AIDS की वैक्सीन के लिए इंसान ने Coronavirus बनाया,नोबेल विजेता और HIV के खोजकर्ता का दावा
नई दिल्ली- फ्रांस के एक वायरोलॉजिस्ट और नोबेल पुरस्कार विजेता लक मॉटेगनियर के एक खुलासे ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों में खलबली मचा दी है। उन्होंने सीधा आरोप लगाया है कि जो कोरोना वायरस आज दुनिया भर में 22 लाख से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर चुका है और डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है, वह वुहान के लैब में पैदा हुआ। उनका आरोप है की चीन अपने उस लैब में 20 साल से कोरोना वायरस पर काम कर रहा है और वह एड्स की वैक्सीन तैयार करने की कोशिश कर रहा था, जहां से दुर्घटनावश यह वायरस प्रयोगशाला से बाहर निकल गया। बता दें कि अब अमेरिका समेत कोई भी यूरोपीय देश चीन के सी-फूड मार्केट थ्योरी पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में एक बहुत बड़े वैज्ञानिक का तथ्यों के आधार पर किए गए दावे को बिना जांचे-परखे झुठलाना भी मुमकिन नहीं लगता।
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कोविड-19 प्राकृतिक नहीं- नोबेल पुरस्कार विजेता
फ्रांस के वायरोलॉजिस्ट लक मॉटेगनियर ने दावा किया है कि जिस कोविड-19 ने दुनिया भर में कोरोना वायरस महामारी फैला रखी है, उसे इंसान ने बनाया है। उनके मुकाबिक यह महामारी चीन के एक प्रयोगशाला में एड्स की वैक्सीन बनाने की कोशिशों की नतीजा है। मॉटेगनियर एड्स के वायरस एचआईवी के सह-खोजकर्ता हैं, जिन्हें 2008 में दो और वैज्ञानिकों के साथ मेडिसीन के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया था। उन्हों एक फ्रेंच न्यूज चैनल को दिए गए विशेष इंटरव्यू में दावा किया है कि, 'कोरोना वायरस के जीनोम में एचआईवी के तत्व और मलेरिया के रोगाणु की मौजूदगी बहुत ही संदिग्ध है और वायरस की विशेषताएं प्राकृतिक रूप से विकसित नहीं हुई होंगी। '
चीन साल 2000 से कर रहा हो कोरोना वायरस पर काम- मॉटेगनियर
एचआईवी का पता लगाकर दुनिया भर में धाक जमा चुके नोबेल पुरस्कार विजेता का आरोप है कि चीन के वुहान स्थित नेशनल बायोसेफ्टी लैबोरेटरी में 'औद्योगिक' हादसे होने की बात कही गई थी, जिसे साल 2000 की शुरुआत से ऐसे कोरोना वायरसों के मामले में विशेषज्ञता हासिल है। उनका ये दावा ऐसे वक्त सामने आया है जब अमेरिका वायरस के 'लीक' होने के मामले में जांच शुरू कर चुका है। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कर चुके हैं, 'हम लगातार ऐसी कहानियां सुनते जा रहे हैं और इसलिए अमेरिका पूरी गहराई से इसकी जांच करा रहा है।' अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पोमपियो कह चुके हैं, 'हम पूरी तहकीकात करवा रहे हैं, जिससे कि हम जान सकें कि वायरस बाहर कैसे आया, दुनिया भर में कैसे फैला और इतनी बड़ी त्रासदी कैसे मचा दी गई। अमेरिका और पूरी दुनिया में इतनी ज्यादा मौतें हुई हैं।' वो यह भी कह चुके हैं कि हमें पता था कि वुहान लैब में बहुत ही बहुत ज्यादा संदिग्ध सामग्रियां रखी गई हैं।
चीन के दावों पर भारतीय वैज्ञानिक भी जता चुके हैं संदेह
चीन ने अब तक दुनिया को यही समझाया है कि यह वायरस या तो चमगादड़ों के अंदर ही बदलाव करके (म्युटेशन) इंसानों में प्रवेश कर गया है। या फिर वह चमगादड़ों से पहले पैंगोलिन में पहुंचा और वहां से वुहान के जीव-जंतुओं के बाजार के जरिए इंसानों के शरीर में दाखिल हो गया। जबकि, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च भी अपने दावों के आधार पर चीन की कहानी की धज्जियां उड़ा चुका है। आईसीएमआर के डॉक्टर रमन कह चुके हैं, 'हमनें भी पड़ताल की है, जिसमें दो प्रकार के चमगादड़ों में कोरोना वायरस के बारे में पता चला है, लेकिन वो चमगादड़ों का कोरोना वायरस था, वो इंसानों में आने के काबिल नहीं था। चमगादड़ों से इंसान में आने की घटना समझाने के लिए बोलता हूं कि शायद 1,000 साल में एक-आध बार ही होती होगी। जब कोई वायरस स्पेसीज चेंज करता है तो वह बहुत ही रेयर इवेंट होता है और उस तरह से वह इंसानों में आता है। '
चीन दावों को लगातार झुठला रहा है
वैसे यहां ये बता देना जरूरी है कि फ्रांस के वायरोलॉजिस्ट लक मॉटेगनियर का विवादों से भी पुराना नाता रहा है। उनके दो रिसर्च 'इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स एमिटेड बाय डीएनए एंड ऑन द बेनिफिट्स ऑफ पपाया' को लेकर वैज्ञानिकों के एक वर्ग के वो निशाने पर भी रहे हैं। इसी तरह एक और फ्रेंच वायरोलॉजिस्ट सायमॉन लॉरियर ने भी उनके मौजूदा दावों पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है, 'वो (लक मॉटेगनियर) जो दावा कर रहे हैं उसका कोई मतलब नहीं है। ये बहुत छोटे तत्व हैं जो हम इसी फैमिली के दूसरे वारस में भी पाते हैं।' उधर चीन विश्व स्वास्थ्य संगठन को ढाल बनाकर लगातार ऐसे आरोपों का खंडन करता रहा है और कहता है कि लैब से बाहर निकलने के दावों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
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