अगर समय से नहीं लगता लॉकडाउन, तो अब तक करोड़ों भारतीयों की जान ले लेता कोरोना?
नई दिल्ली। भारत कोरोनावायरस संक्रमण मामले में दुनिया में दूसरा सर्वाधिक पीड़ित देश है और कोरोना रोगियों की मौत के मामले में अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरा देश है, जहां सर्वाधिक मौंते हुई हैं, लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह कि अगर आबादी के लिहाज से भारत और अन्य विकसित देशों की तुलना करेंगे तो पाएंगे भारत की स्थिति न केवल संक्रमितों, बल्कि संक्रमित रोगियों की मौत के मामले में काफी बेहतर है, जबकि यूरोपीय और अमेरिकी देशों की तुलना में भारत की स्वास्थ्य प्रणाली किसी भी पैमाने पर नहीं टिकती है।
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140 करोड़ आबादी वाले भारत में शुरूआती लॉकडाउन निर्णायक कदम था
निः संदेह इसका श्रेय लगभग 140 करोड़ की आबादी वाले भारत में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को दिया जा सकता है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण कदम शुरूआती लॉकडाउन की घोषणा को लिया जा सकता है। नवंबर में चीन के वुहान सिटी से आई महामारी की आफत जब चीन से दूसरे देशों की ओर बेरोक-टोक पहुंच रहा था, उसी दौरान केंद्र सरकार ने पूरे देश में कर्फ्यू जैसे अभनिव प्रयोग किए और लोगों घरों में रहने के लिए कहा और जैसे ही महामारी अपना रौद्र रूप दिखाने लगी, भारत सरकार ने पूरे देश में गत 24 मार्च की आधी रात से राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर दी।
ऐसे समय में जब कोरोनावायरस पूरी दुनिया में तेजी से फैल रहा था
यकीन कीजिए, अगर ऐसे समय में जब कोरोनावायरस पूरी दुनिया में तेजी से फैल रहा था, उसी दौरान अगर भारत सरकार ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों अन्य परिवहन पर रोक नहीं लगाई होती तो, क्या स्थिति भारत होती, क्योंकि भारत की जर्जर स्वास्थ्य सेवाएं मरीजों का इलाज तो छोड़िए, उनका सामान्य उपचार के लिए भी तैयार नहीं थी। ऐसी स्थिति में भारत की 140 करोड़ जनसंख्या में तेजी से कोरोना महामारी फैलने से रोक पाना मुश्किल हो जाता है। भारत की आबादी और भारतीयों की सिविक सेंस को के लिए लिहाज से शुरूआती लॉकडाउन वरदान साबित हुआ है।
सर्वाधिक रूप से प्रभावित अमेरिका की आबादी महज 33 करोड़ है
तुलनात्मक अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि यूरोपीय देश इटली, ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों की अग्रणी हेल्थ सेक्टर और भारत की हेल्थ केयर सेक्टर की तुलना करना बेमानी है। कोरोना संक्रमण में सर्वाधिक रूप से प्रभावित अमेरिका की आबादी महज 33 करोड़ है, जहां संक्रमितों की संख्या करीब 1 करोड़ 25 लाख 89 हजार है यानी अमेरिकी की पूरी आबादी का करीब 4 फीसदी संक्रमित है और अमेरिका में अब तक मरने वालों रोगियों की संख्या 2 लाख 62 हजार से अधिक है, जो अमेरिकी संक्रमित हुए कुल आबादी का लगभग 2.15 फीसदी बैठता है।
भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 91 लाख से अधिक है
भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 91 लाख से अधिक है, जो भारत की लगभग 140 करोड़ की आबादी की तुलना 0.65 फीसदी है। वहीं, भारत में कोरोना संक्रमित 91 लाख से अधिक मरीजों में से केवल एक लाख 33 हजार यानी महज 1.47 फीसदी मरीजों की मौत हुई है। कहने का अर्थ है कि भारत में कोरोना संक्रमितों का दर और कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत का औसत अमेरिका, इटली, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे विकसित देशों की तुलना में बहुत बेहतर हैं। इसका पूरा क्रेडिट केंद्र में शासित मोदी सरकार को नहीं देने का कोई कारण नहीं हैं।
दुनिया के नंबर एक हेल्थ केयर प्रणाली वाले इटली की हालत खराब हुई
दुनिया के नंबर एक हेल्थ केयर प्रणाली वाले देश में शुमार इटली का उदाहरण भी भारत सरकार द्वारा लिए गए शुरूआती लॉकडाउन के फैसले को सही ठहराता है, जिससे भारत दूसरे देशों की तुलना में महामारी की भयावहता में निकलने में सफल रहा। इटली की आबादी लगभग 6 करोड़ है। महामारी के शुरूआत दौर में सर्वाधिक प्रभावित रहे इटली में संक्रमितों की संख्या का आंकड़ा लगभग 14 लाख 8 हजार है। 6 करोड़ की आबादी वाली इटली में संक्रमितों का यह औसत करीब 2.4 फीसदी है। इटली में 49 हजार से अधिक की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जो कुल संक्रमित मरीज की मौत का 3.5 फीसदी है।
लॉकडाउन का फैसला मार्च के बजाय अप्रैल-मई में लिया होता तो?
