महाराष्ट्र में राज ठाकरे के लिए मौका, क्या Hindutva Politics में लौटेगी MNS?
बेंगलुरू। पिछले 5 दशक से महाराष्ट्र में कट्टर हिन्दूवादी पार्टी रही शिवसेना जल्द ही महाराष्ट्र में किंगमेकर से किंग बनने जा रही है। वर्ष 1966 में शिवसेना की स्थापना से लेकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 के घोषित नतीजे से पहले तक महाराष्ट्र में कट्टर हिंदूवादी राजनीति का झंडा उठाने वाली शिवसेना अब कॉमन मिनिमम प्रोग्राम से बंध चुकी है, जिससे अब उसके लिए चाहकर भी हिंदूवादी राजनीति करना मुश्किल हो जाएगा।
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सवाल यह है कि महाराष्ट्र में खाली पड़ी हिंदूवादी राजनीति की उर्वर जमीन पर कौन वोटों की फसल काटेगा। कभी शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की परछाई कहे जाने वाले राज ठाकरे के लिए यह बढ़िया मौका है, क्योंकि उन्हें महाराष्ट्र में उन शिवसैनिकों का सहयोग भी मिलेगा, जो शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के निर्णयों ने नाराज हैं।
गौरतलब है महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे अपनी कट्टर छवि वाले नेता के रूप में मशहूर हैं। अधिकांश लोगों को MNS चीफ राज ठाकरे में बालासाहेब ठाकरे की छवि दिखती है। यही कारण है कि जब बालासाहेब ठाकरे ने वर्ष 2004 में पुत्र उद्धव ठाकरे को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया तो एक वर्ष के भीतर ही राज ठाकरे ने शिवसेना को छोड़ दिया था।
राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ने के एक वर्ष बाद ही 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नामक पार्टी के गठन की घोषणा कर दी। राज ठाकरे के शिवसेना से अलग होने के बाद शिवसेना दो धड़े में बंट गई और तब बालासाहेब ठाकरे की नीति, राजनीति और विचारधारा को मानने वाले ज्यादातर शिवसैनिक राज ठाकरे के साथ चले गए।
शिवसेना से इतर नई पार्टी के गठन का राज ठाकरे को आंशिक फायदा भी हुआ और पार्टी पहले ही विधानसभा चुनाव में 13 जीतकर बेहतरीन आगाज भी किया, लेकिन यूपी और बिहार से पलायित होकर महाराष्ट्र में जीविकोपार्जन कर रहे लोगों के खिलाफ मनसे की राजनीति बैकफायर कर गई और राज ठाकरे की पार्टी विधानसभा चुनावों में सिकुड़ती चली गई। मनसे 2014 से 2019 महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में क्रमशः 1-1 सीट पर सिमटी गई थी।
मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे को महाराष्ट्र में बसे बाहरी लोगों के खिलाफ राजनीति भारी पड़ गई थी, जिससे पार्टी का जनाधार तेजी छिटक गया। इससे मनसे के हाथ से न केवल यूपी-बिहार के लोगों के वोट छिटक गया, बल्कि मराठा वोट बैंक भी पार्टी के हाथों से खिसक गया जबकि राज ठाकरे अलग होने के बाद भी शिवसेना फल-फूल रही थी, क्योंकि बीजेपी जैसा बड़ा राजनीतिक दल उसके साथ खड़ा था।
चूंकि अब समय बदल चुका है और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सत्ता के लिए शिवसेना की कोर हिंदूवादी राजनीति से समझौता करके घोर विरोधी दलों के साथ सरकार में शामिल हो रही है तो राज ठाकरे के लिए महाराष्ट्र में हिंदूवादी राजनीति की उर्वर खाली जमीन पर कब्जा करने और फसल लहराने का पूरा मौका है।
राज ठाकरे के लिए यह इतना मुश्किल नहीं होने वाला है, क्योंकि अगर कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना गठबंधन की सरकार 6 महीने भी सत्ता में रह गई तो शिवसेना हिंदूवादी राजनीति से उतनी ही दूर हो जाएगी, जैसे अयोध्या में भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाकर कांग्रेस हिंदु बहुसंख्यकों से दूर हो चुकी है।
महाराष्ट्र में हिंदूवादी राजनीति का झंडा उठाने के लिए सही वक्त यही है, क्योंकि महज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने के लिए शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे ने जिन परस्पर विरोधी पार्टियों के साथ गलबहियां की है, उससे पिछले कई दशकों से हिंदूवादी राजनीति को झंडा लेकर चलने वाले हजारों शिवसैनिक बेहद नाराज हैं।
इसकी बानगी महाराष्ट्र शिवसेना की युवा इकाई नेता रमेश सोलंकी हैं, जिन्होंने कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने जा रही शिवसेना से नाराजगी के चलते अपना इस्तीफा दे दिया है। मनसे अध्यक्ष ऐसे शिवसैनिकों को न केवल अपना मंच दे सकते हैं बल्कि महाराष्ट्र में हिंदूवादी राजनीति के झंडे को बुलंद कर सकते हैं।
शिवसेना से इस्तीफा दे चुके रमेश सोलंकी ने महाराष्ट्र में बने नए गठबंधन के प्रति रोष जताते हुए एक के बाद कई ट्वीट किए। अपने पहले ट्वीट में इस्तीफा देते हुए सोलंकी ने कहा, 'मैं शिव सेना और युवा सेना के सम्मानित पद से इस्तीफा दे रहा हूं। मैं आदी भाई (आदित्य ठाकरे) का शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्होंने मुझे मुंबई, महाराष्ट्र और हिंदुस्तान के लोगों की सेवा करने का मौका दिया।
