क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

नज़रिया-इतनी आलोचना क्यों झेलते हैं पीएम मोदी?

जब प्रधानमंत्री ने हर छोटे से छोटे फैसले का क्रेडिट लेंगे तो आलोचना भी उन्हीं के हिस्से आएगी.

By राजेश प्रियदर्शी - डिजिटल एडिटर, बीबीसी हिंदी
Google Oneindia News
बनारस के विश्वनाथ मंदिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
Twitter
बनारस के विश्वनाथ मंदिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

वे काशी में हों तो कष्ट है, क्योटो में हों तो क्लेश है, बोलें तो परेशानी है, न बोलें तो दिक्कत है.

अगर वे ख़ुद को यूपी का बेटा बताते हैं तो लोग पूछने लगते हैं कि उनकी कितनी माएँ हैं, भारत माता, गौमाता और गंगा मैया ...

बिहार में तक्षशिला, भिखारी की स्वाइप मशीन या नारियल-अनानास जैसी मानवीय भूलों को नज़रअंदाज़ करने वाले उनके प्रशंसकों को लगता है कि कुछ लोग उन्हें बेवजह निशाना बना रहे हैं.

वैसे आलोचना झेलने के मामले में पीएम ने ख़ुद तो पर्याप्त सहिष्णुता दिखाई है लेकिन उनके आलोचकों को भयावह 'किलर इंस्टिंक्ट' का सामना करना पड़ रहा है.

नरेंद्र मोदी
Getty Images
नरेंद्र मोदी

कुछ लोग मोदी के इतने ख़िलाफ़ क्यों हैं? ये मासूम सवाल कई लोगों के मन में उठता है. जो लोग सोशल मीडिया पर मोदी विरोधियों की माँ-बहनों के प्रति तत्काल सम्मान प्रकट करते हैं, ये लेख उनके लिए नहीं है.

आगे की बात उनके लिए है जो समझना चाहते हैं कि इतने लोकप्रिय, भारी बहुमत से जीतने वाले नेता की इतनी आलोचना क्यों?

इसकी शुरूआत तभी हो गई थी जब संसदीय लोकतंत्र वाले देश में एनडीए या बीजेपी की नहीं, मोदी सरकार बनाने की मुहिम शुरू हुई थी. 2014 में 'हर हर मोदी' के नारे लगे, उसके नौ महीने बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव हारते ही 'थर थर मोदी' सुनना पड़ा.

जॉर्ज बुश ने 9/11 के बाद कहा था-- 'या तो आप हमारे साथ हैं या फिर दुश्मनों के.' भारत में ऐसी ही रेखा 2014 में खींची गई जो लगातार गहरी होती गई है.

नरेंद्र मोदी
Reuters
नरेंद्र मोदी

देश में नया व्याकरण गढ़ा गया जिसमें भारत माता, मोदी, जय श्रीराम, देशभक्ति और गौमाता सब पर्यायवाची बना दिए गए. मुसलमान, पाकिस्तान, सेक्युलर, वामपंथी और राष्ट्रदोही उनके विपरीतार्थक शब्द.

ये अपने-आप या ग़लती से नहीं हुआ, मोदी में आस्था रखने वाले आस्तिक और उन पर सवाल उठाने वाले नास्तिक, इस तरह पूरे देश को दो ख़ेमों में बाँटा गया, बीच की जगह ख़त्म हो गई जहाँ कोई मुद्दे के आधार पर आज समर्थक और कल विरोधी हो सकता हो.

वामपंथ को मिटाने की कसम क्यों खा रहा है आरएसएस?

मुसलमान
Getty Images
मुसलमान

ऐसा इस विश्वास के साथ किया गया कि आस्तिक बहुसंख्यक हिंदू हैं इसलिए नास्तिकों के समूल विनाश से सत्ता मज़बूत होगी, मतलब राष्ट्र मज़बूत होगा, अर्थात हिंदू मज़बूत होगा तो हमारा नेता भी मज़बूत होगा क्योंकि नए व्याकरण के मुताबिक़ सभी एक ही हैं.

