Pulwama Attack में शहीद हुए थे हेमराज मीणा, बेटी बोली- फोन पर उनसे बात ही एक सहारा थी, 14 फरवरी को वो भी छिन गया
कोटा। आज से ठीक एक साल पहले, 14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ था। इस आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे। इस कायराना हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। शहीद होने वाले इन 40 जवानों में राजस्थान के कोटा जिले के हेमराज मीणा भी थे। आज उनकी शहादत को एक साथ गुजर चुका है लेकिन उनके परिजनों के जख्म आज भी उतने ही हरे हैं। आज भी शहीद हेमराज को याद करके उनके परिजनों की आंखें भर आती हैं। शहीद हेमराज की बेटी कहती हैं कि उनको अपने पापा की बहुत याद आती है।
एक साल बाद रिटायर होने वाले थे हेमराज मीणा
61वीं बटालियन से जुड़े हेमराज मीणा एक साल बाद रिटायर होने वाले थे। सीआरपीएफ में 18 साल सेवाएं दे चुके हेमराज की शहादत ने उनके बच्चों को कम उम्र में ही बहुत कुछ सीखा दिया। बेटी रीना कहती हैं- लगता है पापा ने जैसे कोई तोहफा दे दिया हो, जहां भी हम जाते हैं, लोग शहीद के बच्चे पुकारते हैं। न्यूज 18 से बात करते हुए रीना ने बताया कि उनके पापा जब भी छुट्टी से आते थे, सबकी पसंद की चीजे लाते थे। रीना को अपने शहीद पिता पर बहुत गर्व है। वे कहती हैं, 'पिछले साल भी वे हमें तोहफा दे गए- शहीद के परिवार का।'
फौजी ट्रंक के साथ लगी है घर में शहीद हेमराज की तस्वीर
शहीद हेमराज का फौजी ट्रंक घर में पूजा के आले की तरह रखा हुआ है, जिसपर सारे देवी-देवताओं के साथ उनकी तस्वीर लगी हुई है। रीना याद करते हुए कहती हैं, 'पापा के जाने के बाद, एक बार किसी बात को लेकर छोटे भाई की दोस्तों से बहस हो गई, उसके दोस्त उसे चिढ़ाने लगे कि तेरे पापा तो मर गए। ये सुनकर भाई रोया नहीं बल्कि तुरंत बोला, 'पापा मरे नहीं शहीद हुए हैं, हर कोई ये नहीं कर सकता है।' रीना ने बताया कि उस दिन के बाद दोस्तों ने भाई को कभी तंग नहीं किया।
आत्मघाती हमले में शहीद हुए थे 40 जवान
14 फरवरी को जब अवंतिपोरा से सीआरपीएफ का काफिला गुजर रहा था, उसी वक्त एक कार ने इस काफिले के साथ चल रहे वाहन को आकर अचानक टक्कर मार दी और इसके साथ ही जबरदस्त धमाका हुआ। धमाका इतना जबरदस्त था कि इसकी गूंज कई किलोमीटर दूर तक सुनाई दी थी। धमाके के बाद आसपास का मंजर ऐसा था कि उसे देखकर किसी का भी कलेजा कांप उठे। इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी।
अक्सर फोन पर ही होती थी बात- रीना
रीना कहती हैं कि बचपन से ही सुना कि पापा पोस्टिंग पर हैं। शुरू से ही मां ने सबकुछ संभाला। वो बताती हैं कि पापा छुट्टियों में घर आते थे और वक्त कैसे गुजर जाता था, पता ही नहीं चलता था। ड्यूटी पर रहने के दौरान पापा से फोन पर ही काफी बातें हुईं। फोन पर उनसे बात ही एक सहारा था, लेकिन अब तो वो भी नहीं हो सकती है, आतंकियों ने वो भी छीन लिया।
14 फरवरी को पापा से हुई थी बात- बेटी
रीना बताती हैं कि 14 फरवरी को 3 बजे कॉल आया था, पापा ने पढ़ाई के बारे में पूछा और अपना जल्दी-जल्दी अपना हालचाल बताकर फोन रख दिया था। थोड़ी ही देर बाद अजमेर से उनके एक दोस्त का फोन आया। वे मुझसे बहुत संभलकर पूछ रहे थे कि पापा कब निकले और उनसे फोन पर कब बात हुई, मुझे समझ नहीं आया लेकिन इतना समझ आया कि कोई बात जरूर है।
पापा से बात ना होने पर डर लगता था- रीना
वे बताते थे कि श्रीनगर में जवानों को किस नजर से देखा जाता है, उन्होंने बताया था कि वहां पोस्टेड जवानों में शायद ही कोई हो जिसने पत्थरबाजी का सामना ना किया हो। ये सुनकर हम लोगों को बहुत डर लगता था। एक दिन भी उनका फोन ना लगने पर मन में अजीब सा डर बैठ जाता था। रीना कहती हैं कि वे लोग इस कोशिश में रहती थीं कि केवल उनसे एक बार बात हो जाए और वे कह दें कि ठीक हैं।
हेमराज की शहादत की खबर अफसरों ने रीना को दी थी
रीना कहती हैं कि साल भर पहले वह बस स्टॉप पर पापा को छोड़ने गई थीं, वे उदास थे लेकिन रुआब वैसा ही था। बस चली तो काफी देर तक वे खिड़की से हाथ हिलाते रहे। उसके बाद 14 को खबर आई, रीना कहती हैं कि बड़ी होने कारण अफसरों ने उनको ही सबकुछ बताया, बड़ा होना बहुत हिम्मत मांगता है। शहीद हेमराज पर उनको गांव विनोदकलां के लोग गर्व करते हैं।
काफिले में 2500 जवान थे
आतंकियों ने जिस काफिले को निशाना बनाया गया था उसमें 2500 जवान शामिल थे। वहीं, इस हमले ने सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ाकर रख दी थी और 17 साल पहले हुए एक हमले की याद ताजा कर दी थी। ये सारे जवान भारी बर्फबारी की वजह से करीब एक हफ्ते तक जम्मू में ही फंसे रह गए थे। 78 बसों में इन 2500 जवानों को लेकर काफिला जम्मू से रवाना हुआ था।
ट्रांसिट कैंप में लौट रहे थे जवान
जम्मू में सीआरपीएफ के प्रवक्ता आशीष कुमार झा ने मीडिया से बात की और कहा था कि ये जवान अपनी छुट्टी से लौटे थे। सभी जवानों को श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम स्थित ट्रांसिट कैंप में पहुंचना था। ये सफर करीब 320 किलोमीटर लंबा था और सुबह 3:30 बजे से जवान सफर कर रहे थे। बाद में सीआरपीएफ की तरफ से इस हमले के बारे में जानकारी दी गई थी। उन्होंने उस समय बताया था कि काफिले में करीब 70 बसें थीं और इसमें से एक बस हमले की चपेट में आ गई।