एक देश एक राशन कार्ड: पुरानी योजना नए पैकेज में क्यों?
सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वो कई पुरानी योजनाओं को नए कोरोना पैकेज में डालकर दे रही है.
कोरोना की मार झेल रहे देश को राहत देने के लिए भारत सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की है.
लेकिन सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वो कई पुरानी योजनाओं को नए कोरोना पैकेज में डालकर दे रही है.
ऐसी ही एक योजना की बात हो रही है - 'एक देश एक राशन कार्ड.'
जिसके बारे में कोरोना पैकेज के तहत वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को घोषणा की और कहा, "प्रवासी मज़दूरों को फायदा पहुंचाने के लिए हम राशन कार्ड की नेशनल पोर्टेबिलिटी करने जा रहे हैं. इससे वो देश के किसी भी हिस्से में अपने राशन कार्ड से राशन ले सकेंगे. जैसे अगर कोई राशन कार्ड धारक आज बिहार या कर्नाटक में है और कल को वो राजस्थान में चला जाता है तो वो उस राज्य में कहीं से भी राशन ले सकता है."
"इस नेशनल पोर्टेबिलिटी को अब - एक देश एक राशन कार्ड के नाम से लागू किया जाएगा और अगस्त 2020 तक यानी अगले तीन महीने के अंदर 23 राज्यों के 67 करोड़ लाभार्थियों को इस सिस्टम में कवर कर लिया जाएगा. ये 67 करोड़ लोग पीडीएस आबादी का 83 फीसदी हिस्सा हैं. वहीं मार्च, 2021 से पहले 100 फीसदी नेशनल पोर्टेबिलिटी हासिल कर ली जाएगी."
नई योजना नहीं, दो साल पहले शुरू हुआ काम
इसके बाद उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने भी इसे लेकर ट्वीट किया.
'एक देश एक राशन कार्ड' सिस्टम कोई नई योजना नहीं है, बल्कि दो साल से इस पर काम चल रहा है.
इसी साल चार फरवरी को उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण के राज्यमंत्री दानवे रावसाहेब दादाराव ने लोक सभा में लिखित जवाब के तौर पर जानकारी दी थी कि इसकी शुरुआत अप्रैल 2018 में हुई थी.
इस सिस्टम में तकनीक की मदद ली जा रही है. आधार कार्ड को राशन कार्ड से जोड़ दिया जाता है.
उचित मूल्य दुकान यानी एफपीएस पर इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ सेल (ePoS) उपकरण इंस्टॉल कर दिया जाता है, जिससे लाभार्थी की बायोमेट्रिक पहचान की जाती है और राशन दिया जाता है.
ये सिस्टम दो तरह से काम करता है. एक तो इंटर स्टेट और एक इंट्रा-स्टेट पोर्टेबिलिटी. इंटर स्टेट मतलब अगर कोई व्यक्ति एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर राशन लेता है और इंट्रा-स्टेट मतलब वो रहेगा तो अपने ही राज्य में लेकिन एक ज़िले से दूसरे ज़िले में चला जाएगा.
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दो वेब पोर्टल भी बने हुए हैं...
इसके लिए सरकार ने दो वेब पोर्टल भी बनाए हैं. इंटिग्रेटेड मैनेजमेंट ऑफ पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (IM-PDS) पोर्टल राशन कार्ड की इंटर-स्टेट पोर्टेबिलिटी के लिए तकनीकी प्लेटफॉर्म मुहैया कराता है. ताकि प्रवासी मज़दूर देश की किसी भी उचित मूल्य की दुकान से राशन ले सकें.
वहीं दूसरा पोर्टल है annavitran.nic.in. जहां एक राज्य के अंदर ही ई-पीओएस उपकरणों के ज़रिए वितरित किए गए अनाज का डेटा देखा जा सकता है. अन्नवितरण पोर्टल एक प्रवासी मज़दूर को अपने ही राज्य के अंदर किसी अन्य ज़िले से पीडीएस का लाभ लेने में मदद करता है.
