क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

नज़रिया: 'दलितों को मोहरा बना रहे हैं संगठन'

कोरेगांव भीमा में हुई घटना में क्या दलितों को निशाना बनाया गया है या उनका इस्तेमाल किया गया है? एक आकलन.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
कोरेगांव
BBC
कोरेगांव

धोखेबाजी, कपट, झूठ, ढकोसला, धूर्तता - शब्दकोश खाली हो जाएगा लेकिन पुणे के भीमा कोरेगांव की घटना की ठीक तरह से व्याख्या फिर भी नहीं की जा सकेगी.

31 दिसम्बर को यहां 'यलगार परिषद' का कार्यक्रम रखा गया था. पेशवा बाजीराव द्वितीय की समाप्त प्राय सेना और ईस्ट इंडिया कंपनी की एक छोटी सी टुकड़ी के बीच हुए 200 वर्ष पुराने युद्ध की वर्षगांठ पर.

वर्षगांठ मनाने की वजह यह कि उनके हिसाब से चूंकि पेशवा ब्राह्मण थे और चूंकि ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में महार सैनिक थे लिहाज़ा यह ब्राह्मणों पर महारों की जीत का पर्व है.

थोड़ा सा आगे बढ़ें.

इस 'यलगार परिषद' के कार्यक्रम में मंच पर मौजूद लोगों में प्रकाश आंबेडकर, जिग्नेश मेवाणी, उमर खालिद, रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला, सोनी सोरी, विनय रतन सिंह, प्रशांत दौंढ़, मौलाना अब्दुल हामिद अज़हरी वग़ैरह शामिल थे.

कोरेगांव
BBC
कोरेगांव

और आगे बढ़ें.

ऐसे कोई 25-30 संगठनों के नामों की सूची मंच से पढ़ी गई जिन्होंने रैली का समर्थन किया था.

इनमें पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया, मूल निवासी मुस्लिम मंच, छत्रपति शिवाजी मुस्लिम ब्रिगेड, दलित ईलम आदि संगठन थे.

इसके बाद दलितों पर अत्याचार की कहानी सुनाई गई. यह कि आज भी दलितों पर अत्याचार होता है और अत्याचार करने वाले भाजपा-आरएसएस के लोग होते है.

यह कि उनके मुताबिक़ भाजपा और संघ के लोग आज के नए पेशवा हैं. जिग्नेश मेवाणी ने तो सीधे प्रधानमंत्री को आज का पेशवा कहा. इसी कथानक को फिर तरह-तरह से दोहराया गया.

कोरेगांव
BBC
कोरेगांव

भीमा कोरेगांव के निकट ही अहमदनगर रोड पर वढू बुदरक गांव है.

यहां छत्रपति शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र एवं तत्कालीन मराठा शासक संभाजी राजे भोंसले की समाधि है और उसके पास ही गोविंद गायकवाड़ की समाधि है.

इसके एक दिन पहले 30 दिसंबर, 2017 की रात को वढ़ू बुदरक गांव में गोविंद गायकवाड़ की समाधि को भी सजाया गया था.

कुछ अज्ञात लोगों ने इस सजावट को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की और समाधि पर लगा नामपट क्षतिग्रस्त कर दिया. जिन्होंने यह किया था, वे भगवा झंडे लिए हुए थे.

इसमें दो लोगों का नाम आया- संभाजी भिड़े गुरु जी और मिलिंद एकबोटे. दोनों का संबंध आरएसएस से बताया गया.

कोरेगांव
BBC
कोरेगांव

भीमा कोरेगांव युद्ध स्मारक पर सोमवार को लाखों दलित एकत्र हुए थे, जहां कथित तौर पर भगवा झंडाधारी कुछ लोगों ने अचानक पत्थरबाज़ी शुरू कर दी. टकराव के दौरान बस, पुलिस वैन और निजी वाहन समेत 30 वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया.

मंच से भड़काऊ बातें करने पर मामला दर्ज हुआ है. खुद मेवाणी ने लोगों का भड़काया- इस तरह का वीडियो फुटेज़ एक चैनल ने दिखाया है.

थोड़ा सा और आगे बढ़ें.

मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस हिंसा के लिए भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निशाना साधा.

राहुल ने ट्वीट किया कि भाजपा और आरएसएस का भारत के प्रति 'फ़ासिस्ट' दृष्टिकोण यह है कि दलित भारतीय समाज के सबसे निचले पायदान पर रहें.

कोरेगांव
AMIR KHAN/BBC
कोरेगांव

अब थोड़ा सा पीछे लौटने के पहले कुछ शब्दों और कुछ नामों पर गौर करें.

'यलगार' उर्दू का शब्द है जिसका अर्थ होता है - अचानक हमला करके मार देना. यहां बात 'जंग' की हो रही थी.

