ओवैसी के बंगाल में चुनाव लड़ने के ऐलान से TMC से ज्यादा कांग्रेस-CPI(M)क्यों हैं परेशान
नई दिल्ली- बिहार चुनाव में पांच सीटें जीतने के साथ ही ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। पिछले दो चुनावों से वहां टीएमसी ने अपने दबदबे के सामने सभी दलों को बौना साबित किया है। उसकी ताकत की वजह ये है कि करीब 30 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले राज्य में ममता बनर्जी का मुस्लिम मतदाताओं पर जबर्दस्त प्रभाव है। यही वजह है कि पिछले तीन वर्षों से भाजपा ने उनपर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए घेरने की कोई कोशिश नहीं छोड़ी है। पिछले विधानसभा चुनाव तक बीजेपी का वहां कोई खास सियासी वजूद नहीं था, लेकिन मोदी-शाह के नेतृत्व वाली आक्रामक राजनीति और धारदार संगठन के दम पर उसने यहां की परिस्थियां अब बदल दी हैं। इसका असर 2019 के लोकसभा चुनाव में दिखा और पार्टी ने सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के पसीने छुड़ा दिए। लेकिन, अब एआईएमआईएम ने 2021 में वहां विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है तो ममता दीदी से पहले कांग्रेस और सीपीएम नेताओं के हलक सूखने लगे हैं।
ओवैसी की पार्टी पश्चिम बंगाल में डेरा डाले उससे पहले ही कांग्रेस और बंगाल में उसकी सहयोगी, लेकिन केरल की विरोधी पार्टी सीपीएम ने मिलकर उसका पत्ता साफ करने के लिए मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया है। पश्चिम बंगाल के चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं की बहुत ही अहम रोल है। करीब 30 फीसदी आबादी के साथ वह 294 सीटों वाली विधानसभा में 100 से लेकर 110 सीटों पर हार और जीत तय कर सकते हैं। बीजेपी को छोड़कर टीएमसी, कांग्रेस और सीपीएम सब मुसलमानों को अपना वोट बैंक सझती हैं। लेकिन, एआईएमआईएम की एंट्री के ऐलान ने इन सबका यह धार्मिक समीकरण बिगाड़ दिया है।
कांग्रेस और सीपीएम ने 2021 में भी विधानसभा चुनाव गठबंधन में लड़ने का फैसला किया है और उसको लेकर मंगलवार रात को रणनीति तय करने के लिए दो घंटे की दोनों दल के नेताओं की बैठक भी हुई है। प्रदेश के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने बताया कि, 'हमारे जनसंपर्क कार्यक्रम के तहत समुदाय के नेताओं और अल्पसंख्यक समुदाय के प्रमुख लोगों से बातचीत के साथ-साथ, दोनों दलों ने 18 दिसंबर को राष्ट्रीय अल्पंख्यक दिवस पर विशेष जनसंपर्क कार्यक्रम करने का फैसला किया है। ' इस बैठक से पहले प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी और प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष अब्दुल मन्ना ने मुस्लिम धार्मिक नेता तोहा सिद्दीकी से मुलाकात भी की और सेक्युलर ताकतों का साथ देने की अपील की। चौधरी ने कहा, 'फुरफुरा शरीफ में हम तोहा सिद्दीकी से मिले और अपील किया कि उन ताकतों से कंफ्यूज्ड ना हों जो बीजेपी की बी-टीम हैं। '
खुद की पार्टी के लिए मुस्लिम वोटों की गोलबंदी करने की कोशिश करते हुए अधीर रंजन चौधरी ने ओवैसी की पार्टी के बंगाल चुनाव लड़ने के बारे में कहा कि, 'एआईएमआईएम कुछ नहीं, बल्कि बीजेपी की बी-टीम है, जिसका एकमात्र उद्देश्य मुस्लिम वोटों को बांटना और सेक्युलर पार्टियों को नुकसान पहुंचाना है।' प्रदेश के कांग्रेसी और सीपीएम सूत्रों के मुताबिक ओवैसी की एंट्री से दोनों पार्टियां इसलिए चिंतित हैं, क्योंकि 2016 में इन दलों ने जो 76 सीटें जीती थीं, उनमें से 34 मुस्लिम बहुल जिलों मालदा, मुर्शीदाबाद और नॉर्थ दिनाजपुर में हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन की भी नजर इन्हीं जिलों पर है।
अगर 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणामों को देखें तो उस समय तक पश्चिम बंगाल के मुसलमानों ने तृणमूल कांग्रेस को ही खुलकर समर्थन दिया था, क्योंकि उन्हें लगा कि ममता बनर्जी ही वह ताकत हैं, जो प्रदेश में भाजपा की बढ़ती शक्ति पर ब्रेक लगा सकती हैं। लेकिन, ओवैसी के फैसले से मुस्लिम वोटों पर नजरें टिकाए रहने वाली इन तमाम पार्टियों का सारा गुना-गणित बदल चुका है।
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