कोई प्रवासी मज़दूर, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत निर्धारित किए गए राशन के अपने हिस्से को कहीं से भी ले सकता है.
खाद्य मंत्री राम विलास पासवान के मुताबिक़, इसके लिए राशन कार्ड दिखाना ज़रूरी नहीं है, अपना आधार नंबर देकर भी लोग राशन ले सकते हैं.
सरकार के मुताबिक़, वही प्रवासी मज़दूर के परिवार के बाकी लोग अपने हिस्सा का बचा हुआ सब्सिडी वाला अनाज अपने इलाक़े के ही राशन डीलर से ले सकता हैं.
केंद्रीय खाद्य मंत्रालय
पिछले तीन सालों में इस योजना के दायरे को बढ़ाया गया है. पहले कुछ ही राज्य इस योजना से जुड़ने को तैयार हुए थे.
धीरे-धीरे करके और राज्यों को जोड़ा गया. एक देश एक राशन कार्ड योजना के तहत इंटर स्टेट/नेशनल पोर्टेबिलिटी में पहले 12 राज्य जुड़े थे.
फिर इस साल एक मई को केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने पांच और राज्यों को इसमें जोड़ लिया.
अब कुल 17 राज्यों के 60 करोड़ लाभार्थी इस योजना से जुड़ गए हैं और देश में कहीं से भी राशन ले सकते थे.
इस योजना से जुड़े राज्य हैं - आंध्र प्रदेश, गोवा, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, और दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव.
नई घोषणा में उल्टा लक्ष्य की अवधि को बढ़ा दिया
अब अगले तीन महीने में 23 राज्यों के कुल 67 करोड़ लोगों को इस योजना से जोड़े जाने का लक्ष्य है.
वहीं सरकार का दावा है कि वो मार्च 2021 तक 100 प्रतिशत यानी देश के हर लाभार्थी को इसमें जोड़ लेगी.
हालांकि पहले कहा गया था कि इस लक्ष्य को जून 2020 तक पूरा कर लिया जाएगा. लेकिन अब इस लक्ष्य की अवधि को मार्च 2021 तक बढ़ दिया गया है.
ऐसे में ये भी सवाल भी किया गया कि नई घोषणा में लक्ष्य पूरा करने के वक्त को उल्टा बढ़ा दिया गया है, तो ये प्रवासी मज़दूरों के लिए राहत कैसे कही जा सकती है?
वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कह दिया है कि वो एक देश एक राशन कार्ड की योजना को अपने राज्य में लागू नहीं करेंगी.
राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी
जो राज्य इस योजना से पहले से जुड़े हैं, वहां भी ज़्यादा लोग फिलहाल इस योजना का फायदा नहीं ले पा रहे हैं.
आईएमपीडीएस पोर्टल के आंकड़ों के मुताबिक़, 16 मई तक कुल सिर्फ 287 ट्रांसेक्शन हुए हैं.
हालांकि इसके मुकाबले इंट्रा-स्टेट राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी के ट्रांसेक्शन कहीं ज़्यादा हैं.
अन्नवितरण पोर्टल के मुताबिक़, पिछले महीने इस सुविधा का इस्तेमाल करते हुए करीब एक करोड़ ट्रांसेक्शन किए गए.
इसका मतलब लोग अपने ही राज्य में एक ज़िले से दूसरे ज़िले में जाने पर तो इस योजना का इस्तेमाल कर पा रहे हैं, लेकिन जब वो अपने राज्य से बाहर किसी दूसरे राज्य में चले जाते हैं तो इस सुविधा का फायदा नहीं ले पाते.
इसकी वजह क्या हो सकती है? ये समझने के लिए बीबीसी हिंदी ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं से बात की.
