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'कोई बचाने नहीं आया, अफ़सोस है'

उत्तर प्रदेश के बाग़पत में चार मुसलमानों पर ट्रेन में हुए हमले की पुलिस जांच कर रही है.

By BBC News हिन्दी
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दिल्ली से हरिद्वार जाने वाली पैसेंजर ट्रेन में बुधवार को मुस्लिम समुदाय के चार लोगों से मारपीट की वारदात की पुलिस जांच कर रही है,.

पुलिस ने इस मामले में एफ़आईआर दर्ज की है.

पीड़ितों में से एक बाग़पत के एक गांव की मस्जिद में इमाम गुलज़ार राणा ने बीबीसी से अपनी आप बीती साझा की.

उन्होंने बताया, "हम पुरानी दिल्ली से ट्रेन में सवार हुए थे. हम चार लोग थे और एक साथ ही ऊपर वाली सीट पर बैठ गए थे. हमें अहेरा हॉल्ट पर उतरना था. स्टेशन आने तक हम ऊपर ही सीट पर बैठे रहे थे. हमने डिब्बे में किसी से कोई बात नहीं की थी."

गुलज़ार राणा के मुताबिक, "जब अहेरा स्टेशन आने वाला था तब हम सीट से उतरे और दरवाज़े के पास आ गए. एक लड़का आया और हमारे आगे खड़ा हो गया. हमें लगा कि शायद उसे उतरना हो. लेकिन जैसे ही स्टेशन आने वाला था उसने हमारी तरफ़ वाला दरवाज़ा बंद कर दिया और दूसरे दरवाज़े पर खड़े अपने साथी से कहा उसे भी बंद कर दे."

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ट्रेन
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टोपी लगाना बंद करो

वो बताते हैं, "इसके बाद उन्होंने हम पर हमला कर दिया. हमारी उनसे किसी तरह की बात नहीं हुई थी. उनके पास कोई नुकीला हथियार था जिससे उन्होंने हमला शुरू किया. हम कुछ समझ नहीं पाए. हम पूछते रहे कि हुआ क्या है लेकिन वो कुछ नहीं बोले. हमला करने से पहले उन्होंने एक भी शब्द नहीं बोला. लेकिन जब वो वार कर रहे थे तब उन्होंने कहा कि बहुत टोपी लगाकर चलते हो, हम सिखाएंगे तुम्हें टोपी लगाना. बहुत दादागिरी करते हो, हम निकालेंगे तुम्हारी दादागिरी."

उन्होंने दावा किया, "क़रीब चार पांच मिनट तक व हम पर वार करते रहे. अहेरा स्टेशन पर ट्रेन सिर्फ़ तीस सेकंड रुकती है. ट्रेन जब चली तब हम बहुत घबरा गए. हम समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हो रहा है और हमारे साथ क्या होगा. लेकिन ट्रेन के स्टेशन से क़रीब आधा किलोमीटर दूर निकल जाने पर उन्होंने चेन खींची और वो उतर कर भाग गए. हम आठ किलोमीटर दूर बाग़पत स्टेशन पर जाकर उतरे."

गुलज़ार कहते हैं, "वो छह सात हमलावर थे. सबकी उम्र तीस साल से कम ही होगी. उनकी ज़बान ऐसी है जैसे आसपास के गांव के लोग बोलते हैं. हमारी उनसे किसी भी तरह की कोई बात नहीं हुई थी. सबकुछ इतनी तेज़ी से हुआ कि हम कुछ समझ ही नहीं पाए. जब तक हम समझ पाते तब तक हम घायल हो चुके थे."

उन्होंने बताया, "मैं एक मस्जिद में इमाम हूं. मेरी अच्छी लंबी दाढ़ी है. टोपी लगाकर रहता हूं और गले में रूमाल भी रहता है. इस हमले से पहले मैंने कभी नहीं सोचा था कि इस तरह की घटना भी हो सकती है. हमले के बाद से मैं बहुत डरा हुआ हूं लेकिन मैं टोपी लगाना नहीं छोड़ूंगा. ये मेरी मज़हबी पहचान है और मैं इसी के साथ जिऊंगा."

मुसलमान
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मुसलमान

कोई बचाने नहीं आया

वो कहते हैं, "मुझे सबसे ज़्यादा अफ़सोस इस बात का है कि डब्बा लगभग भरा हुआ था लेकिन चार-पांच मिनट तक हमला होता रहा और कोई बीच में नहीं आया. किसी ने दख़ल नहीं दी. कुछ नहीं पूछा. हम चाहे जिस भी धर्म के हैं, जिस भी जात के हैं लेकिन हैं तो इंसान हीं. इंसान को पिटता हुआ देखकर बाक़ी इंसान बिलकुल ख़ामोश थे. मुझे बस डिब्बे में सवार लोगों की ख़ामोशी का अफ़सोस है."

गुलज़ार बताते हैं, "हम सबके धर्म बाद में हैं, सबसे पहला जो हमारा नाता है वो इंसानियत का नाता है. लेकिन कोई इंसान हमें बचाने नहीं आया."

उनके अनुसार, "बाग़पत पहुंचकर हमने अपने गांव में सूचना दी और सौ-डेढ़ सौ लोग स्टेशन पहुंच गए. हमने कोतवाली में शिकायत दी. पुलिस की अब तक की जांच से मैं संतुष्ट हूं. पुलिस ने हमारी पूरी बात सुनी और वो जो भी कर सकते थे किया."

वो कहते हैं, "अब तक जिस तरह से पुलिस ने जांच की है उससे मेरा भरोसा बढ़ा है और उम्मीद जगी है कि जिन्होंने हमला किया है वो पकड़े जाएंगे. अगर वो पकड़े गए और क़ानून ने अपना काम किया तो हमारे भीतर जो डर पैदा हुआ है वो भी ख़त्म हो जाएगा. "

उन्होंने कहा, "अगर कभी मेरी उन हमलावरों से बात हुई तो मैं उनसे यही कहूंगा कि अमन और चैन से रहना सीखो, ख़ुद भी जियो दूसरों को भी जीने दो."

क्या कहना है पुलिस का

बाग़पत के पुलिस अधीक्षक जय प्रकाश ने बीबीसी को बताया है कि पुलिस ने मुक़दमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है.

जयप्रकाश ने कहा, "अभी तक की जांच में हमले की पुष्टि हुई है. हमने मुक़दमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. पुलिस जल्द ही हमलावरों को पकड़ लेगी."

क्या हमले की वजह मज़हबी है इस पर जय प्रकाश कहते हैं, "अभी हम हमलावरों तक नहीं पहुंच सके हैं. शिकायतकर्ता ने ऐसी कोई बात नहीं कही है. हम घटना की हर पहलू से जांच कर रहे हैं और इसे बहुत गंभीरता से ले रहे हैं."

हमले का पहला मामला नहीं

पुलिस भले ही घटना को गंभीरता से लेने और सुरक्षा सुनिश्चित करने का दावा कर रही हो लेकिन ये इस तरह के हमले का पहला मामला नहीं है.

इसी साल जुलाई में दिल्ली से फ़रीदाबाद की ओर जा रही एक ट्रेन में जुनैद ख़ान नाम के 17 वर्षीय युवक की चाकू से हमले में मौत हो गई थी.

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