभूति कराते थे.
लेकिन, उसके बाद फिर से सास का वही पुराना राग अलापना शुरू हो गया और मेरे लिए शुरू हुआ पीरियड्स से भी बड़ा दर्द...