"बीजेपी का विरोध करने का मतलब हिंदुओं का विरोध नहीं" - RSS के इस बयान के मायने क्या है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने कहा है कि बीजेपी का विरोध करने का मतलब हिंदुओं का विरोध नहीं है. रविवार को गोवा में संघ के एक व्याख्यान के दौरान भैय्याजी जोशी ने कहा, "हिंदू समुदाय का मतलब बीजेपी नहीं है. भाजपा का विरोध करने वाला हिंदू का विरोधी है, ऐसा नहीं मानना चाहिए. राजनीतिक लड़ाई चलती रहती है. इसको इसके साथ जोड़ कर नहीं देखना चाहिए.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने कहा है कि बीजेपी का विरोध करने का मतलब हिंदुओं का विरोध नहीं है.
रविवार को गोवा में संघ के एक व्याख्यान के दौरान भैय्याजी जोशी ने कहा, "हिंदू समुदाय का मतलब बीजेपी नहीं है. भाजपा का विरोध करने वाला हिंदू का विरोधी है, ऐसा नहीं मानना चाहिए. राजनीतिक लड़ाई चलती रहती है. इसको इसके साथ जोड़ कर नहीं देखना चाहिए."
इस बैठक के दौरान उन्होंने ये भी कहा, "हां, हिंदू, हिंदू का शत्रु बनता है, ऐसे उदाहरण हैं हमारे यहां. वो आज के नहीं हैं.एक जाति के लोग भी आपस में विरोध करते हैं."
उन्होंने आगे कहा, "हिंदुत्व का विरोध करना भी कभी-कभी पॉलिटिकल होता, हिंदुत्व का समर्थन करना भी कभी कभी पॉलिटिकल, होता है. मैं समझता हूँ हिंदुत्व और हिंदू समाज को इससे ऊपर उठना चाहिए."
यहाँ संदर्भ के लिए ये समझना ज़रूरी है कि आरएसएस के सर कार्यवाह भैय्याजी जोशी से इस कार्यक्रम में ये सवाल पूछा गया था, "क्या आज देश की परिस्थिति को देखकर लगता है कि हिंदू ही हिंदुओं का दुश्मन है?
बयान के मायने
आरएसएस से जुड़े और जानकार अमिताभ सिन्हा के मुताबिक उनके पूरे बयान को आरआरएस की विचारधारा से जोड़ कर ही देखना चाहिए.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "राष्ट्र सर्वोपरि है - यही है आरएसएस की मूल अवधारणा. व्यक्ति और पार्टी दोनों उसके बाद आते हैं. उसी परंपरा के साथ संघ आज भी चलता है. अगर राष्ट्र सबसे ऊपर है तो कोई भी राजनीतिक पार्टी दूसरे पायदान पर ही रहेगी ."
अमिताभ सिन्हा आगे कहते हैं, "राजनीतिक पार्टी एक रास्ता है, लक्ष्य नहीं है. इसलिए संघ का ये मानना है कि राष्ट्र को सर्वोपरि मानने वाले हर जगह रहें, चाहे वो किसी भी पार्टी में हो, ताकि वो अपनी ही पार्टी के अंदर प्रेशर ग्रुप बना कर रखें."
नागरिकता क़ानून और एनपीआर का विरोध
सोशल मीडिया पर उनके इस बयान पर काफी चर्चा चल रही है, ख़ास तौर पर बयान की टाइमिंग को लेकर.
तो फिर बीजेपी शाहीन बाग़ में नागरिकता क़ानून पर बैठे लोगों को, और केजरीवाल को राष्ट्र विरोधी क्यों कहती है?
इस सवाल पर अमिताभ सिन्हा कहते हैं, "भैय्याजी जोशी के इस बयान को दिल्ली चुनाव से जोड़ कर या नागरिकता क़ानून के विरोध प्रदर्शन से जोड़ कर बिल्कुल नहीं देखना चाहिए."
उनके मुताबिक़ जिस दिन केजरीवाल राष्ट्रहित की बात करेंगे वो संघी हो जाएंगे. लेकिन ऐसा उन्हें दिल से करना होगा, राहुल गांधी की तरह नहीं.
वहीं इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अक्षय मुकुल का कहना है कि भैय्याजी जोशी के इस बयान का ज़्यादा मतलब नहीं निकालना चाहिए. उनके मुताबिक संघ हमेशा से ऐसा करता आया है.
