बॉस जयशंकर के 'ऑर्डर' पर बस 10 मिनट में इस तरह से अकबरुद्दीन ने चीन और पाकिस्तान को दी मात
नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी यूएनएससी में जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान को मात मिली है। बंद कमरे में हुई मीटिंग में चीन और पाकिस्तान को रूस और फ्रांस ने आर्टिकल 370 और जम्मू कश्मीर मसले पर करारा झटका दिया है। इस पूरे मसले के बाद यूनाइटेड नेशंस में भारत के राजदूत सैयद अकबरुद्दीन की जमकर तारीफ हो रही है। लेकिन अकबरुद्दीन के अलावा एक और शख्स था जो इस रणनीति को तैयार करने में लगा था कि आखिर चीन और पाकिस्तान को कैसे उनके ही पाले में ढेर किया जाए। यह शख्स कोई और नहीं बल्कि अकबरुद्दीन के बॉस और विदेश मंत्री एस जयशंकर थे। इंग्लिश अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की ओर से इसकी जानकारी दी गई है।
अकबरुदद्दीन के पास थे बस 10 मिनट
जहां बहुत से राजनयिक, यूएन और बाकी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में अपने बर्ताव को संयमित रखते हैं, अकबरुद्दीन आक्रामक थे। वह पहली ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में पाकिस्तानी जर्नलिस्ट्स पर भारी पड़े। आक्रामकता के बाद भी अकबरुद्दीन एक विजेता के तौर पर उभरे। उनके जवाब देने का अंदाज बिल्कुल वैसा ही था जो उस समय झलकता था जब वह विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता था। सूत्रों की मानें तो अकबरुद्दीन के पास तैयारी के सिर्फ 10 मिनट थे और इन 10 मिनटों के बावजूद उन्होंने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस को सुपरहिट बना दिया। जिस समय चीन इस मसले पर यूएनएससी में अपने तर्क रख रहा था, उसी समय अकबरुद्दीन और जयशंकर, भारत का जवाब क्या होगा, इसकी योजना बना चुके थे।
बराबर संपर्क बनाए हुए थे जयशंकर
यूएनएससी में अकबरुद्दीन के चीनी समकक्ष झांग जुन और पाकिस्तानी समकक्ष मलीहा लोधी के दावों को कैसे नकारना है, इसके लिए विदेश मंत्री जयशंकर के साथ चर्चा ने अकबरुद्दीन को काफी मदद की। विदेश मंत्री जयशंकर और यूएन में अकबरुद्दीन समेत तमाम भारतीय अधिकारियों के बीच शुक्रवार को करीबी संपर्क कायम था। जैसे ही चीनी राजदूत बोलने के लिए खड़े हुए, वह मौका न सिर्फ अकबरुद्दीन और जयशंकर के लिए टेस्टिंग मोमेंट से कम नहीं था। पाक की राजदूत मलीहा लोधी के बोलने के बाद जयशंकर ने अकबरुद्दीनसे बात की। इसी दौरान उन्होंने अकबरुद्दीन को बताया कि उन्हें प्रतिक्रिया स्वरूप क्या बोलना है और उसकी रूपरेखा क्या होगी।
चीन का प्रस्ताव सिरे से खारिज
यूएनएससी के प्रेसीडेंट और पोलैंड के राजदूत जोआना व्रोनेका इस दौरान नहीं बोल सके क्योंकि ब्रिटेन को छोड़कर चीन के प्रस्ताव को सभी सदस्यों ने खारिज कर दिया था। झांग ने इसके बाद खुद मीडिया को जानकारी दी और उन्होंने दावा किया कि यूएनएससी के सभी सदस्यों ने जम्मू कश्मीर के 'खतरनाक हालातों' पर 'गंभीर चिंता' जताई है। लोधी ने भी भारत पर मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाया। इसके बाद जयशंकर और अकबरुद्ददीन को लगा कि दोनों की ओर से जो दावे किए जा रहे हैं उनका तेजी से खंडन करना बहुत जरूरी है। इसके बाद जर्नलिस्ट्स को मैसेज भेजा गया कि भारत के राजदूत भी उनसे बात करेंगे।
अकबरुद्दीन ने दिए पांच नहीं सात सवालों के जवाब
सूत्रों की ओर से बताया गया है कि मीडिया की ओर से सवाल लिए जाएंगे वह फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि अकबरुद्दीन एक लोकतांत्रिक देश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। वहीं पाकिस्तान और चीन दोनों ही देशों के राजदूतों ने मीडिया की तरफ से किसी भी सवाल के लेने से इनकार कर दिया। अकबरुद्दीन ने कहा था कि वह पांच सवालों का जवाब देंगे लेकिन उन्होंने सात सवालों का जवाब दिया। पाकिस्तानी जर्नलिस्ट्स की ओर से भी सवाल लिए जाएंगे, इस फैसले से भारत यह संदेश देना चाहता था कि जम्मू कश्मीर पर वह किसी के भी सवालों को नहीं टालेगा। सूत्रों के मुताबिक इससे भारत ने यह भी संदेश दिया कि यूएन में कश्मीर के मसले पर उसे समर्थन मिला है और वह अपनी स्थिति को लेकर पूरी तरह से आत्मविश्वासी है।