Coronavirus के बारे में ये पांच बातें अभी भी कोई नहीं जानता
नई दिल्ली- कोराना वायरस पर वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के दिन-रात के शोध के बावजूद इसके बारे में कई बातें अभी भी साफ नहीं है। दुनिया भर के वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी इस वायरस को लेकर कई ऐसी चीजें हैं, जिसको लेकर वैज्ञानिकों में भी एक राय नहीं है। खुद एक्सपर्ट ही बताते हैं कि अभी इसके बारे बहुत सी बातें पुख्ता तौर पर साफ होने में कुछ समय लगेगा। आइए जानते हैं कि वो कौन सी बातें हैं, जिसको लेकर डॉक्टरों और वैज्ञानिकों में भी असमंजस की स्थिति है। लेकिन, राहत की बात ये है कि काम दिन-रात चल रहा है और जिस बात की पुख्ता जानकारी नहीं मिल पाई है, वह भी जल्दी से सामने आ सकेगी।
संक्रमण के स्तर में बहुत ज्यादा फर्क क्यों ?
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक कोरोना वायरस को लेकर सबसे बड़ा सवाल ये है कि 80 फीसदी मरीजों में इस वायरस का लक्षण या तो बहुत ही कम या बिल्कुल ही क्यों नहीं दिखाई पड़ता है ? जबकि, डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इसके बावजदू यह वायरस जानलेवा न्यूमोनिया साबित हो सकता है। हॉन्ग कॉन्ग यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर लियो पून के मुताबिक, 'फरवरी में आए नतीजे बतातें हैं कि इस बीमारी के क्लीनिकल स्पेक्ट्रम बहुत ही ज्यादा विरोधी हैं।' जब चीन में ये बीमारी चरम पर थी तब पून और नैनचैंग यूनिवर्सिटी की एक टीम ने इस वायरस से संक्रमित बेहद गंभीर तौर पर बीमार और उनके मुकाबले कम बीमार लोगों पर यह परीक्षण किया। ब्रिटिश जर्नल दि लैंनसेट में छपे इनके शोध में बताया गया है कि जो लोग बहुत ज्यादा बुजुर्ग थे उनकी नाक और गले में वायरस का संक्रमण हल्के तौर पर बीमारों की तुलना में 60 फीसदी ज्यादा था।
किस व्यक्ति पर होता है ज्यादा असर ?
अब ये सवाल उठा कि टेस्ट में इतना अंतर क्यों था। मसलन, कमजोर रोग-प्रतिरोधी क्षमता की वजह से वायरस ने बुजुर्गों पर ज्यादा अटैक किया था या वो वायरस से ज्याद एक्सपोज्ड हुए थे। मीजल्स वायरस पर हुए रिसर्च में ये बात सामने आ चुकी है कि जो वायरस के ज्यादा संपर्क में आया, वह ज्यादा गंभीर तरीके से बीमार हो गया। एक्सपर्ट अभी तक यह नहीं जान पाए हैं कि कोविड-19 के साथ क्या ऐसे ही होता है?
क्या हवा से भी हो सकता है संक्रमण?
कोरोना वायरस के बारे में बताया जाता है कि यह शारीरिक संपर्क या संक्रमित व्यक्ति के छींकने या खांसने की वजह से निकले बूंदों की वजह से फैलता है। लेकिन, क्या यह मौसमी फ्लू के वायरस की तरह हवा में भी तैरता रह सकता है? एक अमेरिकी स्टडी के मुताबिक प्रयोगशाला में हवा की कणों में कोविड-19 तीन घंटों तक जीवित रह सकता है। लेकिन, वैज्ञानिक ये नहीं जानते कि क्या ये वारयस हवा में या निष्क्रिय सतह पर लंबे वक्त तक झूलता रहा सकता है? पेरिस के सेंट एंटोनी हॉस्पिटल के संक्रमण रोग विभाग के हेड प्रोफेसर कैरिन लैकॉम्बे का कहना है, 'हम जानते हैं कि हम वायरस को खोज (हवा में) सकते हैं, लेकिन हम ये नहीं जानते कि क्या ये वायरस संक्रमण कर सकता है।'
गर्मी आने पर कम होगा प्रकोप ?
क्या मौसम गर्म होने के साथ कोविड-19 का प्रकोप स्थिर हो सकता है। एक्सपर्ट कहते हैं कि यह संभव तो है, लेकिन निश्चित तौर पर कहा नहीं जा सकता। सांस से संबंधित फ्लू जैसे दूसरे वायरस मौसम के सर्द-गर्म होने पर ज्यादा असर करते हैं, लेकिन ठंड आते ही यह बहुत ज्यादा बढ़ने लगते हैं। हॉन्ग कॉन्ग के शोधकर्ताओं ने पाया था कि 2002-03 में चीन से आया सार्स (SARS) वायरस जो कि नोवल कोरोना से ही जुड़ा है, तब ज्यादा कहर बरपाया जब नमी और तापमानन बहुत कम था। लेकिन, अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की हाल में आई एक स्टडी ने आगाह किया है कि अकेले उत्तरी गोलार्द्ध में तापमान और नमी बढ़ने से जरूरी नहीं कि बिना किसी उपाय के कोविड-19 का प्रकोर कम हो जाए।
बच्चों पर कितना खतरा ?
एक चर्चा ये होती है कि व्यस्कों की तुलना में बच्चे कोरोना से ज्यादा बचे रह सकते हैं और जो संक्रमित होते हैं, उनपर कम खतरा है। चीन के एक रिसर्च में दावा किया गया है कि उसने कोविड-19 से संक्रमित जिन 10 बच्चों पर नजर रखा वे बहुत ज्यादा बीमार नहीं पड़े। उनमें सिर्फ गले में खड़ास, कफ और हल्के बुखार के लक्षण दिखाई दिए। शोधकर्ताओं ने ये भी पाया कि जो बच्चे संक्रमित लोगों के पास रहे उनमें संक्रमण की संख्या दो से तीन गुना कम देखी गई। सार्स के समय ये कहानी सही साबित हुई थी। लेकिन, प्रोफेसर लैकॉम्बे की चेतावनी है कि 'बहुत कुछ है जो कि हम अभी नहीं जानते, जिसके लिए हमें इसे बहुत ही विनम्रता से लेने की जरूरत है।'
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