#Jammu & Kashmir:अभी नजरबंदी से आजादी नहीं चाहते उमर और महबूबा ? जानिए वजह
नई दिल्ली- जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला पिछले 4 अगस्त से ही नजरबंद हैं। अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि वो फिलहाल नजरबंद रहने में ही खुद का ज्यादा भला समझ रहे हैं। बता दें कि इन दोनों बड़े नेताओं के अलावा भी राज्य के कुछ और नेताओं को लेकर भी ऐसी ही अटकलें लगाई जा रही हैं। ऐसे में आइए समझने की कोशिश करते हैं कि इस तरह की बातों का आधार क्या है और अगर खबर में दम है तो फिर नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी या फिर दूसरे दलों के नेता ऐसा क्यों सोच रहे हैं।
केंद्रीय एजेंसियों के अफसरों की मुलाकात से उठी बात
नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला अभी श्रीनगर के पॉश इलाके में हरि निवास नाम के आलीशान सरकारी गेस्ट हाउस में नजरबंद हैं। जबकि उनकी सियासी विरोधी पीडीपी की चीफ महबूबा मुफ्ती श्रीनगर के ही दूसरे चर्चित चश्मे शाही गेस्ट हाउस में हिरासत में रखी गई हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक केंद्रीय एजेंसियों के कुछ बड़े अधिकारियों ने कुछ दिन पहले ही इन दोनों नेताओं से मुलाकात की है और उनकी रिहाई के लिए उनके सामने 'कुछ शर्तें' रखी हैं। बताया जा रहा है कि सरकार ने दोनों नेताओं को भरोसा दिलाया है कि अगर रिहा होने के बाद वो कोई भी भड़काऊ बयान नहीं देंगे, जिससे कि घाटी में हालत बिगड़े तो सरकार को उन्हें छोड़ने में कोई दिक्कत नहीं होगी। कहा जा रहा है कि अभी तक दोनों नेता ने सरकार के इस प्रस्ताव पर अपना इरादा पक्का नहीं किया है। कुछ रिपोर्ट्स में राज्य के एक और नेता सज्जाद गनी लोन के पास भी ऐसा ही प्रस्ताव आने की बात है।
नेताओं के रवैये पर क्या हो रही है चर्चा?
जाहिर है कि अगर सरकार ने इन नेताओं के सामने रिहाई के लिए कोई शर्त लगाई है तो उन्हें हिरासत से निकलने के लिए बेल बॉन्ड पर दस्तखत करने पड़ सकते हैं। लेकिन, अगर उन्होंने बाहर निकलकर किसी सियासी दबाव में शर्तों का उल्लंघन किया तो सरकार फिर से उनके खिलाफ ऐक्शन ले सकती है। ऐसे में जानकारी मिल रही है कि वे फिलहाल रिहाई के लिए किसी भी तरह की शर्तें मानने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं। राज्य प्रशासन के वरिष्ठ सूत्रों के हवाले से यह भी कहा जा रहा है कि इसी के चलते पीपुल्स कांफ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद गनी लोन की बहन शबनम लोन ने कोर्ट में सिर्फ अपने भाई से मुलाकात की अर्जी दी है, उनकी रिहाई के लिए नहीं। इससे तो ऐसा ही लगता है कि ये नेता मौजूदा परिस्थितियों में हिरासत में ही रहने में खुद की भलाई समझ रहे हैं।
हिरासत में महफूज महसूस करने की वजह?
केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा-370 मिटाकर वहां का पूरा राजनीतिक परिदृश्य ही बदल दिया है। अब वहां की राजनीतिक पार्टियों का सारा सियासी एजेंडा ही बेकार पड़ चुका है। न उनके सामने ऑटोनोमी के नाम पर सियासत करने का मौका है और न ही वे सेल्फ रूल का नारा ही बुलंद कर सकेंगे; और पाकिस्तान की आवाज बनकर कश्मीर की आजादी की बात करने वाले सियासतदानों की तो रोजी-रोटी पर ही बट्टा लग चुका है। ऐसे में कहा जा रहा है कि अगर ये नेता बाहर आएंगे भी तो अपने समर्थकों को क्या कहकर राजनीतिक रोटी सेकेंगे? क्योंकि, लोगों को भड़काने और बहकाने के उनके विकल्प बहुत सीमित रह गए हैं और उन्हें उनका कानूनी अंजाम भी मालूम है।
पीडीपी-नेशनल कांफ्रेंस ने क्या कहा?
सरकार के बड़े अफसरों ने हिरासत में लिए गए बड़े नेताओं से मुलाकात की है या नहीं इस खबर की अभी तक न ही आधिकारिक पुष्टि की गई है और न ही इसे खारिज ही किया गया है। लेकिन, नेशनल कांफ्रेंस ने ऐसी किसी भी मुलाकात की खबरों का खंडन करते हुए इन्हें पूरी तरह 'आधारहीन' बताया है। जबकि, पीडीपी सूत्रों ने महबूबा और उमर से सरकारी अधिकारियों के मुलाकात की बात तो मानी है, लेकिन उनका दावा है कि दोनों ने आर्टिकल 370 पर अपने स्टैंड पर कायम रहते हुए सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। वैसे सवाल ये भी है कि जब दोनों नेता नजरबंद हैं और उनका बाहर के किसी व्यक्ति से संपर्क ही नहीं है, तब उनकी पार्टी के लोगों को कैसे पता चल रहा है कि किसी ने मुलाकात की है या नहीं और अगर की है तो उसमें बात क्या हुई है?
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