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Maharashtra:नवंबर माह शुरु हो चुका है देवेन्‍द्र फड़णवीस जल्द लेंगे मुख्‍यमंत्री पद की शपथ!

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बेंगलुरु। महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम आए कई दिन बीत चुके हैं लेकिन शिवसेना के रवैये के कारण सरकार अभी तक नहीं बन पायी हैं। साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने वाली भाजपा-शिवसेना के गठबंधन को जनता ने स्‍वीकार का वोट दिया लेकिन मुख्‍यमंत्री की कुर्सी के लोभ में सरकार किसकी बनेगी यह पेंच अभी भी फंसा हुआ है। हालांकि भाजपा के प्रति शिवसेना का रवैया पल में शोला पल में माशा जैसा दिख रहा है। लेकिन यह तय है कि नवंबर माह आ चुका है इसलिए अब महाराष्‍ट्र में देवेन्‍द्र फडणवीज जल्‍द ही दोबारा मुखयमंत्री पद की शपथ लेंगे। यह किसी पंडित की भविष्‍यवाणी नही है बल्कि महाराष्‍ट्र के पांच साल पहले के राजनीतिक हालात पर गौर करें तो वो कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे हैं। जानें फडणवीस का नवंबर महीने से क्या है किस्‍मत कनेक्‍शन ?

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बता दें महाराष्‍ट्र में पांच साल बाद भी महाराष्‍ट्र में बिल्‍कुल वो ही राजनीतिक माहौल है जो 2014 में था। इतने वर्षों में राजनीतिक समीकरण भले ही बदले हो लेकिन देवेन्‍द्र फडणवीस की गाड़ी उसी मोड़ पर आकर अटक गयी है जहां पांच साल पहले फंसी थी। फडणवीस को मुख्‍यमंत्री की कुर्सी पर राजतिलक करवाने के लिए वैसे ही संघर्ष करना पड़ रहा है जैसा 2014 में करना पड़ा था। शिवसेना ही नहीं एनसीपी और कांग्रेस भी वैसी ही भूमिका निभा रहे हैं जैसी उन्‍होंने पहले निभाया थी।

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2014 का लोकसभा चुनाव तो अच्‍छे परिणामों की खुशी के साथ बीत गया थी लेकिन जीत के घमंड के कारण ले बीजेपी और शिवसेना के बीच दूरियां बढ़ने लगी। सीटों के बंटवारे को लेकर शिवसेना की कृपापात्र बनी बीजेपी अचानक आंखे दिखाने लगी। विधानसभा चुनाव 2014 में बीजेपी ने 144 सीटों की मांग रखी, लेकिन शिवसेना के अड़ियल रवैये को देखते हुए 130 सीटों पर आ गयी। शिवसेना और बीजेपी के साथ गठबंधन में आरपीआई, स्वाभिमानी शेतकारी संगठन और राष्ट्रीय समाज पक्ष जैसी पार्टियां भी शामिल थीं। इसलिए बीजेपी को 119 और बाकियों को 18 सीटें ऑफर की गयी।

