बुखार से तड़प रहा था 8 साल का बेटा, मालिकों ने मजदूर को नहीं दी अस्पताल जाने की इजाजत, मौत
भोपाल। मध्य प्रदेश के गुना में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसे जानकर इंसानियत भी खुदकुशी कर ले। यहां इलाज के आभाव में एक बंधुआ मजदूर के 8 साल के बच्चे की मौत हो गई। कहा जा रहा है कि बच्चे देशराज सहरिया के पिता ने ऊंची जाति के एक व्यक्ति से 25 हजार रुपए का कर्ज लिया था और उसी को भरने के लिए 5 साल से उसके यहां बिना वेतन बंधुआ मजदूरी करता था। बच्चे की जब तबीयत खराब हुई तो उसे अस्प्ताल ले जाने तक की अनुमति नहीं दी गई।
पीड़ित पिता ने दीपक और नीरज जाट पर बंधुआ मजदूरी कराने का आरोप लगाया है। परिजनों ने घटना से आक्रोशित होकर शव को कैंट थाने के सामने रखकर सड़क जाम कर दिया। मामले के सुर्खियों में आने के बाद कलेक्टर ने आरोपी जमीन मालिक के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई के आदेश दिए हैं। वहीं आदिवासी मजदूर की शिकायत पर कार्रवाई न करने वाले आरोपी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया है।
विस्तार से जानिए पूरा मामला
मामला कैंट थाना क्षेत्र के रिछेरा गांव का है। रिछेरा गांव में दीपक जाट और नीरज जाट ने सहरिया आदिवासी समाज के मजदूर पहलवान सहरिया को बंधुआ मजदूर बनाकर रख रखा था। पिछले 5 वर्षों से पहलवान और उसके परिवार से मजदूरी करवाई जा रही थी। बीते रोज जब पहलवान सहरिया के 9 वर्षीय मासूम बेटे देशराज को तेज़ बुखार आया तो मजदूर पिता ने जमीन मालिक दीपक जाट से इलाज के लिए पैसे मांगे, लेकिन पैसे देना तो दूर बल्कि इलाज कराने की अनुमति भी दीपक जाट द्वारा नहीं दी गई। दीपक और नीरज जाट ने मजदूर पहलवान सहरिया के साथ बुरी तरह से मारपीट करते हुए कपड़े फाड़ दिए। और दबंगों ने अपने चंगुल से सहरिया परिवार को मुक्त नहीं किया और खेत पर ही रहने की नसीहत दी। ऐसे में इलाज के अभाव में बच्चे की तबियत ज्यादा बिगड़ गई। फिर, मजदूर माता- पिता बच्चे को लेकर अस्पताल पहुंचे जहां उसकी मौत हो गई।
आपको बता दें कि दिहाड़ी पर काम करने वालों पर कोरोना वायरस महामारी आफत पर बनकर टूटी है। एक तरफ तो श्रमिकों का रोजगार चला गया दूसरी तरफ उनके बचाए हुए पैसे भी भी खाने पर और परिवार पर खर्च हो गए। कई श्रमिकों को कर्ज भी लेना पड़ा है। इसी कारण यह आशंका बढ़ गई है कि बंधुआ मजदूरी कहीं और ना बढ़ जाए। 2011 की जनगणना में देश में 1,35,000 बंधुआ मजदूरों की पहचान की गई थी। भारत में बंधुआ मजदूरी के खात्मे के लिए पहली बार कानून 1976 में बना था। कानून में बंधुआ मजदूरी को अपराध की श्रेणी में रखा गया था। साथ ही बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराए गए लोगों के आवास व पुर्नवास के लिए दिशा निर्देश भी इस कानून का हिस्सा हैं। लेकिन चार दशक बाद भी बंधुआ मजदूरी से जुड़े मामले आते रहते हैं।