अब लोकसभा और विधानसभा में नामित नहीं होंगे एंग्लो-इंडियन, जानिए वजह
नई दिल्ली। अब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन लोगों को नामित नहीं किया जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार ने इसे लेकर सोमवार को एक बिल पेश किया है, जिसके माध्यम से संविधान में संशोधन किया जाएगा। इसके तहत बीते 70 साल से मौजूद इस प्रावधान को अब आगे नहीं बढ़ाया जाएगा। इसकी समयसीमा अगले साल जनवरी में समाप्त हो जाएगी।
इसी समय लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को 10 साल और बढ़ा दिया गया है। ये बिल लोकसभा में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पेश किया था। जिसका तृणमूल कांग्रेस की सांसद ने विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि एंग्लो इंडियन समुदाय को वंचित किया जा रहा है।
प्रसाद ने इस दौरान कहा कि एक जनगणना के अनुसार एंग्लो इंडियन समुदाय के केवल 296 सदस्य हैं। बता दें लोकसभा में दो एंग्लो-इंडियन कोटे से सामाजिक कार्यकर्ता को बतौर सांसद नामित करने की दशकों पुरानी प्रक्रिया रही है। संविधान के अनुच्छेद 334 के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और एंग्लो इंडियन समुदायों को विधायिका में 70 वर्षों के लिए 25 जनवरी, 2020 तक आरक्षण की व्यवस्था थी।
जो बिल लोकसभा में पेश किया गया था उसमें एंग्लो इंडियन के आरक्षण की बात नहीं की गई है। ऐसे में लोकसभा में विधेयक पेश करते वक्त विपक्ष की ओर से यह सवाल उठाया गया। इस पर कानून मंत्री ने कहा, 'मैं आपको ये बताना चाहता हूं कि हमने इसपर चर्चा करना बंद नहीं किया है। मैं इसे स्पष्ट करना चाहता हूं।'
कौन हैं एंग्लो इंडियन
संविधान के अनुच्छेद 366 (2) के तहत एंग्लो इंडियन ऐसे व्यक्ति को कहा जाता है जो भारत में रहता हो और जिसका पिता या कोई पुरुष पूर्वज यूरोपियन वंश का हो। ये शब्द मुख्य रूप से ब्रिटिश लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो कि भारत में काम कर रहे हों और भारतीय मूल के हों।
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