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नज़रिया: क्या भाजपा समझती है गणतंत्र में चुनाव जीतने का मतलब?

भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव को युद्ध की तरह लड़ रही है. प्रचार में रूपक भी युद्ध के, उखाड़ देने, बंगाल की खाड़ी में फ़ेंक देने के इस्तेमाल किए जाते हैं. त्रिपुरा से दूर उत्तर प्रदेश में कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के नेता दानव परिवार के हैं.

अव्वल तो देवता और दानव या राक्षस जैसे शब्दों का अब इस्तेमाल करना ही अब असभ्य माना जाता है लेकिन जो ऐसा कर रहे हैं.

By BBC News हिन्दी
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मोदी का पोस्टर
SAJJAD HUSSAIN/AFP/Getty Images
मोदी का पोस्टर

"माणिक सरकार को या तो पश्चिम बंगाल या केरल या फिर पड़ोसी बंग्लादेश में शरण ले लेनी चाहिए."

ये बयान उत्तरपूर्व में भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े नेताओं में से एक माने जानेवाले और असम की भारतीय जनता पार्टी सरकार के मंत्री हेमंत बिस्वा सर्मा का है.

क्या त्रिपुरा में तख़्तापलट हुआ है? क्या माणिक सरकार की नागरिकता रद्द कर दी गई है? फिर उन्हें क्यों त्रिपुरा छोड़ने के लिए कहा जा रहा है? क्या चुनाव में हार जाने के बाद पराजित दल के लोगों को राज्य से भगा दिया जाना चाहिए?

माणिक सरकार अभी कल तक त्रिपुरा के मुख्यमंत्री थे. उनके साथ यह अभद्रता क्यों की जा रही है? इस बयान के पीछे के विचार को भी समझना चाहिए. सरकार बंगाली हैं, क्या इसलिए बंगाल ही नहीं बांग्लादेश जाने का मशविरा उन्हें दिया जा रहा है?

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त्रिपुरा में भाजपा का कार्यक्रम
EPA/STR
त्रिपुरा में भाजपा का कार्यक्रम

इस बयान में बांग्लादेश को भारत के प्रतिलोम के रूप में पेश किया जा रहा है. जो भारत में रहने लायक नहीं, उसे बांग्लादेश भगा दिया जाएगा. इसके साथ सर्मा ने यह भी कहा कि वो बंगाल या केरल जाएं क्योंकि वहाँ सीपीएम की मौजूदगी थोड़ी बहुत है. तो क्या अब मैं वहीं रह सकूँगा जहाँ मेरी रक्षक राजनीतिक पार्टी ताक़तवर है?

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त्रिपुरा की हिंसा बताती है भाजपा की मूल प्रवृत्ति

क्यों सर्मा के इस बयान को मजाक़ नहीं माना जाना चाहिए और क्यों उसे गंभीरता से लेना चाहिए- यह चुनाव में जीतने के बाद से त्रिपुरा में भाजपा के लोगों के द्वारा की जा रही हिंसा से ही स्पष्ट हो जाता है.

चुनाव में जीत हासिल करने के बाद भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता जो कुछ भी कर रहे हैं, उससे भारत के लोगों को अंदाज हो जाना चाहिए कि इस पार्टी की मूल प्रवृत्ति क्या है. सीपीएम के सदस्यों पर हमला किया गया है, उसके दफ़्तरों में तोड़-फोड़ की गई है और उन पर कब्ज़ा किया जा रहा है.

मानिक सरकार
ARINDAM DEY/AFP/Getty Images
मानिक सरकार

और यह त्रिपुरा से बहुत दूर तमिलनाडु में भाजपा के नेताओं के बयानों और उनकी हरकतों से भी साफ़ हो जाता है. त्रिपुरा में लेनिन की मूर्तियों को ढाह देने से उत्साहित होकर तमिलनाडु के भारतीय जनता पार्टी के नेता पेरियार की मूर्तियों को ध्वस्त करने का इरादा ज़ाहिर कर रहे हैं. पेरियार की एक मूर्ति को तोड़ने की कोशिश भी की गई है.

तमिलनाडु में "आत्म सम्मान' आन्दोलन चलानेवाले और ब्राह्मणवादी प्रभुत्व को चुनौती देने वाले पेरियार की प्रतिमा के ध्वंस के इरादे के पीछे की हिंसक विचारधारा को पहचानने की ज़रूरत है.

भारतीय जनता पार्टी के नेता समाज सुधारक और जाति प्रथा के विरोधी पेरियार को जातिवादी कहकर उनके विरुद्ध गाली-गलौज तक उतर आए हैं.

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अल्पमत का सम्मान ही संसदीय जनतंत्र है

भारत में प्रतिवर्तन के लिए चुनाव रास्ता हैं. परिवर्तन को क्रान्ति नहीं माना जाता रहा है. चुनाव से होनेवाले बदलाव लगातार चलने वाली एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बहुमत किसी एक बिंदु पर हमेशा के लिए स्थिर नहीं हो जाता. बहुमत आज अगर एक विचार के इर्दगिर्द है तो कल किसी और विचार के आसपास इकठ्ठा हो सकता है.

इसलिए वे पार्टियां भी जो क्रांति की विचारधारा में विश्वास रखती हैं, जब चुनाव लड़ती हैं तो परिवर्तन को एक असाधारण कृत्य के रूप में पेश नहीं करतीं, रोजमर्रा की गतिविधि की तरह पेश करती हैं और ग्रहण भी करती हैं. इसीलिए भारत चीन नहीं है. भारत में अब तक चुनावों को इसी तरह लड़ा जाता रहा है और पार्टियाँ एक दूसरे को प्रतिद्वंद्वी मानती रही हैं, शत्रु नहीं.

