नेपाल, भूटान और श्रीलंका जैसे छोटे देशों में है NRC, जानिए फिर भारत में क्यों हो रहा विरोध?
बेंगलुरू। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता देने के लिए भारत सरकार द्वारा लाए गए नागरिकता संशोधन एक्ट का विरोध अब तक नहीं थमा है। राजधानी दिल्ली में शाहीन बाग इलाके में जारी अनिश्चितकालीन धरना इसके सबूत हैं।
सीएए में चिन्हित तीन इस्लामिक राष्ट्र क्रमशः अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी धर्म के अनुयायी, जो पिछले कई वर्षों से भारत में एक शरणार्थी का जीवन गुजार रहे हैं, उन्हें सरल तरीके से नागिरकता प्रदान करने के लिए यह कानून लाया गया है।
इस कानून में मुस्लिम को बाहर रखा गया है, क्योंकि सीएए में चिन्हित तीनों राष्ट्र इस्लामिक राष्ट्र हैं, जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, वहां उन्हें कौन प्रताड़ित कर सकता है। सीएए से मुस्लिम को बाहर रखने के पीछे आधार था कि एक मुस्लिम इस्लामी कानून और शरिया संचालित राष्ट्र में रहना पसंद करता है, वह क्यों बहुसंख्यक हिंदुस्तान में आना पसंद करेगा?
चूंकि तीनों चिन्हित देश इस्लामिक राष्ट्र हैं तो माना गया कि मुस्लिमों का हित ज्यादा सुरक्षित होगा और वहां उन्हें हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसियों की तुलना में धार्मिक आधार पर प्रताड़ना का कोई संकट भी नहीं है। फिर भी अगर कोई अफगानी,पाकिस्तानी, बांग्लादेशी नागरिक हिंदुस्तान की नागरिकता चाहिए, तो सीएए में उन्हें प्रतिबंधित करने का कोई प्रावधान नहीं है।
पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के आंकड़े पिछले 70 वर्ष के अंतराल में तीनों इस्लामिक राष्ट्रों में तेजी से घटी अल्पसंख्यकों की आबादी से लगाया जा सकता हैं। पाकिस्तान में वर्ष 1951 में 22 फीसदी से अधिक हिंदू आबादी थी, लेकिन 2021 तक आते-आते वहां हिंदुओं की आबादी सिमट कर 2 फीसदी पहुंच गई है।
इसी तरह अफगानिस्तान में तालिबानी का वर्चस्व बढ़ा तो वहां रह रहे हिंदू और सिख आबादी को भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी। वहीं, बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) में आजादी के बाद मौजूद 30 फीसदी से अधिक हिंदू आबादी अब सिमट कर 10 फीसदी पर पहुंच गई है।
चूंकि माना जाता है कि हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों के लिए हिंदुस्तान एक विकल्प है जबकि प्रताड़ित मुस्लिमों के लिए पूरी दुनिया में कही भी जा सकते हैं, क्योंकि पूरी दुनिया में 56 से अधिक इस्लामिक राष्ट्र हैं। पाकिस्तान का उदाहरण लें, तो क्रिकेटर मोहम्मद युसुफ, जो पहले युसुफ योहन्ना थे, उन्हें प्रताड़ना के शिकार होकर ही धर्म बदलना पड़ा। इसी तरह हिंदू क्रिकेटर दानिश कनेरिया को धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा और इसका असर उनके क्रिकेटिंग कैरियर पर भी पड़ा।
पाकिस्तान क्रिकेटर दानिश कनेरिया को पाकिस्तान के नेशनल क्रिकेट टीम में बने रहने के लिए धर्म परिवर्तन का दवाब डाला गया। इसकी पुष्टि पूर्व क्रिकेटर और रावलपिंडी एक्सप्रेस के नाम से मशूहर शोएब अख्तर ने भी हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में किया कि कैसे एक अच्छे क्रिकेटर का कैरियर पाकिस्तान में चौपट हो गया। अभी हाल में दानिश कनेरिया ने तंग आकर पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान जाने की धमकी दी है।
