नुसरत जहां को इस्लाम की दुहाई देने वाले मौलाना भूले गंगा-जमुनी तहजीब!
बेंगलुरू। एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुईं टीएमसी सांसद नुसरत जहां से आजकल मुस्लिम उलेमा बेहद परेशान हैं। वजह है सांसद नुसरत जहां का हिंदू पहनावा और हिंदू देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करना। दरअसल नुसरत जहां ने सांसद बनने के तुरंत बाद बिजनेसमैन निखिल जैन से शादी कर ली थी, जिसके बाद से नुसरत संसद से लेकर सामाजिक कार्यक्रमों में एक हिंदू परिवेश में नजर आती हैं, जिससे उलेमा परेशान हैं।
मुस्लिम उलेमाओं की परेशानी का कारण है नुसरत जहां द्वारा हिंदु देवी-देवताओं का पूजा करना और हिंदू अनुष्ठान का पालन करना है। उलेमाओ का कहना है कि अगर नुसरत जहां मुस्लिम धर्म का त्याग करके जो मर्जी करें, लेकिन मुस्लिम धर्म और मुस्लिम नाम के साथ हिंदू देवी-देवताओ की पूजा नहीं कर सकती है। हालांकि नुसरत जहां ने विरोध कर रहे उलेमाओ को अपनी शैली में जवाब दे दिया है।
दरअसल, दुर्गा पूजा के अवसर पर कोलकाता के एक पंडाल में नुसरत जहां अपने पति निखिल जैन के साथ सिंदूर लगाकर पहुंचीं थीं। इस दौरान नुसरत दुर्गा पंडाल में ढोल की थाप पर जमकर थिरकीं थीं, जो देवबंदी उलेमाओं को बिल्कुल पंसद नहीं आया है, लेकिन उलेमा यह भूल गए हैं कि हिंदुस्तान में गंगा-जमुनी परंपरा भी प्रचलित है, जो हिंदू और मुस्लिम दोनों को एक दूसरे के धर्म का सम्मान करना सिखाती है।
देवबंदी उलेमाओं ने नुसरत जहां की हरकतों को इस्लाम विरूद्ध ठहराते हुए कहा है कि अगर नुसरत को गैर मजहबी काम करने हैं, तो सबसे पहले उन्हें अपना नाम बदल लेना चाहिए। देवबंदी उलेमाओं के सवालों पर जवाब देते हुए नुसरत जहां ने कहा है कि जब उन्हें अपना नाम बदलना होगा तो वह बदल लेंगी और किसी से पूछने भी नहीं जाएंगी।
देवबंदी उलेमा मुफ्ती असद कासमी का कहना है कि टीएमसी सांसद नुसरत जहां हिंदू देवी-देवताओ की पूजा है जबकि इस्लाम में मुसलमानों को सिर्फ अल्लाह की इबादत करने का आदेश है। उन्होंने जो किया वह पाप है। चूंकि उन्होंने धर्म के बाहर शादी की है, तो उन्हें अपना नाम और धर्म दोनों बदल लेना चाहिए। क्योंकि इस्लाम में ऐसे लोगों की जरूरत नहीं है, जो मुस्लिम नाम रखें और इस्लाम और मुसलमानों को बदनाम करें।
मुफ्ती असद कासमी के दर्द पर चोट करते हुए टीएमसी सांसद नुसरत जहां का जवाब में कहना है कि जिन्होंने उन्हे नाम नहीं दिया वो उनके नाम बदलने को लेकर बात क्यों कर रहे हैं। चूंकि उन्हें उनका नाम उनके माता-पिता से मिला है।
बकौल जहां, जिनका मेरे जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं है वो उनके नाम बदलने और न बदलने को लेकर बात न करें तो अच्छा है। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कोई कुछ भी बोले और जब नाम बदलना होगा तो मैं खुद बदल लूंगी। मैं अपने नाम के पीछे सरनेम जोड़ सकती हूं। मुझे पूजा करने में खुशी होती है, आप भी चिल्ल करो, हैप्पी पूजा मनाओं।
इससे पहले नुसरत जहां के खिलाफ उलेमा तब नाराज हुए थे जब नवनिर्वाचित टीएमसी सांसद नुसरत जहां संसद भवन में शपथ के दौरान अपनी मांग में सिंदूर और हाथों में चूड़ी पहनकर पहुंच गईं थी। चूंकि नुसरत के पति निखिल जैन एक जैनी हैं, तो नुसरत जहां के लिए सिंदूर और हाथों में चूड़ी सुहाग की निशानी है, लेकिन उलेमाओं को उनका यह श्रृंगार बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। हालांकि नुसरत ने विवाद पर जवाब देते हुए कहा कि वो संयुक्त भारत का प्रतिनिधुत्व करतीं है, जो जाति, पंथ और धर्म की बाधाओ से परे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि शादी के बाद भी वो एक मुस्लिम है, लेकिन सभी धर्मों का सम्मान करती हैं इसलिए किसी को यह नहीं कहना चाहिए कि वो क्या पहनेंगी और क्या नहीं। दरअसल, सिंदूर और चूड़ी पहनने पर नुसरत जहां के खिलाफ मुस्लिमों के एक ग्रुप ने फतवा जारी करते हुए कहा था कि उनकी हरकते गैर इस्लामिक हैं।
पश्चिम बंगाल के बसीरहाट से सांसद नुसरत जहां ने गत 19 जून को बिजनेसमैन निखिल जैन से तुर्की में शादी रचाई थी, जिसके बाद से नुसरत अपने हिंदू पहनावे के चलते लगातार मुस्लिम धर्मगुरूओं के निशाने पर रहती हैं। दोनों पिछले एक वर्ष से एक दूसरे को डेट कर रहे थे और अंततः दोनों ने एकदूसरे से शादी के बंधन में बंध गए।
इससे पहले, एशिया के सबसे बड़े इस्लामिक स्कूल दारूल- उलूम ने नुसरत जहां पर फतवा जारी किया था। दारूल-उलूम ने नुसरत के हिन्दू व्यक्ति निखिल जैन से विवाह पर आपति जताते हुए जारी फतवे में कहा था कि नुसरत को केवल मुस्लिम से विवाह करना चाहिए था।
वही, विश्व हिंदू परिषद ने नुसरत जहां के दुर्गा पूजा विवाद पर कहा कि जो लोग गंगा-जमुना तहजीब की बात करते हैं और नुसरत जहां को असहिष्णुता का पाठ पढ़ा रहे हैं। वीएचपी ने आगे कहा कि आज सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई मुस्लिम देशों में रामलीला होती है।
उल्लेखनीय है नुसरत जहां पहली मुस्लिम महिला है, जिन्होंने 2019 में लोकसभा में धर्म की जय-जयकारों के बीच ईश्वर के नाम से शपथ लिया था। शपथ ग्रहण के दौरान नुसरत जहां ने बाकायदा वन्दे मातरम का उदघोष भी किया था, जिसे इस्लामी धर्म गुरू इस्लाम में हराम ठहराते आए हैं। यही कारण है कि नुसरत जहां को उनकी धर्म-निरपेक्षता और देश को सर्वप्रथम रखने के लिए खूब सराहना मिली थी।
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