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2050 आते-आते 'केमिकल' पीकर बड़े होंगे बच्चे!

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बेंगलुरु। बच्चा बीमार पड़ता है, तो माता-पिता डॉक्टर से सबसे पहले एक ही सवाल करते हैं, "मेरा बच्चा कुछ खाता नहीं, कमजोर बहुत है, सिरप लिख दीजिये।" डॉक्‍टर का क्या वो भी कैल्शियम, जिंक, आयरन आदि से युक्त सिरप महीने-दो महीने के लिये देते हैं। सिरप कोई भी हो, है तो यह कैमिकल ही! लेकिन क्या करें, आने वाले समय में हमें अपने बच्चों को यही कैमिकल पिला-पिला कर बड़ा करना होगा, अन्यथा, वे कुपोषण का शिकार हो जायेंगे। जी हां आज नहीं, कल नहीं, लेकिन 2050 तक तो पक्का। क्योंकि वातावरण में कार्बन डॉईऑक्साइड के प्रभाव और क्लाइमेट चेंज का बहुत बुरा असर बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ने वाला है। यह हम नहीं, लैनसेट प्लेनिटरी हेल्‍थ जर्नल में प्रकाशित ताज़ा रिसर्च कह रहा है। रिसर्च में कहा गया है कि अगर समय पर ऐक्शन नहीं लिया गया तो 2050 तक हर साल 25 लाख मौतें केवल जिंक, प्रोटीन और ऑयरन की कमी से होंगी।

Kid jumping in Water

इस रिसर्च में वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड का प्रोटीन, ऑयरन और जिंक की उपलब्धता पर प्रभाव और क्लाइमेट चेंज के लोगों के खान-पान पर असर पर शोध किया गया है। रिसर्च के अनुसार 2050 तक पूरे विश्‍व में कुपोषण की समस्‍या बढ़ेगी। प्रमुख खाद्य पदार्थों में कार्बन की मात्रा बढ़ने की वजह से उनमें मौजूद जिंक, प्रोटीन और ऑयरन की मात्रा प्रभावित हो रही है, जिसकी वजह से एनीमिया के मामले दुनिया भर में बढ़ रहे हैं।

वर्तमान परिस्थिति

विश्‍व स्वास्‍थ्‍य संगठन यानी डब्‍ल्‍यूएचओ के मुताबिक पूरे विश्‍व में 1.62 बिलियन लोग एनिमिक हैं। यानी कुल 24.6 प्रतिशत लोग कुपोषण का शिकार हैं। इनमें भी सबसे अधिक संख्‍या 5 साल से कम आयु के बच्चों की है। वहीं महिलाओं की बात करें तो 468.4 मिलियन महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं। वहीं कुपोषण की वजह से मौतों की बात करें, तो वर्तमान में हर साल 2.6 मिलियन बच्‍चों की मृत्यु कुपोषण की वजह से होती है।

क्या कहता है रिसर्च

आरटीआई इंटरनेशनल, इनवॉयरमेंटल एंड हेल्थ साइंस, अमेरिका के रॉबर्ट एच बीच और चान स्‍कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ बॉस्‍टन अमेरिका सैम्‍युअल मायर्स व उनके साथ चार अन्य वैज्ञानिकों के द्वारा किये गये इस रिसर्च के अनुसार जिस तरह से कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा वातावरण में बढ़ रही है, उसके और मौसम में हो रहे परिवर्तन के कारण अगले 30 सालों में गेहूं, चावल, दाल, जौ, आदि में प्रोटीन, जिंक और ऑयरन की मात्रा कम होती जायेगी। पूरे विश्‍व में औसतन प्रति व्‍यक्ति 19.5% कम प्रोटीन मिलेगा। वहीं प्रतिव्यक्ति ऑयरन की मात्रा में 14.4 प्रतिशत और जिंक की मात्रा में 14.6 प्रतिशत कमी दर्ज होगी। इस रिसर्च में केवल दाल, चावल और जौ को नहीं बल्कि सोयाबीन, आलू, मटर, मक्का, आदि कई अन्य खाद्य पदार्थों को भी शामिल किया गया है। और अगर सब्जियों को भी मिला लें तो सभी प्रमुख खाद्य पदार्थों में मौजूद पोषक तत्वों में 3 प्रतिशत की कमी दर्ज होगी।

malnutrition

कैसे पड़ेगा स्वास्थ्‍य पर प्रभाव

रिसर्च की मानें तो 2050 तक केवल जिंक की कमी के कारण पांच साल से कम आयु वाले 1 लाख बच्‍चों की मौतें प्रति वर्ष होंगी। यही नहीं मलेरिया, निमोनिया और डायरिया जैसी बीमारियां बच्‍चों को अपना शिकार आसानी से बना सकेंगी। कार्बन एमिशन पर अगर कोई ठोस ऐक्शन नहीं लिया गया, तो 30 साल बाद पूरी दुनिया में प्रोटीन की कमी से प्रति वर्ष मरने वाले बच्चों की संख्‍या 22 लाख होगी। वहीं पूरी दुनिया में ऑयरन की कमी से मरने वाले बच्‍चों की संख्‍या 2 लाख होगी। यही नहीं हर साल 4.5 करोड़ बच्‍चे कुपोषण का शिकार हो सकते हैं। यही नहीं उनके काम करने की क्षमता कम होगी उनका आईक्यू भी वर्तमान के बच्‍चों की तुलना में कम होगा।

कहां पड़ेगा सबसे अधिक प्रभाव

क्लाइमेट चेंज की वजह से होने वाले इस परिवर्तन का प्रभाव साउथ एशिया और मिडिल ईस्‍ट पर सबसे ज्यादा पड़ेगा। यानी भारत इसकी चपेट में जरूर आयेगा। वैसे भी कार्बन एमिशन में भारत का अच्‍छा खासा योगदान है। इसके अलावा अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और यूरोपीय देशों में भी कुपोषण के मामले बढ़ सकते हैं। रिसर्च में कहा गया है कि इसका प्रभाव उन देशों पर भी पड़ेगा जो कार्बन एमिशन के लिये बेहद कम जिम्मेदार हैं।

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English summary
According to the latest research published in Lancet Planetary Health Journal the impacts of CO2 and climate change will lead the world to the malnutrition. The world could see 2.5 Million deaths annually due to Zinc, Protein and Iron deficiency by 2050.
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