राजस्थान में अधिकारी के पास 200 करोड़ की संपत्ति, और गिनती जारी है
कोटा में अफीम किसान संघर्ष समीति के भवानी सिंह धरतीपकड़ ने कहा, "विभाग के अधिकारी किसानों की उपज को घटिया बताकर पट्टा ख़ारिज करने की धमकी देकर पैसा वसूलते रहे."
वो कहते हैं, "जब-जब अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और किसानों की बैठक होती, हम ये मुद्दे उठाते और उम्मीद करते कि कुछ होगा. मगर हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. इन बैठकों में कोटा, चित्तौड़ और झालावाड़ के सांसद भी मौजूद होते थे. हम हर बार भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाते रहे. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई."
पद-ओहदा, रुतबा-रुआब और धन सम्पति. सब कुछ था उनके पास. उनकी हसरत थी संसद तक पहुंचने की. लेकिन उसके पहले ही एंटी करप्शन ब्यूरो ने कोटा में नारकोटिक्स विभाग के डिप्टी कमिश्नर सहीराम मीणा को गणतंत्र दिवस के दिन कथित रूप से रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार कर लिया.
मीणा ने सुबह झंडारोहण किया और सत्य निष्ठा पर तकरीर की. अब अधिकारी उनकी धन-सम्पति का हिसाब लगा रहे हैं.
अधिकारियों की माने तो आंकड़ा दो सौ करोड़ से ऊपर तक पहुंच गया है. ब्यूरो के अधिकारियों के मुताबिक अब तक की जाँच में मीणा के पास से ढाई करोड़ नकद, 106 प्लॉट, 25 दुकानें, पेट्रोल पंप, मैरेज होम, जेवरात और कृषि भूमि का रिकॉर्ड मिला है.
पैसा गिनने के लिए मशीन
मीणा के पास मिली धन राशि गिनने के लिए मशीन की मदद लेनी पड़ी. जानकारी मिली है कि उन्होंने बिटकॉइन में भी निवेश किया है.
ब्यूरो के अधिकारी क्रिप्टोकरेंसी का पता लगाने के लिए उन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को ढूंढ रहे हैं जिसे मीणा इस्तेमाल करते थे.
अधिकारियों के अनुसार पकड़े जाने के बाद न तो उनके चेहर पर कोई खौफ था न चेहरे पर कोई शिकन.
एंटी करप्शन के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक चंद्रशील ठाकुर ने बीबीसी को बताया कि अभी मीणा से पूछताछ की जा रही है.
मीणा के साथ दलाल कमलेश धाकड़ को भी गिरफ्तार किया गया है. धाकड़ को एक लाख रूपये की रिश्वत देते हुए गिरफ्तार किया गया है.
वह मीणा का दलाल भी हैं. उनके पिता अफीम की खेती करते हैं. जाँच से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि मीणा जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं. पूछताछ में मीणा ने कहा कि उनके पास पुश्तैनी पैसा है.
ब्यूरो को कार्यवाही के दौरान ऐसे दस्तावेज़ मिले हैं, जिससे खुलासा हुआ कि मीणा लोक सभा का चुनाव लड़ना चाहते थे.
वो बीजेपी और कांग्रेस दोनों में से किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ने को तैयार थे.
सेवानिवृति में थोड़ा ही वक्त था
मीणा 1989 में सरकारी सेवा में आये और तरक्की की सीढिया चढ़ते हुए 1997 में भारतीय राजस्व सेवा के सदस्य बन गए.
उनकी सेवानिवृति में थोड़ा ही वक्त बचा था. अधिकारियों ने पूछताछ तेज़ की, तो उन्होंने तबियत नासाज़ होने की बात कही.
इसके बाद तुंरत हॉस्पिटल ले जाया गया. हालांकि डॉक्टरों ने उन्हें स्वस्थ घोषित कर दिया.
ब्यूरो के अधिकारी ठाकुर कहते हैं कि हम उनसे पूछताछ कर यह पता लगाना चाहते हैं कि रिश्वत के इस काम में कौन-कौन शामिल था और यह कितनी बड़ी शृंखला थी.
किसानों और नारकोटिक्स विभाग के बीच का मुखिया
अधिकारियों के अनुसार अफीम की खेती में किसानों और नारकोटिक्स विभाग के बीच मुखिया सेतु होता है. मुखिया ही उस गांव में अफीम की काश्त का नाप तौल और हिसाब करता है.
कमलेश अपने गांव में अपने पिता को मुखिया बनवाना चाहते थे लेकिन पात्रता के बावजूद किसी और को मुखिया बना दिया गया.
ब्यूरो के अधिकारियों की मीणा पर काफी समय से नज़र थी, इसीलिए कमलेश और मीणा के फोन निगरानी में रखे गए.
सब कुछ फ़िल्मी कथा की तरह हुआ. ब्यूरो ने मीणा पर नज़र रखी. गणतंत्र दिवस पर जैसे ही मीणा अपने घर से समारोह के लिए निकले, उनकी गाड़ी को दो नारकोटिक्स कर्मचारी बाइक पर एस्कॉर्ट करते हुए चले.