चुनाव में बहुमत हासिल करनेवाले दल को सरकार बनाने के बाद भी विधानसभा या संसद में अल्पमत का प्रतिनिधित्व करनेवाली पार्टी से लगातार संवाद करना होता है. उन दलों के प्रतिनिधि महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य होते हैं और कुछ के तो अध्यक्ष भी. इसलिए चुनाव किसी को नेस्तनाबूद करने के इरादे से कभी लड़े नहीं जाते. इसीलिए एक सीट पाने वाले दल के सदस्य की आवाज़ भी सुनी जाती है. यही संसदीय जनतंत्र है.

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लेनिन की मूर्ति तोड़े जाने के बाद त्रिपुरा में कई विरोध प्रदर्शन हुए
MANJUNATH KIRAN/AFP/Getty Images
लेनिन की मूर्ति तोड़े जाने के बाद त्रिपुरा में कई विरोध प्रदर्शन हुए

जनतंत्र के बारे में प्रसिद्ध कहावत है कि वह बहुमत का शासन नहीं है बल्कि ऐसी व्यवस्था है जो अल्पमत को सुरक्षित करती है. लेकिन भारतीय जनता पार्टी की मामला अलग है. वह कुछ ऐसे पेश आ रही है मानो वह भारत में क्रांति कर रही हो या उस पर कब्जा करने के अभियान में जुटी हो.

अगर ऐसा न होता तो त्रिपुरा में विजयोन्माद में वह पराजित सीपीएम के दफ्तरों पर हमला न करती, उसके कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट न करती और लेनिन की मूर्तियाँ न तोड़ती. तमिलनाडु में उसके नेता पेरियार की प्रतिमा तोड़ने के अपने इरादे का फौरन इजहार न करते.

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जीत का मतलब विरोधी को उखाड़ने का लाइसेंस नहीं

गृहमंत्री ने अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए त्रिपुरा में हिंसा को रोकने के लिए राज्यपाल से बात की. लेकिन राज्यपाल उस हिंसा के बीच जिस तरह के बयान दे रहे थे उससे साफ़ था कि वे चतुराई से हिंसा को जायज़ ठहरा रहे हैं.

प्रधानमंत्री मोदी
ARINDAM DEY/AFP/Getty Images
प्रधानमंत्री मोदी

प्रधानमंत्री से अभी भी यह उम्मीद करनेवाले बचे हैं कि उन्हें हिंसा का विरोध करना चाहिए. लेकिन जो अपना चुनाव प्रचार हिंसक भाषा में करने में आनंद लेता रहा हो और समाज में हिंसक प्रवृत्ति को उकसावा देता रहा हो, उससे यह आशा करना खुद को झूठा दिलासा देने जैसा है. इस हिंसा पर चिंता तो दूर, इसे विचारधारा की जीत कहकर उसे परोक्ष रूप से जायज़ ठहराया जा रहा है.

चुनाव में सीपीएम की पराजय का यह अर्थ नहीं है कि भाजपा को उसे हर तरह से उखाड़ देने का लाइसेंस मिल गया हो.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के नेता इस हिंसा को पच्चीस सालों के सीपीएम के शासन से मुक्ति के बाद जनता के सहज आक्रोश की अभिव्यक्ति कहकर अपनी जिम्मेवारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन हमें मालूम है कि इस तरह की हिंसा बिना इस भरोसे के नहीं की जाती कि राजसत्ता हिंसा में शामिल लोगों का ख्याल रखेगी.

जो हिंसा त्रिपुरा में हो रही है, वह स्वतःस्फूर्त है इसलिए स्वाभाविक है यह तर्क दूसरे ढंग से हम 1984, 1989,2002 के कत्लेआम में सुन चुके हैं. लेकिन हमें मालूम है कि इस तरह की हर हिंसा संगठित की जाती है और उसके पीछे किसी संगठन का तंत्र होता है.

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त्रिपुरा
EPA/STR
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चुनाव है युद्ध नहीं

भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव को युद्ध की तरह लड़ रही है. प्रचार में रूपक भी युद्ध के, उखाड़ देने, बंगाल की खाड़ी में फ़ेंक देने के इस्तेमाल किए जाते हैं. त्रिपुरा से दूर उत्तर प्रदेश में कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के नेता दानव परिवार के हैं.

अव्वल तो देवता और दानव या राक्षस जैसे शब्दों का अब इस्तेमाल करना ही अब असभ्य माना जाता है लेकिन जो ऐसा कर रहे हैं, उनकी हिंसक मनोवृत्ति इससे प्रकट तो होती ही है.

संसदीय जनतंत्र के मजबूत होने का अर्थ सिर्फ सफलतापूर्वक चुनाव हो जाना नहीं है, उसका अर्थ सत्ता के कारोबार में लगे लोगों में संसदीय स्वभाव और आचरण का अभ्यास भी है.

भारत के अधिकतर राज्यों और केंद्र में चुनाव के ज़रिए सत्ता में आनेवाली भारतीय जनता पार्टी का आचरण इसके ठीक विपरीत है और यह उसके समर्थकों के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए.

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English summary
Opinion Does the BJP think that means winning elections in the Republic
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