कहीं आपको भी तो नहीं है ऑनलाइन शॉपिंग की लत, हो सकते हैं इस मानसिक बीमारी का शिकार
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नई दिल्ली। हम आमतौर पर बहुत से ऐसे लोगों को देखते हैं जो काफी ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं। लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ऑनलाइन शॉपिंग की लत एक तरह का मानसिक विकार है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि आधिकारिक तौर पर इसे मानसिक विकार माना जाना चाहिए।
शोधकर्ताओं का कहना है कि वे ऐसी स्थिति के विभिन्न लक्षणों और विशेषताओं के बारे में बता सकते हैं। जिनसे पता चलता है कि ये कैसे दिमाग को प्रभावित करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि बाइंग-शॉपिंग डिसऑर्डर (बीएसडी) को दशकों से एक बीमारी माना जाता है, लेकिन अब इंटरनेट की दुनिया में इसका मतलब बदल गया है। अब ये 20 साल के लोगों को भी प्रभावित कर रही है।
कैसे पड़ता है बुरा प्रभाव?
जिन लोगों को ऑनलाइन सामान मंगाने की लत होती है, उनके घर में काफी सामान एकत्रित हो जाता है। सामान को लेने के लिए लोग कर्ज में फंस जाते हैं, अपने परिवार से झगड़ा करते हैं और कई बार अपना आपा ही खो बैठते हैं। इस मामले पर एक डॉक्टर का कहना है, 'वास्तव में ये ऐसा समय है जब बीएसडी को अलग से मानसिक स्वास्थ्य स्थिति के रूप में पहचाना जाना चाहिए और इंटरनेट पर बीएसडी के बारे में और अधिक ज्ञान प्रसारित किया जाना चाहिए।'
डिप्रेशन और चिंता की अधिक दर
जर्मनी के हैनोवर मेडिकल स्कूल में पढ़ाने वाली मनोचिकित्सक डॉक्टर एस्ट्रिड मूलर और उनके सहकर्मी कहते हैं, 'इस स्थिति की पहचान लंबे समय से नहीं हो पाई थी।' इस पर किए गए अध्ययन में 122 लोगों को शामिल किया गया। जिसमें पता चला कि इनमें डिप्रेशन और चिंतित रहने की दर सामान्य से अधिक है। डॉक्टरों का कहना है कि ऑनलाइन स्टोर, एप्स और होम डिलवरी जैसी सेवाओं ने शोपाहॉलिक की धारणा को पूरी तरह नए आयाम पर ला दिया है। इंटरनेट ने खरीदारी को अधिक उपलब्ध और आसान पहुंच दी है।
क्या कहते हैं डॉक्टर?
डॉक्टरों का कहना है कि ऑनलाइन दुकानें 24 घंटे काम करती हैं। लोग बिना दुकानदार और घर से निकले जो चाहें वो खरीद सकते हैं। इन ऑनलाइन साइट पर कई बार सामान भारी डिस्काउंट के साथ आसानी से मिल जाता है। यही कारण है कि लोगों में छोटी उम्र से ही बीएसडी डिसऑर्डर के लक्षण दिखने लगते हैं। वर्तमान में बीएसडी को एक अलग डिसऑर्डर नहीं माना जाता है बल्कि इसे 'अदर स्पेसिफाइड इम्पल्स कंट्रोल डिसऑर्डर' की कैटिगरी में रखा गया है। डॉक्टरों का कहना है कि भविष्य में ये शोध अन्य शोधकर्ताओं की मदद करेगा। जिससे इस बीमारी का इलाज भी आसानी से लोगों तक पहुंच पाएगा।
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