दूसरा शब्द है 'ईलम'. मंच से नाम पढ़ा गया 'दलित ईलम'. 'ईलम' माने होता है - देश.

अब नामों पर आएं. एक नाम है जिग्नेश मेवाणी उर्फ दलित नेता.

जिग्नेश मेवाणी अभी कांग्रेस की मदद से और केरल के 'इस्लामिस्ट संगठन पीएफ़आई के पैसों' से गुजरात में विधानसभा का चुनाव जीते हैं.

कांग्रेस ने यह सीट उनके लिए छोड़ी थी. अच्छी ख़ासी मुस्लिम जनसंख्या वाली यह सीट पिछली बार कांग्रेस करीब 23 हज़ार वोटों से जीती थी, इस बार जब हालात भाजपा के ख़िलाफ़ बताए जा रहे थे, तब जिग्नेश मेवाणी करीब 19 हजार से जीते हैं. फिर भी वह दलित नेता हैं.

कोरेगांव
BBC
कोरेगांव

तीसरा नाम है रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला का. 'रोहित वेमुला दलित नहीं था- यह बात अब प्रामाणिक ढंग से स्थापित हो चुकी है' लेकिन यहां वह फिर दलित बन गया था.

फिर नाम आता है उमर खालिद. फिर सोनी सोरी, विनय रतन सिंह, प्रशांत दौंढ़ और अब्दुल हामिद अज़हरी.

इन सबका तर्पण करने के लिए गूगल आसानी से उपलब्ध है. इसलिए इनके बारे में यहां कुछ नहीं कहा जा रहा है. बताया गया है कि सिमरनजीत सिंह मान भी वहां मौजूद थे, हालांकि इसकी पुष्टि करने वाली कोई तस्वीर नहीं मिली है.

माने पेशवा और ब्राह्मण तो बहाना हैं, यह एक ऐसे झुंड का जमावड़ा था, जो सिरे से हिन्दू विरोधी और भारत विरोधी है.

आख़िर वे 'भारत की बर्बादी तक, जंग चलेगी, जंग चलेगी' जैसे नारों के रचयिता हैं. अगर इनकी इतनी ही हिम्मत है, तो खुलकर अपने एजेंडे पर बात क्यों नहीं करते? क्यों झूठ का पुलिंदा बना कर दलितों को मोहरा बनाते हैं?

कोरेगांव
BBC
कोरेगांव

झूठ के पुलिंदे का दूसरा स्रोत है- इतिहास के साथ बार-बार की और भारी-भरकम तोड़ मरोड़. कई परतों की बकवास.

पेशवा-अंग्रेज़ युद्ध को सीधे ब्राह्मण-महार युद्ध में बदल दिया गया.

विस्तार में जाने का लाभ नहीं है लेकिन सपाट सा सच यह है कि न यह ब्राह्मण-महार युद्ध था और न अंग्रेज़ इसमें जीते थे.

एक तरफ तो दलितों की व्याख्या (खुद दलित शब्द का भारत के किसी इतिहास में कोई उल्लेख नहीं है, यह मैकाले-मार्क्स की उपज है) यह की जाती है कि उन्हें हथियार रखने की आज़ादी नहीं थी, दूसरी तरफ बताया जाता है कि महारों ने पेशवाशाही को हरा दिया था.

इतिहास के साथ दूसरी तोड़ मरोड़. गोविंद गायकवाड़ की समाधि को क्षतिग्रस्त करने का मामला.

संभाजी राजे भोंसले को मुगलों ने रोज़ाना एक अंग काट कर कई दिनों में मारा था- पाकिस्तान की 'डेथ बाइ थाऊज़ेंड कट्स' वाली थ्योरी के अंदाज़ में और उनके अंतिम संस्कार पर भी रोक लगा दी थी.

कोरेगांव
BBC
कोरेगांव

इतिहास के अनुसार गोविंद गायकवाड़ ने संभाजी राजे का अंतिम संस्कार किया था. गोविंद गायकवाड़ की समाधि का ज़िक्र करने वालों में हिम्मत थी तो एक बार गोविंद गायकवाड़ का जीवन चरित भी बताते.

इतिहास के साथ राजनीतिक तोड़ मरोड़ लश्कर-ए-जेएनयू का ख़ास पेशा है.

झूठ की तीसरी परत. हमला करने वाले भगवा झंडे हाथ में लिए हुए थे. मुंबई पर हमला करने वाला अजमल कसाब भी रक्षा सूत्र पहना हुआ था और एक शख़्स ने किताब भी लिख दी कि मुंबई पर हमला आरएसएस ने किया था, जिसके विमोचन में दिग्विजय सिंह भी मौजूद थे.

यहां लाखों की भीड़ पर चंद लोगों ने हाथ में भगवा झंडा लेकर हमला किया? भारत में यह सब कर लेना कितना आसान है?

