अब बिहार में चलेगा नीतीश का ‘मी’ समीकरण, धारा 370 पर होगी सुपर ब्रांडिंग
नई दिल्ली। एनडीए में शामिल सभी दलों ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाने का समर्थन किया, सिवाय नीतीश कुमार के। यहां तक कि नरेन्द्र मोदी के कट्टर विरोधी अरविंद केजरीवाल और मायावती तक ने इस फैसले का समर्थन किया। लेकिन मोदी सरकार का सहयोगी दल होने के बावजूद जदयू वे इसका विरोध क्यों किया किया ? अगर जदयू को विरोध ही करना था तो उसने सदन में अपनी बात क्यों नहीं रखी ? राज्यसभा में चर्चा के दौरान जदयू के सांसदों ने सदन का बहिष्कार क्यों कर दिया ? एनडीए का साझीदार हो कर भी नीतीश कुमार आखिर क्यों धारा 370 को हटाने का विरोध कर रहे हैं ?
लालू के MY को तोड़ कर ME के फेर में नीतीश
लालू यादव ने मुस्लिम-यादव यानी माय समीकरण के बल पर बिहार में 15 साल तक राज किया। अब लालू का चर्चित माय समीकरण बिखर चुका है। इस समीकरण का एम यानी मुस्लिम तबका टूट कर नीतीश कुमार की तरफ आने लगा है। लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल सीटों पर जदयू की जबर्दस्त कामयाबी इसका प्रमाण है। नीतीश जब 1994 में लालू यादव से अलग हुए थे तभी से वे अत्यंत पिछड़े वर्ग की राजनीति करते आ रहे हैं। पिछड़े वर्ग में आरक्षण का अधिकतम लाभ केवल यादव, कुर्मी, कुशवाहा और बनिया जाति को मिल रहा है। कुम्हार, कहार, कानू, तुरहा, धानुक, नोनिया जैसी अत्यंत पिछड़ी जातियों को आरक्षण का आनुपातिक लाभ नहीं मिल रहा था। नीतीश ने कुमार ने जब समता पार्टी की राजनीति शुरू की थी तभी से वे इन जातियों के हित की लड़ाई लड़ रहे हैं। पिछड़ी जातियों में इनकी आबादी बहुत अधिक है। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अत्यंत पिछड़ी जातियों पर खास फोकस किया था। इस वर्ग से छह सांसद चुने भी गये थे। 2019 के लोकसभा चुनाव से नीतीश को एक फुलफ्रूफ वोटिंग पैटर्न मिला जिसके आधार पर उन्होंने एक नया समीकरण तैयार किया है जिसे ME का नाम दिया गया है। एम मतलब मुस्लिम और ई मतलब इक्सट्रिमली बैकवार्ड क्लास। नीतीश अब 2020 का विधानसभा चुनाव अब इसी ‘मी' समीकरण पर लड़ना चाहते हैं।
ME के M को मजबूत कर रहे नीतीश
नीतीश कुमार ने हाल ही में लालू के करीब रहे अल्पसंख्यक नेता अली अशरफ फातिमी को जदयू में शामिल कराया है। फातिमी पूर्व केन्द्रीय मंत्री रहे हैं और मिथिलांचल में उनका प्रभाव रहा है। राजद के अब्दुल बारी सिद्दी और कांग्रेस के शकील अहमद पर भी उनकी नजर है। विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश अपनी अल्पसंख्यक राजनीति को चाक चौबंद कर लेना चाहते थे। लेकिन इसी बीच नरेन्द्र मोदी के फैसलों ने नीतीश की योजनाओं के छिन्न भिन्न कर दिया है। तीन तलाक के बाद अब धारा 370 के मुद्दे पर केन्द्र का विरोध नीतीश की मजबूरी है। गैरकश्मीरी मुस्लिम भी धारा 370 को अपने हित से जोड़ कर देखता है। चूंकि नीतीश को थोक भाव में अल्पसंख्यक वोट चाहिए इस लिए वे जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाने का विरोध कर रहे हैं। वे इस विरोध के जरिये यह संदेश देना चाहते हैं कि वे हर हाल में अल्पसंख्यकों के साथ हैं। भाजपा के साथ हैं तो क्या हुआ वे अपने स्टैंड से कभी समझौता नहीं करेंगे। नीतीश बिहार के माइनोरिटी पोलिटिक्स में लालू से भी बड़ा ब्रांड बनना चाहते हैं। वे अपने टारगेट के नजदीक हैं, इस लिए खुद को हार्डलाइनर के रूप में पेश कर रहे हैं।
बिहार में क्या होगा असर
नीतीश कुमार ने जब 1996 में भाजपा के साथ समझौता किया था तब उन्होंने शर्त रखी थी कि यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड, राम मंदिर विवाद और धारा 370 पर अपनी स्वतंत्र राय रखेंगे और इससे कभी समझौता नहीं करेंगे। लेकिन जब केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटा दिया तो नीतीश अग्निपरीक्षा में फंस गये। अब नीतीश के सामने धर्मसंकट है कि वे अपनी कही हुई बात पर कैसे कायम रहें। राज्यसभा में नीतीश के सांसद चाहते तो मोदी सरकार के इस फैसले के विरोध में अपनी बात रख सकते थे। लेकिन इससे बिहार सरकार की सेहत पर असर पड़ सकता था। नीतीश विधानसभा चुनाव तक बिहार सरकार को जोखिम में नहीं डालना चाहते। इस लिए पार्टी के महासचिव केसी त्यागी को यह कहना पड़ा कि हम बिहार में भाजपा के साथ सरकार चला रहे हैं लेकिन एक साथ रह कर भी हम अलग-अलग राय रख सकते हैं। हम धारा 370 को हटाने का विरोध जरूर कर रहे हैं लेकिन सरकार से अलग होने जैसा कोई बात नहीं है। वैसे नीतीश कुमार के बारे में यकीन से कुछ भी कहना मुश्किल है। वे खामोशी अख्तियार किये रहते हैं और लोग पूछते रह जाते हैं कि हंगामा है क्यूं बरपा...।
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