CAA के खिलाफ प्रस्ताव को लेकर ओम बिड़ला ने यूरोपियन संसद को लिखा पत्र
नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जिस तरह से यूरोपियन यूनियन के 600 सांसदों ने प्रस्ताव पेश किया था, उसके खिलाफ लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने यूरोपियन यूनियन संसद के अध्यक्ष को पत्र लिखा है। ओम बिड़ला ने सांसदों ने द्वारा सीएए के खिलाफ याचिका पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे दुनिया में सबसे बड़ी राज्यविहीनता का संकट खड़ा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इस तरह का कदम गलत उदाहरण पेश करेगा। किसी भी संसद के लिए इस तरह का फैसला देना सही नहीं, इसका इस्तेमाल गलत इरादे से किया जा सकता है।
CAA नागरिकता वापस लेने का कानून नहीं
बता दें कि यूरोपियन यूनियन संसद के कुल 751 सांसदों में से 600 सांसदों ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया था। जिसके खिलाफ ओम बिड़ला ने यह पत्र लिखा है। बिड़ला ने पत्र में लिखा कि नागरिकता कानून को संसद के दोनों सदनों में नियमों का पालन करते हुए पास किया गया है। इस कानून के जरिए उन लोगों को आसानी से नागरिकता देने का प्रावधान है जिनका उनके देश में धर्म के आधार पर शोषण हुआ है। इस कानून का लक्ष्य कतई किसी की नागरिकता वापस लेने का नहीं है।
फ्रांस ने बताया आंतरिक मामला
बता दें कि, यूरोपीय संघ की 751 सदस्यीय संसद में तकरीबन 600 सांसदों द्वारा संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ छह प्रस्ताव पेश किए गए हैं। इन प्रस्तावों में कहा गया है कि इस कानून का लागू होना भारत की नागरिकता व्यवस्था में एक खतरनाक बदलाव को प्रदर्शित करता है। हालांकि, यूरोपीय संसद में सीएए के खिलाफ प्रस्तावों पर विदेश मंत्रालय से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। वहीं फ्रांस ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया है। फ्रांसीसी राजनयिक सूत्रों ने कहा कि, यूरोपीय संघ (ईयू) के संस्थापक सदस्य देशों में शामिल फ्रांस का मानना है कि नया नागरिकता कानून (सीएए) भारत का एक आतंरिक राजनीतिक विषय है और यह कई मौकों पर कहा गया है।
भारत का आंतरिक मामला
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि सीएए भारत का पूरी तरह से एक आंतरिक विषय है और इस कानून को संसद के दोनों सदनों में चर्चा के बाद लोकतांत्रिक तरीके से अंगीकार किया गया है। यूरोपियन यूनियन संसद में प्रस्तावों के भारत के विरोधी होने को विस्तार से बताते हुए कहा, हर समाज जो कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक नागरिकता प्रदान करने के मार्ग का अनुसरण करता है वह संदर्भ और अर्हता, दोनों पर विचार करता है। यह भेदभाव नहीं है।