राहुल गांधी
Getty Images
राहुल गांधी

अब आइए थोड़ा सा और पीछे, राहुल गांधीजी के ट्वीट पर.

उनका ट्वीट लश्कर-ए-जेएनयू के किसी फटे पुराने पैंफलेट की इबारत जैसा था.

'फ़ासिस्ट', 'दलित' और 'आरएसएस' के तीन रटे रटाए शब्द. एक मजेदार शब्द था - 'बॉटम ऑफ इंडियन सोसायटी'. राहुलजी, देश का राष्ट्रपति एक दलित है, भाजपा के उम्मीदवार की हैसियत से जीता है और हर संवैधानिक पद पर बैठा हर व्यक्ति उतना रोबोट नहीं होता है कि उसे 'बॉटम ऑफ इंडियन सोसायटी' कहा जा सके लेकिन कहने में क्या जाता है?

लेकिन बात यहां खत्म नहीं होती, यहां से शुरु होती है. 'यलगार परिषद' के मंच पर तमाम भारत विरोधी, वामपंथी, नक्सलपंथी, नव-उदारवादी, आतंकवाद समर्थक, भारत के टुकड़े करने के समर्थक, लव जिहाद के समर्थक, इस्लामिस्ट- आदि सारे भारत विरोधी और हिन्दू विरोधी मौजूद थे. सारे भाजपा और आरएसएस को कोस रहे थे और नाम दलितों का लगा रहे थे. यह सारे एक साथ क्यों हो गए?

कोरेगांव
MAYURESH KUNNUR/BBC
कोरेगांव

वास्तव में यह सारे हमेशा से ही एक साथ थे. इसमें और भी हिस्से होते हैं, जो मंच पर नहीं थे. जैसे मीडिया के वे लोग, जिन्होंने हिंसा शुरु होते ही उसे 'दलित बनाम हिन्दू' कहना शुरु कर दिया था या जिन्होंने लालू प्रसाद को अपराधी ठहराए जाते ही, उसकी करतूतों का ज़िक्र आने के पहले ही जाति का राग अलापना शुरु कर दिया था. एक लंबा चौड़ा तंत्र है, जिसमें कई तरह के लोग हैं.

इसे कांग्रेस का 'इको-सिस्टम' या 'पारिस्थितिकी तंत्र' कहा जाता है. यही 'पारिस्थितिकी तंत्र' सक्रिय है और बहुत सीधी सी बात है कि यह उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लक्ष्य में रखकर सक्रिय हुआ था और अब गुजरात के विधानसभा चुनाव में हारने के बाद से परेशान है.

कोरेगांव
SHARAD BADHE/BBC
कोरेगांव

इस तंत्र के पास इतिहास को तोड़ने से लेकर क़ानून को मरोड़ने तक, जाति से लेकर प्रांत और भाषा के नाम पर बांटने तक, हर तरह की कहानी मौजूद है.

पैसा इसके लिए कोई विषय नहीं है. यह भारत की विविधता के हर आयाम को भारत के विभाजन की एक और गुंजाइश के रूप में देखता है. भारत की एकता का भाव इसे ज़रा भी पसंद नहीं है.

2014 के लोकसभा चुनाव, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव और गुजरात के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत चूंकि जनता की और मूलतः हिन्दुओं की एकजुटता के कारण हुई है लिहाज़ा हिन्दू एकजुटता तोड़ना उसे सबसे महत्वपूर्ण लगता है.

और इस हिन्दू एकजुटता का अर्थ हिन्दू ध्रुवीकरण नहीं है. एक ही ध्रुव वाला ध्रुवीकरण तो हमेशा से चला आ रहा है. उनमें हिन्दुओं की कोई भूमिका नहीं थी. हिन्दुओं की एकजुटता सामने आने पर उसे ध्रुवीकरण कहा जाने लगा है.

कोरेगांव
AFP/GETTY IMAGES
कोरेगांव

गुजरात से कांग्रेस को उम्मीद हो गई है कि उसका 'पारिस्थितिकी तंत्र' उसे चुनावी फ़ायदा करा सकता है. महाराष्ट्र का प्रयोग इसीलिए था लेकिन यह भी कांग्रेस की गलतफ़हमी है.

वास्तव में कांग्रेस का पारिस्थितिकी तंत्र अब कांग्रेस से कहीं बड़ा हो चुका है. वह अपनी मर्ज़ी से किसी क्षेत्रीय क्षत्रप को पैदा करता है और मौका पड़ते ही डुबो भी देता है.

दिल्ली और उत्तरप्रदेश इसके दो बड़े उदाहरण हैं लेकिन कांग्रेस के इस 'पारिस्थितिकी तंत्र' का हिंसा का सहारा लेना दुखद है.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Opinion Congregation of Dalits is Making Organization
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X