एनआरसी: आम आदमी पार्टी और बीजेपी की जंग से उठा सवाल, दिल्ली में दिल्ली का कौन
असम में एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के लागू होने के बाद से ही कई बीजेपी प्रशासित प्रदेशों में एनआरसी लागू करने की मांग उठ रही है. हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश सहित सात राज्यों के मुख्य मंत्रियों ने समर्थन देते हुए अपने-अपने प्रदेशों में एनआरसी की मांग की है. बीजेपी नेताओं देश की राजधानी दिल्ली में भी इसे लागू करने की मांग की है.
असम में एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के लागू होने के बाद से ही कई बीजेपी प्रशासित प्रदेशों में एनआरसी लागू करने की मांग उठ रही है.
हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश सहित सात राज्यों के मुख्य मंत्रियों ने समर्थन देते हुए अपने-अपने प्रदेशों में एनआरसी की मांग की है.
बीजेपी नेताओं ने केंद्र शासित प्रदेश और देश की राजधानी दिल्ली में भी इसे लागू करने की मांग की है. लेकिन अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बयान के बाद से इस मुद्दे ने अलग ही रंग ले लिया है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक बयान में कहा, "अगर एनआरसी दिल्ली में लागू हो गया, तो सबसे पहले मनोज तिवारी को दिल्ली छोड़नी पड़ेगी."
एक संवाददाता सम्मेलन से ठीक पहले उन्होंने बीजेपी नेता मनोज तिवारी पर तंज़ कसते हुए ये कहा था.
दिल्ली में जल्दी ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में कोई भी पार्टी किसी भी मुद्दे को हाथ से जाने नहीं देना चाहती.
केजरीवाल के बयान के कुछ वक़्त बाद ही बीजेपी नेता मनोज तिवारी ने भी पलटवार किया.
बुधवार को मनोज तिवारी ने केजरीवाल के बयान का उत्तर देते हुए कहा, "हम पूछना चाहते हैं कि क्या अरविंद केजरीवाल जी आप ये कहना चाहते हैं कि पूर्वांचल से आया हुआ व्यक्ति अवैध घुसपैठिया है? दिल्ली से भगाएंगे उसको? प्रवासी लोग जो उत्तरांचल, हिमाचल, ओडिशा, मध्य प्रदेश. हरियाणा और पंजाब से आए हैं, उन्हें आप विदेशी समझते हैं? दिल्ली से भगाएंगे उनको?"
उन्होंने आगे कहा, "आप भी तो उन्हीं में से एक हैं. अगर आपकी ऐसी मंशा है तो मैं समझता हूं कि आप मानसिक रूप से दिवालिया हो गए हैं. दूसरा सवाल यह उठता है कि एक आईआरएस अधिकारी को ये नहीं पता कि एनआरसी क्या है?"
हालांकि ये पूरा मामला यूं ही शुरु नहीं हुआ है.
इसी साल अप्रैल में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भअमित शाह ने पश्चिम बंगाल के दार्जीलिंग में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि देश भर के भीतर एनआरसी लागू करने का पार्टी वादा करती है.
उन्होंने कहा था, "हमने हमारे घोषणा पत्र में वादा किया है कि दोबारा नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद देशभर के अंदर एनआरसी लाया जाएगा और एक-एक घुसपैठिए को चुन-चुनकर निकालने का काम भारतीय जनता पार्टी की सरकार करेगी."
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मई 2019 में हुए आम चुनावों में बहुमत प्राप्त कर एक बार फिर भाजपा की सरकार बनी और अमित शाह गृह मंत्री बन गए.
और फिर इसी साल अगस्त में मनोज तिवारी ने एनआरसी लागू करने की मांग की.
उनका कहना था कि "दिल्ली में भी अवैध घुसपैठिए वेश बदल कर छिपे हुए हैं. इन्हें निकालने का एनआरसी बेस्ट तरीक़ा है."
'दिल्ली में आख़िर दिल्ली का कौन है'
एनआरसी का यह मुद्दा किस तरीक़े से आगे बढ़ेगा यह तो आने वाला वक़्त बताएगा लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि अगले साल दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव तक इसे लेकर बहस का बाज़ार गरम रहेगा.
इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि लंबे वक़्त से देश की राजधानी दिल्ली काम की तलाश करने वालों के लिए आकर्षण का केंद्र रही है. यहां लगभग सभी प्रदेशों के लोग रहते हैं. तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि 'दिल्ली में आख़िर दिल्ली का कौन है'? और क्या 'दिल्ली में एनआरसी' केवल चुनावी जुमला भर है.
पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी का नज़रिया -
पहले तो समझ लेना चाहिए कि एनआरसी का मुद्दा है क्या. बीजेपी की तरफ़ से एनआरसी शब्द का इस्तेमाल क्यों हो रहा है ये समझ से बाहर है.
इसका इस्तेमाल किसने पहले शुरु किया और किस उद्देश्य से किया ये तो बता पाना मुश्किल है लेकिन असम एनआरसी की जो पृष्ठभूमि, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में होने वाले एनआरसी से बिल्कुल अलग है.
असम में विभाजन के बाद से ही लोगों को इधर से उधर होने को लेकर कई तरह की शिकायतें थीं और तभी से वहां एनआरसी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार असम में एनआरसी हुआ है और उसमें भी जो चीज़ें सामने आ रही हैं उन्हें लेकर कई प्रकार के विवाद हैं.
लेकिन दिल्ली में एनआरसी का क्या प्रारूप होगा, कहना मुश्किल है. ऐसे में ये एक राजनीतिक शगूफ़ा लगता है.
बड़े शहरों में रोज़गार के कई मौक़े उपलब्ध रहे हैं या जीवन बेहतर हैं. इस कारण छोटे शहरों से काम की तलाश में लोग आते ही हैं. लंबे वक़्त से दिल्ली जैसे बड़े शहरों की ये समस्या रही है. लेकिन दिल्ली देश की राजधानी है और उसे देश के हर हिस्से से आनेवाले लोगों का स्वागत करना ही चाहिए.
हालांकि दिल्ली की अपनी अलग समस्या है कि यहां तमाम इलाक़ों से लोग आए हैं और भीड़ बढ़ गई है. लेकिन एनआरसी इसका हल नहीं है.
लेकिन कजरीवाल का यह बयान कि 'एनआरसी हुई तो मनोज तिवारी को पहले बाहर जाना होगा' एक तरह से क्या इस बात की ओर भी इशारा है कि भारत तो एक है लेकिन इसके भीतर के राज्यों के भीतर सीमाएं कठोर किये जाने की ज़रूरत है?
इस पर प्रमोद जोशी कहते हैं, "यही बात मुझे समझ नहीं आती है. भले ही ऐसा केजरीवाल कहें या मनोज तिवारी कहें, न तो दिल्ली केजरीवाल का शहर है न ही मनोज तिवारी का."
"दिल्ली तो वो शहर है जिसमें लहरें आती रही हैं. सैंकड़ों सालों से लोग बाहर से आते रहे हैं और यहां से लोग बाहर जाते रहे हैं. ये दरअसल राजनीतिक नारे हैं, नए क़िस्म के शगूफ़े हैं, नए क़िस्म के मुहावरे हैं, जिनके पीछे कोई सोच समझ नहीं है."
प्रमोद जोशी कहते हैं कि ये बेहद निराधार क़िस्म की बातें हैं. राजनीतिक दलों को इन बातों के बजाय दिल्ली की जो समस्याएं है, संभावनाएं हैं उस पर बात करनी चाहिए.