बिहार में NOTA ने भी बिगाड़ा कई का खेल, 13 सीटों पर रहा तीसरे नंबर पर
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 में बिहार की ज्यादातर सीटों पर मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के उम्मीदवारों के बीच था। बिहार की 40 सीटों पर कुल 626 कैंडिडेट चुनावी मैदान में थे। जिनमें से ज्यादातर निर्दलीय या क्षेत्रीय दलों से थे और 120 से अधिक गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियां से थे। बिहार मतदान में राष्ट्रीय औसत से बिहार भले ही पीछे रहा हो, लेकिन नोटा के इस्तेमाल में राज्य पूरे देश में सबसे अव्वल रहा है। बिहार के 40 लोकसभा क्षेत्रों में से एक तिहाई पर लोकसभा चुनाव 2019 में मतदाताओं के लिए नोटा तीसरे सबसे पंसदीदा विकल्प के रूप में सामने आया है।
बिहार में कुल 8.17 लाख मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया
बिहार में कुल 8.17 लाख मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया है। कुल सीटों पर नोटा का इस्तेमाल काफी बड़ी संख्या में किया गया था। जिसके चलते टॉप दो प्रत्याशियों के बीच वोटों का काफी बड़ा अंतर देखने को मिला। कई जगहों पर नोटा के चलते एनडीए के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। गोपालगंज संसदीय सीट पर सबसे ज्यादा 51,660 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। यहां कुल 5.04 फीसदी मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया है, जो देश में सबसे ज्यादा है।
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बिहार की तीन आरक्षित सीटों पर जमकर हुआ नोटा का इस्तेमाल
इसके बाद बिहार के पश्चिम चंपारण जहां 45,606 लोगों ने नोटा दबाया। इसी सीट से भाजपा के डॉ संजय जायसवाल ने आरएलएसपी के ब्रजेश कुमार कुशवाहा लगभग 3 लाख वोटों के अंतर से मात दी है। इसके बाद नवादा 3.73 फीसदी और जहानाबाद संसदीय सीट पर 3.37 फीसदी मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया है। विशेष रूप से नोटा का उपयोग बिहार की तीन आरक्षित सीटों पर अधिक किया गया है। बिहार के अररिया और कटिहार लोकसाभा सीटें, जहां मुस्लिम मतदाताओं की एक बड़ी संख्या है और इन सीटों से अल्पसंख्यक समुदाय के सांसदों को एनडीए उम्मीदवारों के हाथों इस बार पराजय झेलनी पड़ी है
2014 में समस्तीपुर में नोटा का सबसे अधिक हुआ था इस्तेमाल
जमुई, जहां लोजपा के चिराग पासवान ने राजद के सुधांशु शेखर भास्कर को 8,5000 मतों से हराया। इस पर NOTA के तहत 39,450 मत डाले गए। यह लोकसभा नोटा के मामले में तीसरे स्थान पर रही। नोटा का उपयोग बिहार में चौथे नंबर पर समस्तीपुर में हुआ जहां के 35,417 मतदाताओं ने इसका उपयोग किया। इस सीट पर एलजीपी के रामचंद्र पासवान ने कांग्रेस के अशोक कुमार को 1.52 लाख वोटों से हराया। वहीं, पूर्वी चंपारण में 22,706, नवादा में 35,147, गया में 30,030, बेगूसराय में 26,622, खगड़िया में 23,868 और महाराजगंज में 23,404 मतदाताओं ने नोटा को अपने पसंदीदा विकल्प के रूप में चुना। 2014 के लोकसभा चुनाव में समस्तीपुर में नोटा वोटों की अधिक संख्या देखी गई थी, जब पासवान ने कुमार को केवल 6,872 वोटों से हराया था।
राज्य की 12 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे
राज्य की 12 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे। राज्य में राष्ट्रीय दलों में बीएसपी ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। बसपा पांच सीटों पर तीसरे स्थान पर रही। इसी तरह, राजस्थान में 3.27 लाख मतदाताओं ने नोटा (इनमें से कोई नहीं) का विकल्प चुना। राजस्थान में नोटा में डाले गए मत भाकपा, माकपा, और बसपा के उम्मीदवारों को मिले वोटों से ज्यादा रहे हैं। बता दें कि, भारत में उम्मीदवारों की सूची में नोटा को 2013 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद शामिल किया गया था। इससे मतदाताओं को एक ऐसा विकल्प मिला कि अगर वह अपने क्षेत्र के किसी उम्मीदवार को पसंद नहीं करते हैं तो वह अपना मतदान नोटा पर कर सकते हैं।
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