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2014 का लोकसभा चुनाव तो अच्‍छे परिणामों की खुशी के साथ बीत गया थी लेकिन जीत के घमंड के कारण ले बीजेपी और शिवसेना के बीच दूरियां बढ़ने लगी। सीटों के बंटवारे को लेकर शिवसेना की कृपापात्र बनी बीजेपी अचानक आंखे दिखाने लगी। विधानसभा चुनाव 2014 में बीजेपी ने 144 सीटों की मांग रखी, लेकिन शिवसेना के अड़ियल रवैये को देखते हुए 130 सीटों पर आ गयी। शिवसेना और बीजेपी के साथ गठबंधन में आरपीआई, स्वाभिमानी शेतकारी संगठन और राष्ट्रीय समाज पक्ष जैसी पार्टियां भी शामिल थीं। इसलिए बीजेपी को 119 और बाकियों को 18 सीटें ऑफर की गयी। जैसा बीजेपी ने इस बार किया, शिवसेना ने तब अपने हिस्से में 151 सीटें रखी थीं। बातचीत अटक गयी और चुनाव से पहले ही गठबंधन टूट गया। वहीं एनसीपी और कांग्रेस के बीच भी 144 का चक्कर फंस गया। आम चुनाव में हार के बाद एनसीपी ने कांग्रेस से विधानसभा चुनाव में 144 सीटों की मांग की, साथ ही, मुख्यमंत्री पद पर में 50-50 जैसे इस बार बीजेपी के सामने शिवसेना अड़ी हुई है। अचानक कांग्रेस ने 118 उम्मीदवारों की सूची 25 सितंबर, 2014 को जारी कर दी। फिर 25 साल पुराना बीजेपी-शिवसेना गठबंधन और 15 साल पुराना कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन एक झटके में टूट कर अलग हो गया। चुनाव हुए और नतीजे आये तो किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और फिर से जोड़ तोड़ और सपोर्ट की कवायद शुरु हो गई। बता दें महाराष्ट्र विधानसभा 2014 में 288 सीटों में भाजपा 122 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी , वहीं शिवसेना 63 सीटें जीत कर नबंर दो की पार्टी बनीं थी। जबकि कांग्रेस को 42 सीटें ही मिली हैं। शरद पंवाार की राकांपा ने 41 सीटों पर बाजी मारी थी।

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2014 में 31 अक्टूबर को फडणवीस ने तमाम बाधाओं को पार करते हुए महाराष्‍ट्र के मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली थी। वो भी नवंबर माह था जब 2014 में मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद देवेन्‍द्र को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन की मोहलत दी गयी थी। खूब विरोध और हो हल्‍ले के बीच 12 दिसंबर को फडणवीस की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने विधानसभा में विश्वास मत हासिल भी कर दिया था। प्रतिपक्ष के चुने गए नेता एकनाथा शिंदे ने तब मत विभाजन की मांग की थी लेकिन स्‍पीकर ने मांग ठुकरा दी थी और विश्‍वास प्रस्‍ताव ध्‍वनिमत से पारित हो गया था।
शिवसेना को काउंटर करने के लिए एनसीपी ने बीजेपी को सपोर्ट ऑफर भी किया था। शिवसेना ने तो विश्वास मत के दौरान देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ वोट देने की घोषणा की थी। लेकिन अमित शाह ने उद्धव ठाकरे को शपथग्रहण में शामिल होने के लिए मना लिया था।

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जिसके बाद शिवसैनिक और कांग्रेस के नेता आक्रामक हो गये। वे गवर्नर की गाड़ी रोकने की कोशिश किये और सदन के अंदर जाने के रास्ते में लेट गये। स्पीकर को मार्शल बुलाकर विरोध प्रदर्शन कर रहे नेताओं को हटाना पड़ा। तब एकनाथ शिंदे ने सदन को अंदर जो कुछ हुआ उसे लेकर बीजेपी पर जनमत के अपमान करने का आरोप लगाया था। इस बार भी एकनाथ शिंदे को शिवसेना ने विधायक दल का नेता चुना है, जिसे पार्टी की रानीतिक रणनीति देखी जा रही है क्योंकि अब तक तो वो आदित्य ठाकरे के लिए मुख्यमंत्री पद की मांग पर अड़ी हुई थी। बीजेपी अपनी तरफ से अब भी शिवसेना के लिए डिप्टी सीएम का पद ऑफर कर रही है। वर्चस्व की जो लड़ाई शिवसेना 2014 में लड़ रही थी, वहीं अभी भी कर रही है। शिवसेना ने तेवर तो बरकरार रखा है लेकिन तरीका थोड़ा बदल लिया है। ये तो तय है की देवेन्‍द्र फडणवीज ही नवंबर माह में मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेंगे और बीजेपी शिवसेना के गठबंधन की ही सरकार बनेगी!

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Comments
English summary
There were similar situations in Maharashtra even after the Maharashtra Legislative Assembly in 2014, which is still after the 2019 assembly elections. Devendra Fadnavis had to fight for the chief minister's chair. Know what was the situation then and how Fadnavis will take oath as CM in the month of November itself.
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