Axis Bank: एक-एक करके 15000 बैंक कर्मचारी नौकरी छोड़कर भागे, जानिए क्यूं?
बेंगलुरू। भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है, आर्थिक विकास दर की रफ्तार सुस्त है, क्योंकि देश की जीडीपी का लगातार गिर रही है। इसलिए ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री समेत देश के सभी सेक्टरों मे मंदी छाई हुई है, जिससे लाखों लोगों की नौकरी पर संकट गहरा गया है। भारतीय अर्थव्यस्था की सुस्ती और ग्लोबल मंदी की आशंका में अब तक हजारों लोग बेरोजगार हो चुके हैं।
चूंकि सुस्त अर्थव्यवस्था में डिमांड और सप्लाई इम्बैलेंस का डायेरक्ट असर प्रोडक्शन पर होता है इसलिए कंपनियों को उत्तरोत्तर अपना प्रोडक्शन बंद करना पड़ता है और कंपनियों को घाटे से खुद को बचाने के लिए कास्ट कटौती करनी पड़ती हैं, जिसके नाम कर बलि कर्मचारियों की चढ़ाई जाती है, जो देश में रोजगार संकट को जन्म देते हैं। यह तो रही थ्योरिटिकल बात और आइए अब प्रैक्टिकल बात करते हैं, क्योंकि अर्थ और सामर्थ्य की दुनिया में थ्योरी नहीं, प्रैक्टिल प्रायः हावी रहती है।
दरअसल, बीते कुछ महीनों में प्राइवेट सेक्टर की एक्सिस बैंक के 15000 से अधिक कर्मचारियों ने इसलिए नौकरी छोड़ दी, क्योंकि बैंक प्रबंधन ने मैनेजमेंट में बदलाव कर दिया। मैनेजमेंट में बदलाव का असर था कि मीडियम और ब्रांच लेवल के सभी कर्मचारी प्रैक्टिल हो गए और इस कदर भगदड़ मची के महज कुछ महीनों में 15000 कर्मचारी नौकरी छोड़कर भाग खड़े हो गए।
इकोनॉमिक टाइम्स के हवाले से लिखी गई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एक साथ 15000 कर्मचारियों के नौकरी छोड़ने के पीछे का कारण बैंक मैनेजमेंट में हुआ बदलाव है, जिससे कर्मचारी असहज हो रहे थे। नौकरी छोड़कर भागने वाले कर्मचारियों में अधिक संख्या मीडियम और ब्रांच लेवल कर्मचारियों की हैं, जिनका सीधा संपर्क ग्राहकों से होता था।
रिसर्च के बाद पता चला कि एक्सिस बैंक से नौकरी छोड़कर भागे 15000 से अधिक पुराने कर्मचारी नए माहौल में खुद को नहीं ढाल पा रहे थे। पड़ताल के बाद मालूम हुआ कि 31 दिसंबर 2018 को पूर्व एक्सिस बैंक सीएमडी शिखा शर्मा का अनुबंध खत्म होने के बाद बैंक मैनेजमेंट ने 1 जनवरी, 2019 को अमिताभ चौधरी को एक्सिस बैंक का नया सीईओ और एडी नियुक्त किया था, जिन्होंने आते ही बैंक की कार्यप्रणाली में बदलाव शुरू कर दिया। इन बदलावों में आधुनिक ऑटोमेशन और ऑर्टिफिशियल एंटेलिजेंस प्रमुख था।
