दाभोलकर हत्या मामला: सीबीआई के हाथ लगा बड़ा सुराग, तलाश में मिली बंदूक
ठाणे। महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर की हत्या मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के हाथ एक बड़ा सुराग लगा है। नार्वे के गोताखोरों और प्रौद्योगिकी की सहायता से अरब सागर से एक बंदूक मिली है। माना जा रहा है कि इसी से दोभोलकर की हत्या की गई थी। इस बात की पुष्टि मामले की जानकारी रखने वाले दो वरिष्ठ अधिकारियों ने दी है। बता दें दाभोलकर की साल 2013 के अगस्त माह में उस वक्त दो अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी, जब वह सुबह की सैर पर निकले थे।
हथियार को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वास्तव में दाभोलकर की हत्या में इसे इस्तेमाल किया गया था। एजेंसी ने अगस्त 2019 में, पुणे की एक अदालत को सूचित किया कि उसे ठाणे के पास खारेगांव में नदी से हथियार तलाशने की आवश्यकता है। इस मामले में सीबीआई ने सात लोगों को प्रमुख अभियुक्त के तौर पर नामित किया था।
पहचान ना बताने की शर्त पर दो वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा, 'हमें कई दिनों तक खोज करने के बाद एक बंदूक मिली है। बैलिस्टिक्स विशेषज्ञ अब दाभोलकर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आए बुलेट के आकार और प्रकार के साथ इसकी जांच करेंगे।' हथियार को ढूंढने के लिए दुबई स्थित एनविटेक मरीन कंसल्टेंट्स ने नार्वे से अपनी मशीनरी पहुंचाई।
विशेषज्ञों ने खारेगांव की छोटी नदी वाले क्षेत्र में तलाश के लिए चुंबकीय स्लेज का इस्तेमाल किया। केंद्रीय एजेंसी ने पूरे ऑपरेशन की व्यवस्था की। जिसमें राज्य सरकार से अनुमति प्राप्त करने से लेकर पर्यावरण की मंजूरी हासिल करने तक की व्यवस्था थी। यहां तक कि नॉर्वे से मशीनरी लाने के लिए लगभग 95 लाख के सीमा शुल्क की छूट भी मिली। अधिकारी ने बताया कि इस खोज अभियान में करीब 7.5 करोड़ रुपये खर्च हुए।
दाभोलकर मामले में बचाव पक्ष के एक वकील ने कहा, 'मैं जांच के उन पहलुओं पर इस वक्त बात नहीं करना चाहता जिन्हें कोर्ट में पेश नहीं किया गया है। लेकिन अगर सच में ऐसा हुआ है, तो मुझे लग रहा है कि उन्हें अप्रैल या फिर अगले 10 दिन में ट्रायल शुरू कर देना चाहिए। मुझे निजी तौर पर नहीं पता कि गोताखोर कहां से आए और कैसे ये प्रक्रिया चली। यही दिलचस्प है कि खोज वर्षों तक चली। वो कोई समुद्र नहीं है, बस एक छोटी सी नदी है। मुझे ये समझ नहीं आ रहा है कि ये सब इतना लंबा क्यों चला है। केवल धर्माधिकारी के इस्तीफे के बाद ही जांच अधिकरारी ने एक बयान में कहा कि वह मार्च के अंत तक जांच पूरी कर लेंगे।'
जानकारी के लिए बता दें बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सत्यरंजन धर्माधिकारी, जिन्होंने दाभोलकर मामले की सुनवाई की थी, ने पिछले महीने निजी कारणों का हवाला देते हुए अपना इस्तीफा दे दिया था। न्यायमूर्ति धर्माधिकारी ने मामले में सीबीआई जांच की धीमी गति के लिए कई आदेश जारी किए थे। दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को पुणे में ओंकारेश्वर पुल पर सुबह करीब 7.30 बजे दो बाइक सवार हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। 2014 में जांच सीबीआई को सौंपी गई। पहली चार्जशीट 6 सितंबर, 2016 में दाखिल हुई। जिसमें मुख्य साजिशकर्ता के रूप में वीरेंद्र तावड़े और हमलावरों के रूप में सारंग अकोलकर और विनय पवार का नाम आया।
पूरक चार्जशीट 13 फरवरी, 2019 में दाखिल हुई, जिसमें दो हमलावरों के नाम सचिन आंदुरे और शरद कालस्कर का बताया गया। एक अन्य चार्जशीट 20 नवंबर, 2019 में अधिवक्ता संजीव पुनालेकर और उनके सहयोगी विक्रम भावे के खिलाफ दाखिल हुई। इन्हें हत्या में सह-साजिशकर्ता के रूप में नामित किया गया। जिन सात लोगों के नाम चार्जशीट में लिखे गए, उनमें तवाड़े, कालस्कर, आंदुरे और भावे जेल में हैं। अकोल्कर और पवार की गिरफ्तारी नहीं हुई है। 25 मई, 2019 को वकील पुनालेकर और भावे को गिरफ्तार किया गया था। पुनालेकर को 5 जुलाई, 2019 को जमानत दी गई थी।
कौन थे नरेंद्र दाभोलकर?
नरेंद्र दाभोलकर पेशे से एक डॉक्टर थे। उन्होंने अंधविश्वास के खिलाफ समाज को जागृत करने के लिए काफी काम किया था। इस क्रम में उन्होंने 1989 में महाराष्ट्र अंधविश्वास निर्मूलन समिति भी बनाई थी। इसके वो अध्यक्ष थे। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करने वाले दाभोलकर को कई बार जान से मारने की धमकी दी गई थी।
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