उन्होंने कहा, "लोगों को कंफ्यूज़ करने के लिए आरएसएस वाले पहले भी भाजपा से अलग बयान देते आए हैं. लेकिन अगर कोई ये सोचता है कि संघ और बीजेपी से दूरी पैदा हो गई है, तो ये ग़लत सोच है. मैं ऐसा नहीं मानता. नागरिकता क़ानून और उसके खिलाफ़ हो रहे प्रदर्शन को लेकर आरएसएस की राय अब तक सामने नहीं आई है. हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि नागरिकता क़ानून, एक तरह से संघ के एजेंडे का हिस्सा भी है."
हिंदू राष्ट्र की कल्पना
तो क्या भैय्याजी जोशी के इस बयान को हिंदू राष्ट्र की कल्पना से जोड़ कर देखना चाहिए?
मुकुल सिन्हा कहते हैं, "सबसे पहले ये जान लीजिए कि हिंदू कौन है? सुदर्शन जी के मुताबिक भारतीय भौगोलिक स्थिति में रहने वाले हर किसी को हिंदू माना जाना चाहिए, माना भी गया है. सिंधु के इस पार रहने वाला हर कोई हिंदू है. पूजा के नियम अलग हो सकते हैं. चाहे वो सनातन व्यवस्था में हो, चाहे कुरान पढ़ने वाले हो, चाहे वो बाइबिल को मानने वाले हों या फिर गुरुग्रंथ साहब को मानें- सभी के लिए एक शब्द का प्रयोग हो तो वो है हिंदू."
2025 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 साल पूरे हो रहे हैं. हमेशा से संघ, नरेंद्र मोदी के सरकार बनने की संभावना और हिंदू राष्ट्र साकार होने का सपना साथ-साथ देखते आए हैं. ये संघ के सामाजिक और सांस्कृतिक उद्देश्यों में से एक है. 2014 में आरएसएस ने अनुमान लगाया था कि नरेन्द्र मोदी अगले 10 साल देश के प्रधानमंत्री रहते हैं तो 2025 तक हिंदू राष्ट्र का सपना साकार हो सकता है.
क्या पहली बार दिया गया है ऐसा बयान
इससे पहले भी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण पर बयान देते हुए कहा था, "आरक्षण के विरोधी और उसके समर्थक अगर एक दूसरे की बात समझ लेंगे तो इस समस्या का हल चुटकी में निकाला जा सकता है."
उन्होंने कहा था, "एक दूसरे की भावनाओं को समझना चाहिए. ये सद्भावना जब तक समाज में पैदा नहीं होती तब तक इस मसले का हल नहीं निकल सकता."
उनके वक्तव्य की कांग्रेस और बसपा ने कड़ी निंदा की है.
एनडीए के साझीदार दल जैसे रामदास अठावले और रामविलास पासवान ने इस बयान पर अपनी असहमति दर्ज कराई है.
फिर बाद में इस बयान पर सफ़ाई भी आई. संघ के स्पष्टीकरण के मुताबिक़, "मोहन भागवत ने अपने बयान में इस मुद्दे पर चर्चा के लिए अपील की है."
संघ और पार्टी का भेद
भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का नाता पार्टी के अस्तित्व से भी पुराना है. क्योंकि भारतीय जनता पार्टी जिस जनसंघ से बनी है, उसका सीधा जुड़ाव आरएसएस से रहा है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक सदस्यों में शामिल माधव सदाशिव गोलवालकर ने अपने ज़माने में जनसंघ को आरएसएस का पूर्वपक्ष कहा था.
हालांकि गोलवलकर ने जनसंघ को आरएसएस के लिए नियुक्ति केंद्र बताया था जिसके मुताबिक़ अगर कोई जनसंघ में काम करता, तो अंत में वह संघ के लिए और संघ के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए काम कर रहा होता.
उस ज़माने में संघ के उद्देश्य राजनीतिक नहीं होते थे. तब वे सामाजिक और सांस्कृतिक थे. जिसके अंदर हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना भी थी.
संघ और भाजपा के रिश्ते को अमिताभ सिन्हा, गणित की थ्योरी से समझाते हैं. उनके मुताबिक आरएसएस सेट है और भाजपा उनके सबसेट हैं.
मीडिया में ये चर्चा ज़रूर चलती रहती है कि आरएसएस का बीजेपी पर कितना प्रभाव है? इसे समझने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल को देखना होगा.
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार छह साल तक चली थी. तब वाजपेयी और आडवाणी ने सोच समझकर एक रणनीति के अनुसार संघ को सरकार से दूर रखा. इस सरकार में ये दूरी बनाए रखने की कोशिश दिखती है.