लॉकडाउन के बाद सरकार को क्या करना चाहिए, नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी ने दिए सुझाव
नई दिल्ली। कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में 21 दिन का लॉकडाउन है। लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में मजदूर दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात और अन्य राज्यों से पलायन कर रहे हैं, जो कि सरकार के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने लॉकडाउन के बाद मजदूरों के पलायन पर प्रतिक्रिया दी। साथ ही, लॉकडाउन के बाद की स्थिति से निपटने के लिए उन्होंने कुछ सुझाव भी दिए।
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स्पष्टता ना होने से घबराए हैं प्रवासी- अभिजीत बनर्जी
अभिजीत बनर्जी ने कहा कि प्रवासी अपने गांव लौटने के लिए शहरों को छोड़ रहे हैं क्योंकि वे भयभीत हैं और यह नहीं जानते हैं कि ऐस वक्त में क्या गारंटी है जब देश में कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर लॉकडाउन है। उन्होंने कहा कि वे इस हताशा से हैरान नहीं हैं जो भारत में प्रवासियों ने अपने घर वापस जाने को लेकर दिखाया है, उनके पास जीवित रहने के लिए कुछ संसाधन हो सकते हैं।
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प्रवासियों को आश्वस्त करें सरकारें -नोबेल विजेता
उन्होंने कहा, 'आर्थिक दबाव साफ तौर पर है। गांव में उनके पास जमीन और अन्य संसाधन हो सकते हैं। इनमें से बहुत से लोग हैं जो पैसे घर भेजते हैं। कंस्ट्रक्शन साइट पर उन्हें रहने के लिए जगह दी जाती है और अब जब वे बंद हो गए हैं, तो मुझे नहीं पता कि वे कहां रहेंगे।' उन्होंने आगे कहा कि जमीनी स्तर पर नियम स्पष्ट नहीं हैं, जिससे प्रवासियों में डर का माहौल है। नोबेल विजेता ने कहा, 'मुझे लगता है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि राज्य, केंद्र संकेत दें कि यदि कामकाज बंद हैं तो उनकी देखभाल करना हमारा(सरकार) काम है। सरकारों की तरफ से प्रवासियों को संदेश इससे स्पष्ट दिया जा सकता था।' उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में पुलिस की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। पुलिस मिला-जुला संदेश भेज रही है, किराने की दुकाने खोलने पर लोगों की पिटाई कर रही है। यह आतंक फैलाने का समय नहीं है।'
अभिजीत बनर्जी ने और क्या सुझाव दिए
अभिजीत बनर्जी ने कहा कि ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रत्येक घर में एक शख्स को कोरोना वायरस के लक्षणों के बारे में सही जानकारी हो। इन मामलों के बारे में जानकारी देने के लिए कई माध्यम हों। ग्रामीण इलाकों में हेल्थ वर्कर्स को ट्रेनिंग दिया जा सकता है जिससे ये लक्षण पहचाकर सूचित करने का काम कर सकें। ये पता लगाया जाए कि कहां अधिक मामले आ रहे हैं और फिर वहां टीम को भेजा जाए। सोशल ट्रांसफर स्कीम में साहसिक होने की जरूरत है। वरना डिमांड क्राइसिस अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।