बडा सवाल यह है कि भारत में सीएए का विरोध क्यों हो रहा है जबकि उसमें किसी भारतीय मुस्लिम की नागरिकता पर कोई खतरा नहीं हैं और इसका भारतीय नागरिकों की नागरिकता से लेना-देना ही नहीं हैं। एक बार माना जा सकता है कि असम एनआरसी में बाहर हुए 50 लाख से अधिक नागिरकों के डर में ऐसा किया जा रहा है।
यह डर इसलिए है, क्योंकि माना जा रहा है कि सीएए के बाद सरकार एनआरसी लागू करेगी तो पूरे हिंदुस्तान में अवैध रूप से रह रहे घुसपैठियों को बाहर होना पड़ेगा। हालांकि पूरे भारत में एनआरसी लागू करने की अभी सरकार की योजना नहीं है, लेकिन एनआरसी होगा, इसमें कोई दो राय नहीं हैं।
यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि क्या सिर्फ भारत पहला ऐसा देश है, जहां एनआरसी लागू करने की कवायद शुरू की गई है जबकि सीएए में चिन्हित तीनों देश क्रमशः अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश ही नहीं, बल्कि म्यांमार, भूटान, नेपाल और श्रीलंका में भी एनआरसी लागू है। फिर भारत में एनआरसी लागू करने में क्या टंटा है।
एनआरसी के खिलाफ निःसंदेह राजनीतिक ड्रामा है, जिसे मुस्लिम तुष्टिकरण और मुस्लिम वोट बैंक के लिए किया जा रहा है। सीएए और एनआरसी की प्रबल विरोधी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सियासी गणित से इसको आसानी से समझा जा सकता हैं, जहां 50 लाख से अधिक अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए होने की संभावना है, जिनके नाम मतदाता सूची में बाकायदा दर्ज है।
आंकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि असम के बाद पश्चिम बंगाल दूसरा ऐसा प्रदेश है, जहां सर्वाधिक संख्या में अवैध घुसपैठिए डेरा जमाया हुआ है, जिन्हें पहले पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकारों ने वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया। जब ममता बनर्जी बंगाल की सत्ता में आईं तब से वह अवैध रूप से घुसे घुसपैठियों का पालन-पोषण वोट बैंक के तौर पर कर रही हैं।
दिलचस्प बात यह है कि यही ममता बनर्जी जब सत्ता में नहीं थीं और वर्ष 2005 में जब पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार थी, तो उन्होंने कहा था कि पश्चिम बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है और वोटर लिस्ट में बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल हो गए हैं।
दिवंगत अरुण जेटली ने ममता बनर्जी के उस बयान को री-ट्वीट भी किया था, जिसमें उन्होंने लिखा, '4 अगस्त 2005 को ममता बनर्जी ने लोकसभा में कहा था कि बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है, लेकिन वर्तमान में ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल के उन्हीं घुसपैठियों की संरक्षक बन गईं हैं।
पश्चिम बंगाल में 50 लाख मुस्लिम घुसपैठियों के होने के दावा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने किया हैं। उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान टीएमसी को होगा, क्योंकि 50 लाख घुसपैठिए पश्चिम बंगाल विधानसभा के अभी 100 से अधिक सीटों की जीत-हार को सुनिश्चित करते हैं।
यही कारण है कि ममता बनर्जी लगातार एनआरसी का विरोध कर रही है। उनके एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू होने के पीछे का दर्द सत्ता है, क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती हैं कि अगर 50 लाख घुसपैठिए बाहर हो गए तो उनकी सत्ता को जाने में देर नहीं लगेगी।
ममता का यह डर 2019 लोकसभा चुनाव के बाद अधिक बढ़ गया है कि क्योंकि बीजेपी ने इस बार बीजेपी ने ममता के गढ़ में टीएमसी को कड़ी चुनौती दी थी और 18 सीटों पर जीत दर्ज की है। यह माना जाता है कि टीएमसी अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों के एकमुश्त वोट से प्रदेश में टीएमसी लगातार तीन बार प्रदेश में सत्ता का सुख भोग रही है।