कहने का मतलब है कि भारत सरकार द्वारा अगर लॉकडाउन मार्च के बजाय अप्रैल अथवा मई में लगाने का निर्णय लिया होता तो भारत में न केवल संक्रमित मरीजों का आंकड़ा, बल्कि मृतकों का आंक़ड़ा वर्तमान आकंड़े से पांच और दस गुना अधिक हो सकता था। इस लिहाज भारत की आबादी से देखें तो भारत में अभी 91 लाख संक्रमित हैं, जिसका पांच गुना 4 करोड़ 55 लाख आबादी और दस गुना 9 करोड़ 10 लाख आबादी संक्रमित होती। इसी तरह मृतकों की मौजूदा संख्या यानी 1,33,000 का पांच गुना यानी 6 लाख 65 हजार और दस गुना यानी 13 लाख 30 हजार हो सकती थी।
आबादी की तुलना में भारत की स्वाथ्य सेवा,अस्पताल व डाक्टर बेहद कम हैं
भारत की आबादी और उसकी तुलना में भारत की स्वाथ्य सेवाएं, अस्पतालों और डाक्टरों की संख्या को देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत बहुत बड़ी आफत में बहुत ही करीने से बचने में सफल रहा है। चूंकि अभी कोरोना महामारी खत्म नहीं हुआ है और खतरा लगातार बरकरार है, इसलिए आगे की लड़ाई सभी भारतीयों को 7-8 महीने की आंशिक और पूर्ण लॉकडाउन के दौरान तैयार हुई स्वास्थ्य सेवाओं के दायरे को देखते हुए सुझाए गए दिशा-निर्देशों का पालन का ईमानदारी करनी चाहिए वरना स्थिति अभी भी भयावह होने में समय नहीं लगेगा।
10 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में नए मामलों में फिर तेजी आई है
ऐसा इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि पिछले 15 से 20 दिनों में 10 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में नए मामलों में एक बार फिर आई प्रगति ने प्रशासन के भी हाथ-पांव फुला दिए हैं। इनमें सर्वाधिक बुरी स्थिति राजधानी दिल्ली, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश की है, जहां न केवल नए मामलों में तेजी आई है, बल्कि संक्रमितों की मौत में तेजी से इजाफा हुआ है। हालांकि इस दौरान एक अच्छी खबर यह रही कि पूरे भारत में मृत्यु दर में बड़ी गिरावट देखी गई। वर्तमान में भारत की मृत्यु दर (सीएफआर) गिरकर 1.46% हो गई है और सरकार ने इसे 1 फीसदी तक लाने का नया लक्ष्य निर्धारित कि है।
जब तक वैक्सीन तैयार नहीं होती है तब तक धैर्यपूर्वक इंतजार करना होगा
कहने का अर्थ है जब तक कोई माकूल वैक्सीन तैयार नहीं हो जाती है, तब तक हम और आप को इंतजार करना होगा, लेकिन महामारी हवा में तैर रही है और उससे बचने के लिए सरकार द्वारा सुझाए गए सुरक्षा उपायों का अनुपालन बेहद जरूरी है। ऐसा करके न केवल अपनी जिंदगी, बल्कि दूसरों की जिंदगी बचाई जा सकेगी, फिर चाहे वह आपका परिवार हो अथवा समाज। क्योंकि सुरक्षा चक्र में छूटा अथवा चूंका एक भी शख्स 6 और लोगों को अपनी चपेट में ले सकता है।
इटली, स्पेन और ब्रिटेन में इसी लापरवाही की वजह से बड़ा आघात
