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Bihar Elections 2020: बाहरी दलों को भाव नहीं देता बिहार का वोटर, हर बार कर देता है आउट

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नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा चुनावों (Bihar Assembly Elections) का शंखनाद हो चुका है। अक्टूबर महीना और नवम्बर का पहला पखवाड़ा बिहार के लिए राजनीतिक रूप से बेहद ही गरम रहने वाला है। बिहार के चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच ही मुख्य मुकाबला है। कई बाहरी दल भी हैं जो चुनाव में पूरी ताकत से लड़ने उतरते रहे हैं लेकिन हर इनका प्रदर्शन खराब ही होता रहा है। बिहार के मतदाता वोट देते समय बाहरी दलों पर जरा भरोसा कम ही कर पाते हैं।

बाहरी दलों पर वोटर नहीं करता भरोसा

बाहरी दलों पर वोटर नहीं करता भरोसा

बिहार का वोटर दूसरे राज्य के दलों को ज्यादा भाव नहीं देता। ये दल अपने प्रत्याशी तो हर बार उतारते हैं लेकिन इन्हें जनता का आशीर्वाद नहीं मिलता। इनमें से कई दल तो ऐसे हैं जो अपने प्रदेश में सरकार तक बना चुके हैं या फिर अच्छा प्रदर्शन करते हैं। 2015 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो ऐसी 9 पार्टियों ने अपनी किस्मत आजमाई थीं। इनमें यूपी की प्रमुख पार्टियां सपा, बसपा, औवैसी की पार्टी एआईएमआईएम और झारखंड की जेएमएम जैसी पार्टियों ने अपने प्रत्याशी उतारे थे। 9 पार्टियों में किसी भी पार्टी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी।

बसपा ने उतारे सबसे ज्यादा प्रत्याशी

बसपा ने उतारे सबसे ज्यादा प्रत्याशी

उत्तर प्रदेश में कई बार सरकार बना चुकी बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने 2015 के विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा 228 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे लेकिन इनमें से किसी को भी जीत नहीं मिली। इनमें से 225 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। पार्टी को हासिल मतों का प्रतिशत भी निराशाजनक ही रहा था। पार्टी को प्रदेश में कुल 7,88,047 वोट मिले थे जो कुल पड़े वोट का मात्र 2.07 प्रतिशत ही था।

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सपा ने उतारे थे 135 प्रत्याशी, एक भी नहीं जीता

सपा ने उतारे थे 135 प्रत्याशी, एक भी नहीं जीता

समाजवादी पार्टी भी उत्तर प्रदेश का प्रमुख दल है। पार्टी के दिग्गज नेता मुलायम सिंह और उनके बेटे अखिलेश यादव दोनों मुख्यमंत्री रहे हैं, लेकिन बिहार में पिछले चुनावों में पार्टी का खाता भी नहीं खोल सकी। पार्टी ने 2015 के विधानसभा चुनावों में पहले तो महागठबंधन के साथ थी लेकिन बाद में अलग हो गई और 135 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए। नतीजे आए तो पार्टी शून्य पर सिमट गई। 134 प्रत्याशी तो अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। पार्टी को महज 1.01 फीसदी वोट मिले।

हालांकि सपा ने इस बार बिहार में चुनाव नहीं लड़ेगी। पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने ऐलान किया है कि सपा इस बार आरजेडी को चुनाव में सपोर्ट करेगी। वैसे जानकार ये बताते हैं कि पिछले नतीजों को देखते हुए सपा प्रमुख ने इस बार मैदान में नहीं उतरने का फैसला किया है।

बस चर्चा में ही रह गई ओवैसी की AIMIM

बस चर्चा में ही रह गई ओवैसी की AIMIM

जिस बाहरी दल ने खूब सुर्खियां बटोरी वो ओवैसी की AIMIM रहा। ओवैसी की पार्टी ने 9 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। इनमें छह प्रत्याशी उन सीमांचल की सीटों पर उतारे गए थे जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में आते हैं। उम्मीद थी कि मुस्लिम मतदाताओं का वो मिलेगा लेकिन बिहार के वोटर का दिल नहीं आया और पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। पार्टी को मात्र 0.21 प्रतिशत वोट मिले। हालांकि 2019 में हुए किशनगंज उपचुनाव में AIMIM के उम्मीदवार कमरूल होदा ने जीत हासिल की।

इस बार ओवैसी ने 50 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है। उनकी पार्टी ने पूर्व सांसद देवेंद्र यादव की पार्टी समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक) के साथ गठबंधन भी किया है। दोनों को उम्मीद है कि मुस्लिम यादव वोटबैंक को अपने पाले में लाकर चुनाव में सीटें निकाली जा सकती हैं। देखना है कि बिहार के वोटर का दिल इस गठबंधन पर कितना आएगा।

पड़ोसी राज्य की जेएमएम भी बिहार में बेदम

पड़ोसी राज्य की जेएमएम भी बिहार में बेदम

झारखंड का बड़ा राजनीतिक दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) भी बिहार में अपनी किस्मत आजमाता रहा है लेकिन हर बार उसे नाकामी ही मिलती रही है। भले ही झारखंड में जेएमएम के हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री हैं लेकिन बिहार की जनता उन्हें जरा भी भाव नहीं देती। पार्टी ने 2015 में 32 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इनमें वे सीटें थी जो झारखंड से सटे क्षेत्रों में हैं। बावजूद इसके पार्टी का खाता नहीं खुला। एक भी प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा सका। पार्टी को मिला वोट प्रतिशत तो और भी खराब था। महज 0.27 प्रतिशत वोट ही मिले।

जेएमएम के अलावा शिवसेना ने 73 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे लेकिन मात्र 0.55 प्रतिशत वोट मिले। ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक 9 सीटों पर लड़कर 0.02 प्रतिशत वोट ही पा सकी तो जम्मू कश्मीर पैंथर्स पार्टी 10 सीटों पर 0.02 प्रतिशत वोट पा सकी।

बाहरी पार्टियों का बेहद लचर प्रदर्शन

बाहरी पार्टियों का बेहद लचर प्रदर्शन

अगर आंकडों को देखें तो अब तक राष्ट्रीय पार्टी, राज्य स्तरीय पार्टियां और निर्दलीय उम्मीदवारों के अलावा कोई दूसरा दल बिहार में कोई खास असर नहीं दिखा पाया है। हां 2005 के चुनावों में सपा ने जरूर 4 सीटों पर सफलता हासिल की थी लेकिन उसके बाद पार्टी कुछ खास नहीं कर सकी।

2005 में फरवरी में हुए चुनाव में दूसरे राज्यों की सात पार्टियों ने 308 प्रत्याशी उतारे थे। इनमें केवल चार को ही जीत मिली थी। 2005 में ही अक्टूबर में फिर से हुए चुनावों में दूसरे राज्यों की सात पार्टियां थी लेकिन इस बार 202 उम्मीदवार इन पार्टियों ने उतारे। वहीं 2010 में 9 पार्टियों ने हिस्सा लिया और 365 उम्मीदवार उतारे। 2015 में दूसरे राज्यों की 9 पार्टियों के 280 उम्मीदवार मैदान में थे लेकिन एक भी नहीं जीत सका। दूसरे राज्य के अधिकतर उम्मीदवार अपने क्षेत्र में कोई असर नहीं दिखा पाते। हर बार बिहार की जनता इन्हें नकार देती है फिर भी पार्टियां अपने प्रत्याशी मैदान में उतारती हैं।

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English summary
other states parties performance in bihar assembly elections
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