अगले ट्विट में सोलंकी लिखते हैं, 'पिछले कुछ दिनों से लोग मुझसे मेरे पक्ष के बारे में पूछ रहे हैं। मैं स्पष्ट कहना चाहता हूं, जो श्रीराम का नहीं है (कांग्रेस) वो मेरे किसी का काम का नहीं है। सोलंकी शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के निर्णयों से इतने आहत थे कि उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट एक साथ किए।
माना जा रहा है कि नाराज शिवसैनिकों को यह बात सबसे बुरी लगी होगी जब मुंबई के हयात होटल में सजाई गई मिनी असेंबली में कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी का नाम लेकर शिवसेना के विधायकों को शपथ दिलवाए गए, क्योंकि शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे और सोनिया गांधी के बीच छत्तीस का आंकड़ा था, लेकिन शिवसैनिक सत्ता के लिए हयात होटल में सोनिया गांधी की कसम खा रहे थे, जिनके हमेशा खिलाफ बालासाहेब ठाकरे बयानबाजी करते रहे।
बालासाहेब ठाकरे ने वर्ष 2004 लोकसभा चुनाव के बाद सोनिया गांधी को यूपीए का प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने का विरोध किया था। वर्तमान में महाराष्ट्र में चौथे नंबर की पार्टी महाराष्ट्र ही नहीं, देश की राजनीति में मरणासन्न अवस्था में पहुंच चुकी है और शिवसेना चीफ सत्ता के लिए पार्टी के मूल विचारों को छोड़क कांग्रेस के साथ सरकार बनाने जा रहे हैं।
शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के फैसले पर नाराजगी जताते हुए सोलंकी ने आगे लिखा, वर्ष 1992 में 12 साल की उम्र में शिवसेना के संस्थापक और हिंदू ह्रदय सम्राट कहे जाने वाले बालासाहेब ठाकरे से प्रभावित हो गए और 1998 में आधिकारिक रूप से शिव सेना से जुड़ गए, लेकिन अब जबकि शिवसेना परस्पर विरोधी पार्टियों के साथ महज सत्ता के लिए हिंदुत्व विचारधारा से समझौता कर लिया है, तो उनके लिए शिवसेना में बने रहने की कोई वजह नहीं रह गई है। माना जा रहा है कि रमेश सोलंकी अकेले नहीं है, जो शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे से नाराज है, यह संख्या लाखों में हो सकती है।
उल्लेखनीय है शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजे आने के बाद पिछले तीन दशक पुरानी सहयोगी बीजेपी के साथ सरकार बनाने के लिए इसलिए इनकार कर दिया, क्योंकि शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनने की धुन सवार थी।
उद्धव ठाकरे ने आरोप लगाए कि चुनाव से पूर्व बीजेपी के साथ 50-50 फार्मूले के तहत सरकार बनाने को लेकर समझौता हुआ था, लेकिन बीजेपी अब वादे से पलट गई है। हालांकि बीजेपी राष्ष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और पूर्व महाराष्ट्र मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना के दावों को बुरी तरह से खारिज कर दिया।
शिवसेना की नई शर्तों पर महाराष्ट्र में सरकार गठन के लिए बीजेपी तैयार नहीं हुई तो शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे ने परस्पर विरोधी पार्टी एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने की जुगत में जुट गई। शिवसेना उनके साथ सरकार बनाने की कवायद में जुटी थी, जिनके खिलाफ चुनावी कैंपेन करके वोट हासिल किया था और जिनको दूसरी बार हराकर सत्ता के निकट पहुंची थी। कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना के बीच वैचारिक ही नहीं, राजनीतिक धारा भी विपरीत थी, लेकिन एक महीने की रस्साकसी के बाद अब तीनों दल महाराष्ट्र में सरकार बनाने की ओर बढ़ रही हैं।
ऐसी सूचना है कि कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की गठजोड़ वाली सरकार आगामी 28 नवंबर को महाराष्ट्र में शपथ ग्रहण कर सकती है। तीन दलों वाली गठबंधन सरकार का नेतृत्व उद्धव ठाकरे करेंगे, लेकिन अनुभवहीन उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में सरकार कैसे चलाएंगे, यह बड़ी बात होगी।
महाराष्ट्र की जनता के जनादेश का अपमान करके परस्पर विरोधी दलों के साथ सरकार में शामिल हुई शिवसेना जनता से कैसे संवाद करेगी यह बड़ा सवाल होगा। क्योंकि जनता अच्छी तरह समझ चुकी है कि शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे ने अह्म के टकराव के चलते सत्ता से बाहर फेंक चुके दलों के साथ सरकार में शामिल होकर लोकतंत्राकि प्रक्रिया का मजाक बनाया है।
शिवसेना के नेतृत्व में महाराष्ट्र में बनने वाली नई सरकार की अवधि कितनी लंबी होगी, इसका जवाब तो भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है, लेकिन इतिहास बताता है कि परस्पर विरोधी दलों के मेल वाले गठबंधन सरकारों की उम्र अक्सर छोटी होती हैं। बिहार में महागठबंधन इसका बड़ा उदाहरण है।
इसके अलावा में कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीस की गठबंधन सरकार को भी इसी खांचे में रखा जा सकता है। अगर महाराष्ट्र में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना सरकार जल्दी गिरती है, तो सबसे अधिक किसी दल का नुकसान होगा तो वो दल होगी शिवसेना। इस अंतराल में अगर राज ठाकरे ने प्रदेश में हिंदूवादी राजनीति में अपनी जड़ें जमा लीं तो शिवसेना बिना आत्मा वाली एक शरीर भर रह जाएगी।
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