तो त्योहारों पर शुभ होता है घर में चांदी की मछली का होना
उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के मौदहा की बनी चांदी की मछली देश ही नहीं, विदेशों में भी प्रसिद्ध है। चांदी की मछली शुभ मानी जाती है। इसलिए लोग इसे घरों के ड्राइंग रूम में सजाकर अपने घर की शोभा बढ़ाते हैं। चांदी काफी महंगा होने के कारण हालांकि यह कला दम तोड़ रही है।
यूं तो देश के विभिन्न स्थानों पर नाना प्रकार की कलाकृतियों का निर्माण हुआ, उनमें तमाम चीजें विख्यात भी हंै, लेकिन चांदी की निर्मित मछली न केवल भारत में प्रसिद्ध है, बल्कि विश्व के कई देशों में भी लोकप्रिय है। चांदी की मछली का निर्माण उत्तर प्रदेश के जनपद हमीरपुर के तहसील मौदहा कस्बे के उपरौस में पानी टंकी के पास हो रहा है।
मुगलकाल में कला के प्रति बादशाहों का लगाव भी जग जाहिर है। इसी काल में उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के मौदहा में चांदी की मछली बनाने की शुरुआत हुई थी। हमीरपुरवासी कलाकृतियों के बेइंतिहा प्रेमी थे। यहां के प्राचीन भवनों, उनके दरवाजों एव बर्तनों आदि में खुदी विभिन्न प्रकार की कला कृतियां इसकी गवाह है। बेहतरीन नक्कासी भी यहां देखने को मिलती है।
भारतीय परंपरा में आस्था तथा विश्वास के आधार पर कुछ दिवसों व अवसरों पर चांदी की मछली शुभ माना जाता है। प्राचीन काल में व्यापारी भोर के समय सर्वप्रथम मछली देखना पसंद करते थे। इसका उल्लेख तमाम पुस्तकों तक में आया है। चांदी की मछली बनाने की शुरुआत 140 वर्ष पूर्व जागेश्वर प्रसाद सोनी नामक व्यक्ति ने की थी, जिसे अब उनके नाती पंती राजेंद्र सोनी, ओमप्रकाश, रामप्रकाश आदि निर्माण करके अंजाम दे रहे हैं।
बुजुर्गो के अनुसार, अबुल फजल नामक इतिहासकार यहां आया था। उसने 'आइने अकबरी' में लिखा कि यहां के लोगों को उत्तम जीवन व्यतीत करने की ईश्वरी साधन उपलब्ध है। इसी में आगे चांदी की मछली का भी उल्लेख किया है। पूरे उत्तर प्रदेश में सिर्फ मौदहा के एक ही स्वर्णकार परिवार के अतिरिक्त मछली बनाने की कला किसी के पास नहीं थी। तमाम स्वर्णकारों में मछलियां बनाई हैं और बना भी रहे हैं, लेकिन वह आर्कषण व स्वच्छता हर कृति में दिखाई नहीं देती थी। इसलिए अंत में मछली बनाने की कला इसी परिवार के हाथ में सिमटकर रह गई है।
इसी कुनबे से संबंधित राजेंद्र सोनी, मुन्नू सोनी ने आईपीएन को बताया कि मछली निर्माण की कला उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखी है। पहले की अपेक्षा निर्माण में अधिक लाभ रहता है पूर्व में कच्चा माल चांदी के मूल्य का ग्राफ खासा गिरा रहता था। साथ ही उस काल में जमींदार या अन्य धनाढ्य व्यक्ति ही मछली का निर्माण करा पाते थे, मगर आज लगभग 36000 रुपये प्रति किलोग्राम से ज्यादा महंगा होने पर भी लोग चांदी की मछली खरीदकर अपने घरों की शोभा बढ़ाते हैं।