इटली, स्पेन और ब्रिटेन में इसी लापरवाही की वजह से बड़ा आघात झेलना पड़ा। इनमें यूरोपीय देश इटली, स्पेन और ब्रिटेन के लोगों द्वारा कोरोनावायरस के संक्रमण के प्रति बरती गई लापरवाही काफी नुकसान पहुंचाया है। फिलहाल गलतियों को सुधार कर अब पश्चिमी देशों में सभी ऐहतियाती क़दम उठाए हैं और वहां जोखिम का दर कम हो गया है, लेकिन हम अभी हरकत में नहीं आए तो हमारी भी दुर्गति होने तय है, क्योंकि हिंदुस्तान की मौजूदा स्वास्थ्य सेवाएं एक बड़ी आबादी का बोझ नहीं संभाल पाएंगी।
कोरोनावायरस के जोखिम को लेकर लगातार गंभीरता बरतना जरूरी
स्वास्थ्य विशेषज्ञ संक्रमण का फैलाव रोकने के लिए सबसे ज़रूरी क़दमों में से एक गंभीरता को मानते हैं। आप और आपके आसपास लोग तभी संक्रमण से दूर रहेंगे, जो आप महामारी के जोखिम को लेकर गंभीरता दिखाएंगे। सरकार कोरोना संक्रमण में वृद्धि के साथ बड़े पैमाने पर टेस्टिंग कर रही है और कम्युनिटी ट्रांसमिशन से बचने के लिए संक्रमित लोगो को अलग कर रही है, लेकिन आपकी जिम्मेवारी है कि सोशल डिस्टेंसिंग यानी भीड़-भाड़ में जाने से बचें और मास्क जैसे सुरक्षा उपायों को ईमानदारी से पालन करें।
भारत में कोरोना दर में गिरावट संदिग्ध टेस्टिंग की वजह से हो सकती है
भारत में कोरोना दर में गिरावट संदिग्ध टेस्टिंग की वजह से हो सकती है। सितंबर के मध्य में भारत ने रोजाना 97,000 से अधिक नए मामलों के शिखर छू लिया था, लेकिन अब यह संख्या आधी से भी कम हो गई है। दक्षिण एशियाई राष्ट्रों में रोजाना नए मामलों में आई इस महत्वपूर्ण गिरावट ने कोरोना टेस्टिंग पर बड़ा सवाल खड़ा किया है, जो यहां की वास्तविक स्थिति पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं?
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रैपिड एंटीजन टेस्ट बहुत विश्वसनीय नहीं हैं, संवेदनशील नहीं हैं: रिपोर्ट
प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंसेज फ़ोरम के अध्यक्ष हरजीत सिंह भट्टी ने बताया कि रैपिड एंटीजन टेस्ट बहुत विश्वसनीय नहीं हैं, संवेदनशील नहीं हैं और मरीज़ों को बिल्कुल भी सही इलाज नहीं मिल रहा है। महामारी शुरू होने के बाद से दिल्ली के एक अस्पताल में फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर की काम करते आ रहे डा. भट्टी ने चेतावनी देते हुए कहा कि आने वाले महीने दिल्ली में बहुत खतरनाक होंगे।
सटीक आकलन के लिए RT-PCR टेस्टिंग का पालन किया जाना चाहिए
विशेषज्ञों का कहना है कि रैपिड एंटीजन तेजी से बढ़ रहे मामलों का पता लगाने में मदद कर सकते हैं कि प्रमुख देश का सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र कहां हैं, लेकिन संचरण के सटीक आकलन के लिए आरटी-पीसीआर टेस्टिंग का पालन किया जाना चाहिए। नई दिल्ली स्थित पीपुल्स हेल्थ के वैश्विक समन्वयक टी. सुंदररमन के मुताबिक रैपिड एंटीजन टेस्ट्स में झूठी निगेटिव दरें बहुत अधिक हो सकती हैं, इसलिए टेस्टिंग के लिए आरटी-पीसीआर के साथ पालन करना चाहिए, जो भारत में लगभग नहीं किया गया है।