अभियुक्त मीणा ने झंडारोहण किया और बीस मिनट तक ईमानदारी पर भाषण दिया. फिर घर लौटे और जैसे ही कमलेश ने एक लाख रूपये की रिश्वत दी ,उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
राजस्थान में सवाई माधोपुर ज़िले के मीणा कोई तीन दशक से सरकारी सेवा में हैं. जाँच में लगे अधिकारियों के अनुसार उन्हें निलंबित कर दिया गया है.
मगर इस बारे में कोटा स्थित नारकोटिक्स विभाग से सम्पर्क किया गया तो कहा गया उन्हें इसकी जानकारी नहीं है.
नारकोटिक्स विभाग के मुख्यालय ग्वालियर में भी कोई भी अधिकारी इस मामले में बात करने को तैयार नहीं हुआ. ब्यूरो के मुताबिक, आरोपी मीणा के कई लॉकर और बैंक अकाउंट है.
बड़ी संपत्ति
मीणा के पास जयपुर में 106 भूखंड होने के कागज़ात मिले है.
इनमें खुद मीणा के नाम 23, पुत्र मनीष के नाम 23, पत्नी प्रेमलता के नाम 42, रिश्तेदारों के नाम से 12 और पत्नी के नाम 42 दुकानों के आवंटन के कागज़ मिले हैं.
मुंबई में पुत्र के नाम एक फ्लैट है. इसके अलावा कई वाहन और जयपुर में मकान है. इसमें जयपुर के जगतपुरा स्थित मकान में तीन अटैचियों में रखे दो करोड़ 26 लाख रूपये मिले.
ब्यूरो के अधिकारियों ने अभियुक्त मीणा से पूछा कि जब उनकी पगार डेढ़ लाख रुपया मासिक है तो इतनी संपत्ति कैसे अर्जित की. अब तक की पूछताछ में अभियुक्त ने खुद को पाक साफ़ बताया है.
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भ्रष्टाचार का खुला खेल
उधर अफीम की खेती करने वाले किसानो के संगठन का आरोप है कि पिछले कई सालों से नारकोटिक्स विभाग में भ्रष्टाचार का खुला खेल चल रहा था.
राजस्थान के सात जिलों में अफीम की खेती की इजाज़त है और इसके लिए सरकार किसानों को कुछ शर्तो के साथ खेती की अनुमति देती है.
भारतीय अफीम किसान विकास समिति के अध्यक्ष चौधरी रामनारायण ने कहा 'किसान अर्से से भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं, पर कोई नहीं सुन रहा था. मुझे सुखद आश्चर्य हुआ जब एंटी करप्शन विभाग ने कार्यवाही की क्योंकि हम शिकायतें करते करते थक गए थे
अफीम उत्पादक किसान पिछले 445 दिन से चितौड़गढ़ जिला मुख्यालय पर धरने पर बैठे हैं. इस धरने में अफीम किसानों की समस्याओ के समाधान की मांग की जा रही है. इसमें भ्रष्टाचार का मुद्दा भी शामिल है.
समिति के अध्यक्ष चौधरी कहते है, "हम दिल्ली जाकर जंतर मंतर पर भी धरना दे चुके है. मगर किसान की व्यथा कौन सुनता है. सरकारी अफसरों ने ऐसी-ऐसी नीतियाँ बनाई हैं कि उसके ज़रिए किसानों से रकम वसूली जा सके."
चौधरी का आरोप है कि विभाग के अफसर अवैध काम में लगे हुए है. "वे किसानों को अफीम की खेती का लाइसेंस रद्द करने की धमकी देकर पैसा वसूलते हैं.
वो बताते हैं कि केंद्र सरकार को पचासों चिठ्ठियां लिखी, ज्ञापन भेजे और अपना दर्द बयान किया. मगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा. चौधरी के मुताबिक वे तीन बार अभियुक्त अफसर सहीराम मीणा से मिले और उनके विभाग में रिश्वत के कारोबार की शिकायत की.
कोटा में अफीम किसान संघर्ष समीति के भवानी सिंह धरतीपकड़ ने कहा, "विभाग के अधिकारी किसानों की उपज को घटिया बताकर पट्टा ख़ारिज करने की धमकी देकर पैसा वसूलते रहे."
वो कहते हैं, "जब-जब अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और किसानों की बैठक होती, हम ये मुद्दे उठाते और उम्मीद करते कि कुछ होगा. मगर हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. इन बैठकों में कोटा, चित्तौड़ और झालावाड़ के सांसद भी मौजूद होते थे. हम हर बार भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाते रहे. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई."
धरतीपकड़ कहते है अफीम के खेती से परिवार का गुज़र-बसर हो जाता है, क्योंकि बाकी फसलों में अब पेट पालना मुश्किल होता है. यही अफीम पैदा करने वाले किसान की मजबूरी है और इसका अधिकारी फायदा उठाते रहे हैं.