बैंक मैनेजमेंट द्वारा नियुक्त किए गए नए सीईओ और एमडी अमिताभ चौधरी ने पुराने बैंकिंग कार्यप्रणाली में आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दिया, जिसके पीछे की प्रमुख वजह थी अक्टूबर, 2019 में एक्सिस बैंक का 112.08 करोड़ का शुद्ध नुकसान, जबकि एक वर्ष पहले इसी तिमाही में एक्सिस बैंक ने 789.61 करोड़ का शुद्ध मुनाफा दर्ज किया था।
माना जा रहा है कि बैंकिंग घाटे को दूर करने के लिए बैंक मैनेजमेंट ने पूर्व सीईओ और एमडी शिखा शर्मा के कार्यकाल को आगे नहीं बढ़ाने का निर्णय लिया और उनकी जगह पर अमिताभ चौधरी को नियुक्त किया ताकि बैंकिंग घाटे में सुधार लाया जा सके और यह आधुनिक तकनीकी के प्रयोग और आधुनिक तकनीक से लैस और प्रशिक्षित कर्मचारियों से ही संभव था।
एक्सिस बैंक के एक सीनियर अधिकारी ने मुताबिक पुराने लोग इसलिए नौकरी छोड़ रहे हैं, क्योंकि उन्हें नए जमाने के साथ बदलाव को समझने में दिक्कत हो रही है। इसके अलावा कर्मचारी नए माहौल में खुद को ढाल नहीं पा रहे हैं। हालांकि बैंक अभी नए लोगों की भर्ती करने पर जोर दे रहा है।
अगर मौजूदा वित्त वर्ष की बात करें तो एक्सिस बैंक ने कुल 28 हजार लोगों को नौकरी पर रखा है। इसके साथ ही जनवरी-मार्च तिमाही में बैंक ने 4 हजार कर्मचारियों को नौकरी देने की योजना बनाई है। वहीं, अगले दो सालों में 30 हजार नए लोगों को जोड़ने का इरादा है. फिलहाल बैंक के पास 72 हजार के करीब कर्मचारी हैं।
बताया जाता है कि एक्सिस बैंक से नौकरी छोड़कर भागे 15000 अधिक कर्मचारी नई और आधुनिक तकनीक के मुताबिक प्रशिक्षित नहीं थे और इसलिए उन्होंने इस्तीफा देकर भागने में दिलेरी दिखाई, क्योंकि वह समझ चुके थे कि अमिताभ चौधरी के नेतृत्व में उनकी छंटनी होनी तय थी।
दिलचस्प बात यह है कि भारत में रोजगारी से बड़ी समस्या कुशल कर्मचारियों की है, जिससे प्रत्येक वर्ष निजी क्षेत्रों में कर्मचारियों की छंटनी होती रहती है। अफसोस यह है कि इस पर हमारा प्रशासनिक और शैक्षिक ढांचा कभी गौर नहीं करता है। लिहाजा, शिक्षित लेकिन हुनर से दूर युवा देश के विकास को भी असंतुलित कर रहे हैं।
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एक्सिस बैंक मैनेजमेंट में बदलाव की वजह था घाटा
एक्सिस बैंक को चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में घाटे से जूझना पड़ा है। बीते अक्टूबर में जारी नतीजों के मुताबिक एक्सिस बैंक का शुद्ध नुकसान 112.08 करोड़ रुपए रहा था। निजी क्षेत्र के इस बैंक ने एक साल पहले इसी तिमाही में 789.61 करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफा दर्ज किया था। नया मैनेजमेंट, बैंक की ग्रोथ को बढ़ाने के लिए ब्रांच के ऑपरेशन में बदलाव कर रहा हैं।
अब इंश्योरेंस में कदम रखने जा रही है एक्सिस बैंक!