लेकिन यूपी और हरियाणा के जाट इसे ऐसे नहीं देखते, गुजरात के पटेल असहमत हैं, महाराष्ट्र के मराठा नाराज़ हैं, दलितों के अपने दुख हैं. एक नेता, एक धर्म, एक राष्ट्र के कोरस में कई विवादी स्वर हैं.

गधा भी हमें प्रेरणा देता है: नरेंद्र मोदी

आलोचकों को वामपंथी, मुसलमान, देशद्रोही जैसे खाँचों में डालकर पटखनी देने की कोशिश अक्सर कामयाब और कई बार नाकाम होती है, बीच-बीच में महिलाएँ और पूर्वोत्तर वाले भी ख़लल डालते हैं. जितने लोग वामपंथी बताए जा रहे हैं, अगर सच में होते तो सीताराम येचुरी यूपी में मोदी को कड़ी टक्कर दे रहे होते.

हिंदू ज्यादा बच्चे पैदा करें , मुसलमानों की नसबंदी की जाए, उनका मताधिकार छीन लिया जाए... ऐसी बातें सत्ता संरचना में ज़िम्मेदारी के पदों पर बैठे लोग कर रहे हैं. उन्हें न तो रोका गया, न दुरुस्त किया गया.

योगी आदित्यनाथ और नरेंद्र मोदी
YOGIADITYANATH.IN
योगी आदित्यनाथ और नरेंद्र मोदी

आदित्यनाथ, गिरिराज सिंह, साक्षी महाराज और साध्वी निरंजन ज्योति जैसे लोग जो कुछ कहते रहे हैं, उनसे 'सबका साथ, सबका विकास' वाले असहमत हों ऐसा आज तक तो नहीं दिखा.

श्मशान, गधा, अनानास, नारियल के कोलाहल के बीच, 'मेक इन इंडिया', 'स्टैंडअप इंडिया', 'स्किल्ड इंडिया', स्मार्ट सिटीज़ में बताने लायक कुछ नहीं हुआ? दो करोड़ लोगों को रोज़गार देने के वादे का क्या हुआ?

नारियल जूस पर कौन ग़लत - राहुल या मोदी

मोदी की आलोचना के पीछे बेतहाशा बढ़ाई गई उम्मीदों का दरकना असली वजह है, यह बात उनके प्रशंसक मानने को तैयार नहीं दिखते.

देश में सत्ता के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति प्रधानमंत्री पद को व्यावहारिक तौर पर अमरीकी राष्ट्रपति की कुर्सी में तब्दील कर चुका है, उसे देश की हर कामयाबी का श्रेय लेना है, खादी की बिक्री हो या सेना की बहादुरी या फिर नोटबंदी, फिर नाकामियों का बोझ कौन उठाएगा?

महात्मा गांधी वाले कैलेंडर में मोदी
PIB
महात्मा गांधी वाले कैलेंडर में मोदी

सूचना-प्रसारण मंत्रालय के कैलेंडर के बारहों पन्नों पर जिसकी तस्वीर छपेगी, खादी के कैलेंडर पर जो गांधी की जगह चरखा चलाएगा, जो पूरे देश को अपने मन की बात बताएगा, जो राज्यों के चुनाव अपने नाम पर लड़वाएगा. वो आलोचनाओं से कैसे बच पाएगा?

यही नहीं, पार्टी भी 'छोटाभाई' के कुशल नेतृत्व में, 'मोटाभाई' के निर्देशों के तहत चल रही है. शांता कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी जैसे लोग देशद्रोही और वामपंथी कहकर खारिज नहीं किए जा सके हैं.

मोदी से पहले तक लोग व्यवस्था को दोषी ठहराते थे, व्यवस्था का मतलब था--बहुत सारे लोग. जब सारी ताक़त एक ही व्यक्ति के पास सिमटने लगी हो तो ऐसा ही होगा, मोदी जी इससे अच्छी तरह वाकिफ़ हैं, पर शायद उनके प्रशंसक नहीं.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
opinion Why PM Modi criticized by opposition
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X