शायद यही वजह है कि एनआरसी को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सबसे अधिक मुखर है, क्योंकि एनआरसी लागू हुआ तो कथित 50 लाख घुसपैठिए को बाहर कर दिया जाएगा। इसकी बानगी असम एनआरसी के नतीजों में मिलती हैं, जहां नेशनल सिटीजन रजिस्टर लागू किया गया था।
सरकार की यह कवायद असम में अवैध रूप से रह रहे अवैध घुसपैठिए का बाहर निकालने के लिए किया था। असम एनआरसी के नतीजों में करीब 50 लाख नागिरक अपनी नागरिकता साबित करने में असफल रहे थे। यह आंकडा किसी भी राष्ट्र में गैरकानूनी तरीके से रह रहे किसी एक देश के प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या थी।
सवाल सीधा है कि जब देश में अवैध घुसपैठिए की पहचान होनी जरूरी है तो एनआरसी का विरोध क्यूं हो रहा है, इसका सीधा मतलब राजनीतिक है, जिन्हें राजनीतिक पार्टियों से सत्ता तक पहुंचने के लिए सीढ़ी बनाकर वर्षों से इस्तेमाल करती आ रही है।
शायद यही कारण है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जैसे कानून की कवायद को अब तक तवज्जो ही नहीं दिया गया। असम में एनआरसी सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद संपन्न कराया जा सका और जब एनआरसी जारी हुआ तो 50 लाख लोग नागरिकता साबित करने में असमर्थ पाए गए।
हालांकि जरूरी नहीं है कि जो नागरिकता साबित नहीं कर पाए है वो सभी घुसपैठिए हो, यही कारण है कि असम एनआरसी के परिपेच्छ में पूरे देश में एनआरसी लागू करने का विरोध हो रहा है, लेकिन इसका बिल्कुल यह मतलब नहीं है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर नहीं होना चाहिए।
भारत में अभी एनआरसी पाइपलाइन का हिस्सा है, जिसकी अभी ड्राफ्टिंग होनी है। फिलहाल सीएए के विरोध को देखते हुए मोदी सरकार ने एनआरसी को पीछे ढकेल दिया है, लेकिन यह सुनकर अब आश्चर्य में पड़ जाएंगे कि भारत को छोड़कर सभी पड़ोसी राष्ट्रों में नागरिकता रजिस्टर कानून लागू हैं, इनमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश समेत सभी पड़ोसी देश शामिल हैं।
पाकिस्तान में नागरिकता रजिस्टर काननू लागू है, जिसको CNIC कहा जाता है। अफगानिस्तान में नागरिकता रजिस्टकर कानून लागू है, जिसको E-Tazkira पुकारा जाता है। इसी तरह बांग्लादेश में नागरिकता रजिस्टर कानून लागू है, जिसको NID पुकारते हैं। वहीं, नेपाल में नागरिकता रजिस्टर कानून है, जिसे राष्ट्रीय पहचानपत्र कहते हैं और श्रीलंका में भी नागरिकता रजिस्टार कानून है, जिसे NIC के नाम से जाना जाता है।
सवाल है कि आखिर भारत में ही क्यों राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC)कानून बनाने को लेकर बवाल हो रहा है। यह इसलिए भी लाजिमी है, क्योंकि आजादी के 73वें वर्ष में भी भारत के नागरिकों को रजिस्टर करने की कवायद क्यों नहीं शुरू की गई। क्या भारत धर्मशाला है, जहां किसी भी देश का नागरिक मुंह उठाए बॉर्डर पार करके दाखिल हो सकता है।
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पाकिस्तान में है कम्प्यूटरीकृत राष्ट्रीय पहचान पत्र (CNIC)
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में, वहां के सभी वयस्क नागरिकों को 18 वर्ष की आयु तक पहुंचने पर एक यूनिक संख्या के साथ कम्प्यूटरीकृत राष्ट्रीय पहचान पत्र (CNIC) के लिए पंजीकरण करना होता है। यह पाकिस्तान के नागरिक के रूप में किसी व्यक्ति की पहचान को प्रमाणित करने के लिए एक पहचान दस्तावेज के रूप में कार्य करता है।