बैंक के नए सीईओ और एडी अमिताभ चौधरी 2010 से एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ इंश्योरेंस के सीईओ और एमडी भी रहे हैं। अमिताभ चौधरी का कहना है कि रेगुलेटरी मंजूरी के बाद इंश्योरेंस में कदम रखेंगे. Axis Bank इंश्योरेंस का बड़ा डिस्ट्रीब्यूटर है। इंश्योरेंस में ग्रोथ अच्छी है। रेगुलेटरी मंजूरी मिलने पर इंश्योरेंस में कदम रखेंगे। RBI ने रेगुलेटरी बदलाव किए हैं और बैंकों को इंश्योरेंस में ज्यादा हिस्सेदारी की मंजूरी नहीं है। इसके लिए नई इंश्योरेंस कंपनी नहीं बनाएंगे, बल्कि किसी ट्रांजैक्शन की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि मौजूदा फ्रेमवर्क के तहत मौके ढूंढ रहे हैं और बैंक की अच्छी इंश्योरेंस कंपनी खरीदने पर नजर है।
भारत में 20 फीसदी ग्रेजुएट भी नौकरी पाने लायक नहीं
पूर्व मानव संसाधन मंत्री जयराम रमेश ने एक बार कहा था कि भारत में 20 फीसदी ग्रेजुएट भी नौकरी पाने के लायक नहीं होते है, जबकि इनफोसिस के पूर्व चेयरमैन एन नारायणमूर्ति ने तो इसके भी एक कदम आगे जा कर यहां तक कह डाला था कि आईआईटी से निकलने वाले भी सिर्फ15 फीसदी ग्रेजुएट ही नौकरी देने के लायक होते हैं।
प्रैक्टिकल में फेल हो जाते हैं फर्स्ट क्लास भारतीय इंजीनियर
भारत के किसी इंजीनियरिंग संस्थान से फर्स्ट क्लास डिग्री होल्डर इंजीनियर का हाथ-पांव प्रैक्टिकल लाइफ में पहुंचते ही कांपने लग जाते हैं। माना गया है कि 100 में 90 फीसदी मौकों में ऐसे डिग्री होल्डर अनुभवहीन होते हैं, क्योंकि उसे कॉलेज में उसे थ्योरिटकल अधिक और प्रैक्टिकल नॉलेज कम परोसा जाता है। कहने का मतलब है कि एक नामी कॉलेज का पास आउट सिविल इंजीनियरिंग का फर्स्ट क्लास डिग्री होल्डर प्रैक्टिल नॉलेज नहीं होने से साइट पर जाते ही फेल हो जाता है, क्योंकि उसे उसका अनुभव नहीं किया होता है। डिग्री कोर्स के दौरान उसको प्रैक्टिकल नॉलेज नाम भर की मिलती है और इनमें से ज्यादातर कर्मचारी दो तीन वर्ष इंडस्ट्री में बिताने और कंपनी का बड़ा नुकसान करके ही कुछ सीख पाते हैं।
भारत में डिग्रीधारी बेरोजगारों की संख्या है सबसे अधिक
आंकड़े बताते हैं कि भारत में कुल पढ़े-लिखे बेरोजगारों में से 16.9 फीसदी युवा बेरोजगार तकनीकी डिग्री या डिप्लोमाधारी हैं, जबकि मैट्रिकुलेशन या सैकंडरी तक की पढ़ाई करने वाले महज 14.5 फीसदी युवा ही बेरोजगार हैं। इसका साफ मतलब है कि भारत में पढ़े-लिखे बेरोजगार हैं जबकि मैट्रिकुलेशन और सैकेंडरी पास आउट, लेकिन हुनरमंद युवाओं की बेराजगारी उनकी तुलना में कम है हैं।
आईटी कंपनियां कर्मचारियों का चयन विदेश से कर रही हैं
वर्तमान में देश की तमाम आईटी कंपनियां जो विदेशों में भी काम कर रही हैं, इन दिनों अपने लिए तमाम कर्मचारियों का चयन भी विदेशों में ही कर रही हैं जबकि यह स्थिति उनके लिए कतई लाभदायक नहीं है, न ही इच्छुक हैं, लेकिन क्या करें, मजबूरी है, क्योंकि देश में योग्य युवा मिल ही नहीं रहे। कम शब्दों में कहा जाए तो देश में बेरोजगारी के साथ-साथ हुनर की भी नहीं है। देश में हुनरमंद लोगों की भारी किल्लत है। राजनीतिक दल, सरकारें और विशेषज्ञ सब के सब सिद्धांतत: एक ही बात कर रहे हैं कि देश में सब से बड़ी चुनौती युवा आबादी के लिए नौकरियां पैदा करना है, लेकिन इंडस्ट्री योग्य युवाओं को तैयार करने का जिम्मा कोई उठाने को तैयार नहीं है।
