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पेड़ों को बचाने के लिए कर्नाटक में संयुक्त संरक्षण आंदोलन

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नई दिल्ली। राजस्थान के बाद कर्नाटक देश का सबसे सूखाग्रस्त राज्य है। राज्य के मध्य और उत्तर-पूर्वी हिस्से का बड़ा भू-भाग हिस्से अर्ध-शुष्क हैं। कुछ लोग जानते हैं कि कर्नाटक के कुल क्षेत्रफल के आधे से अधिक भाग में शुष्क या अर्ध शुष्क जलवायु है। 2018 में, राज्य के 176 तालुकों में से 156 को सूखा प्रभावित घोषित किया गया था। हैरान करने वाली बात है कि केवल 20 तालुकों में ही सामान्य बारिश हुई। कर्नाटक के पर्यावरण समूह जंगलों को बचाने के लिए एक साथ आ रहे हैं, ताकि लोगों को भविष्य में पानी की दिक्कत ना हो।

No trees No water Karnatakas Environmental Groups come together to save the forests

मलनाड या पश्चिमी घाट पहाड़ी श्रृंखला 65 नदियों को जन्म देती है, और ये पूरे कर्नाटक के पानी के टैंक के रूप में काम करती है। इन वनों से घिरी पहाड़ियों से निकलने वाली कुछ नदियां हैं- भद्रा, तुंगा, हेमवती, नेत्रावती, कावेरी, कुमारधारा, कलसा, भंडुरी और भीमा। कर्नाटक के कई कस्बों, शहरों और कृषि क्षेत्रों में लाखों लोग इन नदियों द्वारा पोषित होते आए हैं। यह सामान्य धारणा हैं कि इन पहाड़ियों के पेड़ों को हमारी अर्थव्यवस्था की स्थिरता और भावी पीढ़ियों के अस्तित्व के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए।

दुर्भाग्य से मलनाड खतरे में है। कई परियोजनाओं को देखते हुए करीब 21 लाख पेड़ों को काटना पड़ेगा जिसका भविष्य में बड़ा नुकसान दिखाई दे रहा है। ऐसी स्थिति में इन इलाकों में जीवन कितना सुरक्षित रहेगा, ये बड़ा सवाल है। नदियों का जलस्तर पहले से कम हुआ है और अगर इतने पेड़ काटे गए तो क्या पता आने वाले समय में ये नदियां सूख जाएं।

पेड़ नहीं तो पानी नहीं:

पेड़ और पानी के बीच गहरे रिश्तों को नीतियां बनाने वाले नहीं समझ पाते हैं। सरकार दर सरकारें, कई परियोजनाओं को लेकर आती रही है। जबकि पेड़ों की कटाई से पानी से स्रोत पर कितना गहरा प्रभाव पड़ा है। इन पेड़ों की कटाई पर ध्यान दिया जाना चाहिए और इसे रोकने के साथ ही जल स्रोत के साथ-साथ मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

संरक्षण का मतलब पेड़ों से ही नहीं जुड़ा है, ये मानव जीवन और सांस लेने के लिए सबसे जरूरी ऑक्सीजन का भी सवाल है। इस पर सही तरीके से बात नहीं हो रही है। विकास बनाम संरक्षण के बीच जल स्रोतों को बचाने की जरूरत है।

विकास बनाम संरक्षण

ऐसे में कुछ सवाल जरूरी हो जाते हैं- क्या केवल मेगा प्रोजेक्ट्स को विकास माना जाता है? स्थानीय, छोटे, स्थायी समाधानों की अनदेखी क्यों की जाती है? विकास के इस मेगा मॉडल से वास्तव में किसको लाभ मिलता है? क्या मेगा मॉडल टिकाऊ है? जब हम विभिन्न परियोजनाओं के लिए लाखों पेड़ काटते हैं, और जल स्रोत खत्म जाते हैं, तो हम क्या करते हैं? वास्तव में टिकाऊ विकास क्या है और हम इसे कैसे आगे बढ़ा रहे हैं? आज जरूरत इस बात की है कि हम लोगों के साथ-साथ और सरकार इस विकास को किस तरह देखती हैं।

यूनाइटेड कंजर्वेशन मूवमेंट

पूरे कर्नाटक के पर्यावरणविद एकजुट होकर एक मंच बनाने के लिए आगे आ रहे हैं, ताकि प्रदेश में पानी के भविष्य की रक्षा की जा सके। यूनाइटेड कंजर्वेशन मूवमेंट का एकमात्र उद्देश्य, पेड़ों और जल स्रोतों को इन बड़ी परियोजनाओं से बचाना है जो हमारे जल सुरक्षा को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। इसके अलावा, हम सरकार के साथ सहयोग करेंगे और सरकार को भविष्य के अनुकूल, विकास के अनुकूल लोगों को देखने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।

English summary
No trees No water Karnataka's Environmental Groups come together to save the forests
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