अफगानिस्तान में है इलेक्ट्रॉनिक अफगान पहचान पत्र (e-Tazkira)
पाकिस्तान की तरह ही उसके पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में भी इलेक्ट्रॉनिक अफगान पहचान पत्र (e-Tazkira) वहां के सभी नागरिकों के लिए जारी एक राष्ट्रीय पहचान दस्तावेज है, जो अफगानी नागरिकों की पहचान, निवास और नागरिकता का प्रमाण है।
बांग्लादेश में है राष्ट्रीय पहचान पत्र यानी स्मार्ट NID कार्ड
पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश, जहां से भारत में अवैध घुसपैठिए के आने की अधिक आशंका है, वहां के नागरिकों के लिए बांग्लादेश सरकार ने राष्ट्रीय पहचान पत्र (NID) कार्ड है, जो प्रत्येक बांग्लादेशी नागरिक को 18 वर्ष की आयु में जारी करने के लिए एक अनिवार्य पहचान दस्तावेज है। सरकार बांग्लादेश के सभी वयस्क नागरिकों को स्मार्ट एनआईडी कार्ड नि: शुल्क प्रदान करती है।
नेपाल में भी प्रत्येक नागरिक के लिए है विशिष्ट पहचान संख्या
पड़ोसी मुल्क नेपाल का राष्ट्रीय पहचान पत्र एक संघीय स्तर का पहचान पत्र है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशिष्ट पहचान संख्या है जो कि नेपाल के नागरिकों द्वारा उनके बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय डेटा के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है।
श्रीलंका में भी नागरिकों के लिए है नेशनल आइडेंटिटी कार्ड (NIC)
पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में भी नेशनल आइडेंटिटी कार्ड (NIC) श्रीलंका में उपयोग होने वाला पहचान दस्तावेज है। यह सभी श्रीलंकाई नागरिकों के लिए अनिवार्य है, जो 16 वर्ष की आयु के हैं और अपने एनआईसी के लिए वृद्ध हैं।
एक भारत ही है, जो धर्मशाला की तरह खुला हुआ है
एक भारत ही है, जो धर्मशाला की तरह खुला हुआ है और कोई भी कहीं से आकर यहां बस जाता है और राजनीतिक पार्टियों ने सत्ता के लिए उनका वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती हैं। भारत में सर्वाधिक घुसपैठियों की संख्या असम, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में बताया जाता है।
2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठी मौजूद
भारत सरकार के बॉर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। हाल के अनुमान के मुताबिक देश में 4 करोड़ घुसपैठिये मौजूद हैं। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की सरकार ने वोटबैंक की राजनीति को साधने के लिए घुसपैठ की समस्या को विकराल रूप देने का काम किया।
बांग्लादेशी घुसपैठियों की सबसे बड़ी पैरोकार हैं ममता बनर्जी
कहा जाता है कि तीन दशकों तक राज्य की राजनीति को चलाने वालों ने अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण देश और राज्य को बारूद की ढेर पर बैठने को मजबूर कर दिया। उसके बाद राज्य की सत्ता में वापसी करने वाली ममता बनर्जी बांग्लादेशी घुसपैठियों के दम पर मुस्लिम वोटबैंक की सबसे बड़ी धुरंधर बन गईं।
2024 तक सभी घुसपैठियों को देश से बाहर करने का किया है ऐलान
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूरे देश में एनआरसी लागू करने की प्रतिबद्धता जता चुके हैं और उन्होंने कहा है कि वर्ष 2024 तक देश के सभी घुसपैठियों को बाहर कर दिया जाएगा। संभवतः गृहमंत्री शाह पूरे देश में एनआरसी लागू करने की ओर इशारा कर रहे थे। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश के विकास मॉडल के लिए यह जानना जरूरी है कि भारत में वैध नागरिकों की संख्या कितनी है।