ये योजना कितनी व्यवहारिक
आईआईएम अहमदाबाद की एसोसिएट प्रोफेसर रीतिका खेड़ा कहती हैं कि तकनीकी तौर पर तो ये करना मुमकिन है, लेकिन इसकी व्यावहारिकता को लेकर बड़ा सवाल है.
उनके मुताबिक़, "किसी भी राशन दुकान पर पहले से निर्धारित होता है कि वहां कितने राशन कार्ड जुड़े हैं, उसके हिसाब से ही वहां राशन पहुंचता है. अगर किसी डीलर से 100 लोग राशन लेते हैं और आज अचानक बीस मज़दूर राशन लेने आ गए, तो वो टेक्निकली मुमकिन होगा. आप उसका हिसाब-किताब रख सकते हैं."
"लेकिन राशन दुकान पर तो 100 लोगों का ही राशन आया था, अगर 20 नए लोगों को राशन दे दिया जाएगा तो पुराने 100 में से 20 का कम पड़ जाएगा. फिलहाल हर राज्य के गेंहू, चावल की मात्रा निर्धारित है. बिहार के मज़दूर का राशन बिहार जाता है. अगर वो मज़दूर दिल्ली से राशन खरीदता है तो इसका मतलब दिल्ली के कोटे से खाएगा."
"इससे दिल्ली की सरकार को लगेगा कि वो अपने लोगों का राशन बिहार के मज़दूर को दे रही है, इससे राज्यों में आपस में झड़गा होने की संभावना भी है."
सप्लाई चेन की समस्या
वहीं सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे मानते हैं कि पीछे की पूरी स्पलाई चेन मैनेजमेंट में सुधार करना होगा.
रितिका खेड़ा और निखिल डे दोनों ही मानते हैं कि राज्यों की इस समस्या पर ध्यान ही नहीं दिया गया कि जब वो दूसरे राज्यों के लोगों के अपने यहां से राशन देंगे तो उनके यहां घटने वाले राशन की आपूर्ति कैसे की जाएगी.
निखिल डे कहते हैं कि दूसरी बात ये है कि तमिलनाडु, केरल, उड़ीसा जैसे राज्यों की अपनी स्कीम भी हैं. किसी ने भाव और कम किया हुआ है. किसी ने मात्रा बढ़ाई हुई है. किसी ने मिलने वाले आइटम बढ़ाए हुए हैं. तो यहां का कोई दूसरे राज्य में जाता है या दूसरे राज्य का यहां आता है तो इतना ही सब लेना देना होगा. जिससे राज्य कतरा सकते हैं."
वो कहते हैं कि अगर राशन दुकान पर इस महीने 25 एक्स्ट्रा लोग राशन लेने आए तो किसी को नहीं पता वो अगले महीने आएंगे या नहीं. हो सकता है वो किसी और जगह चले जाएं या अपने गृह राज्य वापस लौट जाएं, इसलिए ये सब मैनेज करना एक चुनौती है.
राजस्थान में जब लागू हुई...
निखिल डे बताते हैं कि राजस्थान में ये योजना लागू करने की कोशिश की गई, तो क्या हुआ.
"पहले कहा कि राज्य में कहीं भी लो. तो कोई नहीं दे रहा था. नाम के लिए योजना तो लागू कर दी, लेकिन आपको राशन तभी मिलेगा जब दुकानदार देगा. दुकानदार इसलिए नहीं दे रहा था क्योंकि उसे लगा कि उसका कोटा कहाँ से आएगा. दिल्ली में भी दिक्कत आई थी. जब एक बार कोशिश करने से राशन नहीं मिलेगा, तो कौन भटकता फिरेगा."
इसका समाधान क्या हो सकता है?
इसपर निखिल डे कहते हैं कि सप्लाई चेन में सुधार करना होगा. ये भी कर सकते हैं कि देश के हर नागरिक को 10 किलो महीने का अधिकार मिले. व्यक्ति के आधार पर देना ठीक रहेगा.