भारत में सिर्फ 23 फीसदी श्रमिक ही प्रशिक्षित हैं
कुशल श्रमिकों की दुनिया में भारत की स्थिति बहुत ही दयनीय है। अगर दुनिया से तुलना की जाए तो भारत में सिर्फ 23 फीसदी श्रमिक ही प्रशिक्षित हैं, जबकि अमेरिका में 52 फीसदी, जापान में 80 फीसदी और दक्षिण कोरिया में 96 फीसदी वर्कफोर्स प्रशिक्षित है, लेकिन भारत में नौकरी देने वालों के लिए सिर्फ यही एक समस्या भर नहीं है। असल में भारत में जो 23 फीसदी लोग कुशल श्रमिकों में गिने जाते हैं उन प्रशिक्षित लोगों में भी गुणवत्ता का बड़ा अभाव होता है।
देश के 40 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य
भारत के तमाम पढ़े-लिखे लोग वाकई हुनर के मामले में शून्य हैं. संख्या के हिसाब से तो हर साल हमारे यहां लगभग 27 लाख ग्रेजुएट (अब चीन से भी ज्यादा) तैयार होते है, लेकिन सवाल है ये काम के कितने हैं? भारत सरकार का मेक इन इंडिया कार्यक्रम में जोर देने का मकसद यही है कि बडे़ पैमाने में प्रशिक्षित कामगार तैयार किए जाएं. यही वजह है कि सरकार अगले 10 सालों में 40 करोड़ लोगों को प्रशिक्षित किए जाने का बेहद महत्त्वाकांक्षी खाका भी तैयार कर रही है।
भारत में 20 से 25 साल का हर चौथा युवा बेरोजगार
यह एक ऐसा खौफनाक आंकड़ा है जिस में स्वत: तमाम दूसरे डराने वाले आंकड़े आ मिलते हैं। जनगणना रिपोर्ट से हासिल इस आंकड़े के मुताबिक, देश में मौजूद कुल कार्यशक्ति में से 12 करोड़ लोग या 24 करोड़ हाथों के पास करने के लिए कोई रोजगार नहीं है. ये लोग या तो अपने परिवार के दूसरे कमाऊ लोगों पर निर्भर हैं या ऐसे रोजगार में जबर्दस्ती लगे हुए हैं, जहां वाजिब मेहनताना नहीं मिलता है।
युवाओ में योग्यता और कल्पनाशील तकनीक का अभाव
एक तरफ कहा जा रहा है कि हम दुनिया के सब से युवा देश हैं और भविष्य की मानव संसाधन संबंधी तमाम वैश्विक जरूरतों को हम ही पूरा करेंगे. दूसरी तरफ, वर्तमान में हम ही योग्य और कल्पनाशील तकनीशियनों का अभाव झेल रहे हैं। एक तरफ बेरोजगारी हमारी सब से बड़ी समस्या है तो दूसरी तरफ भारत के कौर्पोरेट जगत को 12-14 लाख योग्य कर्मचारियों की अविलंब जरूरत है और लोग हैं कि ढूंढ़े नहीं मिल रहे हैं। देश का हर अच्छा शैक्षणिक संस्थान योग्य फैकल्टी का अभाव झेल रहा है और देश की अच्छी कंपनियां योग्य कर्मचारियों की कमी का शिकार हैं। गौर करने वाली बात यह है कि देश में कुशल कर्मचारियों की बैंच स्ट्रैंथ किसी कंपनी के पास नहीं है, बस कुछ बेहतर से काम चला रहे हैं।
भारतीय युवाओं में कम है मेहनत और ईमानदारी का जज्बा
भारत के छात्रों और प्रशिक्षार्थियों में मेहनत व ईमानदारी का जज्बा ही नहीं है। इसके लिए हमारे समाज की साझी प्रवृत्ति, शिक्षकों की पढ़ाने को लेकर बरती जाने वाली बेईमानी, घर-परिवार का माहौल, समाज का साझा चरित्र और अनिश्चितता व असुरक्षा भी इसके लिए जिम्मेदार कह जा सकते हैं। इसलिए सरकार की जिम्मेदारी है कि तमाम सैद्धांतिक खामियों को एकतरफ करते हुए ऐसे युवाओं को मेक इन इंडिया और राष्ट्रीय कौशल विकास योजनाओं के जरिए तकनीकी प्रशिक्षण देकर हुनरमंद बनाया जाए।