यूपी में यादवों ने नहीं, जाटवों ने छोड़ा मायावती का साथ? चौंकाने वाला खुलासा
नई दिल्ली- यूपी की राजनीति में इस बात पर चर्चा खत्म ही नहीं हो रही है कि क्या वाकई में इस लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के कोर वोटर यादवों ने उससे मुंह फेर लिया है? क्योंकि, मायावती (Mayawati) ने इसी दावे के आधार पर गठबंधन तोड़ लिया है। इससे पहले हम तथ्यों के आधार पर ये विश्लेषण कर चुके हैं कि मायावती के दावों में दम नहीं है और अगर बीएसपी (BSP) को यादवों के वोट नहीं मिले होते, तो उसके ज्यादातर उम्मीदवार हार जाते। लेकिन, अब ये आंकड़े सामने आए हैं कि यादवों ने नहीं, बल्कि दलितों ने महागठबंधन की राजनीति से ऊब कर मायावती (Mayawati) से मुंह फेर लिया और बीजेपी (BJP) की ओर चले गए। इसमें भी सबसे बड़ा खुलासा ये हुआ है कि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के कोर वोटरों से कहीं ज्यादा, मायावती के खुद कोर वोटरों यानी जाटवों (Jatav) ने भी इसबार उनका साथ छोड़ना शुरू कर दिया है।
महागठबंधन को नहीं मिला दलितों का पूरा साथ
'इंडिया टुडे एक्सिस माय इंडिया' पोस्ट पोल सर्वे के जो विश्लेषण हो रहे हैं, उससे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की जातिवादी राजनीति की जमीन हिल गई है। इस सर्वे के आधार पर यूपी में इस लोकसभा चुनाव में यादवों और दलितों के वोटिंग पैटर्न के जो आंकड़े जारी किए गए हैं, उससे बहनजी की नींद उड़ जाएगी। जब बीएसपी (BSP) सुप्रीमो को अहसास होगा कि उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में ज्यादातर अनुसूचित जातियों (SC) ने उनकी राजनीति से तंग आकर अपने वोटों से बीजेपी (BJP) को झोली भर-भर कर वोट दिए हैं, तो उनके होश उड़ जाएंगे। शायद हर चुनाव में मायावती (Mayawati) के साथ मजबूती के साथ डटा रहने वाले उनके इस वोट बैंक का अब उनकी राजनीति से मोहभंग हो चुका है।
60% गैर-जाटव दलितों ने थामा 'कमल'
अब जो आंकड़े सामने आए हैं उसके मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में महज 30% गैर-जाटव दलितों (Dalits) ने ही महागठबंधन के समर्थन में वोट डाले। जबकि, 60% गैर-जाटव दलितों ने अपना वोट सीधे-सीधे मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी के उम्मीदवारों को दे दिया। यूपी की राजनीति के लिहाज से यह बहुत बड़ा बदलाव है और अब इन जातियों को बसपा (BSP) समर्थक कहना बहुत बड़ी गलती होगी। क्योंकि, फिलहाल तो वो पूरी तरह से भाजपा (BJP) एवं मोदी समर्थक बने नजर आ रहे हैं। वैसे गौर कीजिए तो उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बीएसपी (BSP) के गैर-जाटव दलित वोट बैंक में 2014 में ही बीजेपी ने सेंध लगा दी थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी इसका प्रभाव रहा। दलितों (Dalits) के इस बड़े वोट बैंक के वोटिंग पैटर्न में आए परिवर्तन के चलते ही 2014 में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी और 2017 में भी वह सिर्फ 19 सीटों पर सिमट कर रह गई थी। लेकिन, इसबार समाजवादी पार्टी (SP) और आरएलडी (RLD) की मदद से वह 10 सीटें जीतने में कामयाब हो गई।
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21% जाटवों ने छोड़ा 'माया' का साथ
2014 में जो ट्रेंड गैर-जाटव दलित वोटरों में शुरू हुआ था, 2019 के चुनाव में उसका असर मायावती (Mayawati) के कोर वोटर जाटवों (Jatavs) पर भी व्यापक रूप से पड़ा है। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि अब जाटवों (Jatavs) का भी बहनजी से भरोसा उठ रहा है। स्थिति ऐसी हो चुकी है कि इसबार 21% जाटवों (Jatavs) ने मायावती के नाम पर नहीं, मोदी और बीजेपी (BJP) के नाम पर वोट दिया है। हालांकि, फिर भी 74% जाटवों ने मायावती के नाम पर महागठबंधन को ही वोट दिया है। यानी बसपा (BSP) सुप्रीमो के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। उनका जनाधार खिसक चुका है। अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ताजा आंकड़े देखेंगे, तो जरूर राहत की सांस लेंगे। क्योंकि, अपने कैडर्स को लाइन पर रखने की जरूरत बुआ को उनसे कहीं ज्यादा है।
यादवों के बारे में सामने आई है ये सच्चाई
ताजा आंकड़ों के मुताबिक मायावती की तुलना में अखिलेश यादव का कोर वोट वोटर उनके साथ ज्याद मजबूती के साथ डटा हुआ है। हालांकि, यह सच्चाई है कि यादवों (Yadavs) के एक अच्छे-खासे हिस्से ने भी बीजेपी (BJP) की ओर रुख कर लिया है। लेकिन, 72% यादवों (Yadavs) ने महागठबंधन को ही वोट दिया है। अलबत्ता, 20% यादवों ने जरूर मोदी के नाम पर वोट दिया है। यानी भले ही यादवों के एक वर्ग ने अखिलेश की बजाय मोदी पर ज्यादा यकीन दिखाया है, लेकिन फिर भी इस मामले में बीएसपी के सपोर्टर माने जाने वाले दलित वोटरों की तादाद इससे कहीं ज्यादा है।
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