लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने सांसदों को यूं किया सुधर जाने के लिए आगाह
नई दिल्ली- लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने जब से अपना कार्यभार संभाला है, उन्होंने सदन की कार्यवाही के अच्छे से संचालन के लिए कई तरह के बदलाव किए हैं। उम्मीद के उलट वो जिस तरह से एक के बाद एक कदम उठा रहे हैं, उससे लगता है कि वह संचालन संबंधी दशकों से पैदा हुई थोड़ी-बहुत खामियों को पूरी तरह से पटरी पर लाने के पक्के इरादे के साथ आए हैं। धीरे-धीरे ये भी साफ होता जा रहा है कि लोकसभा के दूसरे कार्यकाल में ही प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने स्पीकर जैसी बड़ी जिम्मेदारी वाले पद के लिए उन्हें क्यों चुना है। अब उन्होंने लोकसभा सदस्यों से किसी बात के लिए सदन में सीधे उनके आसन तक पहुंचने से मना कर दिया है और इसके लिए नियम भी बदल दिए गए हैं।
सांसदों के आसन तक पहुंचने की मनाही
लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला सदन के संचालन में किसी तरह की बाधा नहीं चाहते, ये पहले दिन से ही साफ हो चुका है। इंडिया टुडे की खबरें के मुताबिक स्पीकर को अपनी जिम्मेदारी निभाने में किसी तरह की परेशानी न हो, इसके लिए अब उन्होंने यह निर्देश जारी किया है कि सदन का कोई भी सदस्य अपनी बात उन तक पहुंचाने या उनसे बात करने के लिए खुद उनके आसन (चेयर) तक नहीं आएगा। अगर कोई सदस्य उन तक कोई बात पहुंचाना चाहता है या किसी मुद्दे पर बात करना चाहता है, तो उसे असेंबली में मौजूद लोकसभा के स्टाफ के जरिए ही लिखित संदेश भेजना होगा।
मंत्री पर भी लागू होगा नया नियम
नए नियम के तहत अब मंत्री भी स्पीकर के आसन के पीछे नहीं जाएंगे और मार्शल के मार्फत स्पीकर तक कोई पर्ची पहुंचाने की कोशिश नहीं करेंगे। स्पीकर ओम बिड़ला ने नया निर्देश जारी करने से पहले सभी दलों की सहमति ले ली है। सदन की कार्यवाही के सुचारु तौर पर संचालन के लिए बनाए गए इस नए नियम से जाहिर है कि बिड़ला अपनी जिम्मेदारियों को लेकर बहुत ही ज्यादा संजीदा हैं और उसमें वो किसी भी तरह की बाधा नहीं चाहते।
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लोकसभा का बदल रहा है तौर-तरीका
ओम बिड़ला लोकसभा में जिस तरह के बदलाव कर रहे हैं, उससे लगता है कि जल्द ही लोकसभा के काम करने का तौर-तरीका पूरी तरह बदल जाएगा। उन्होंने अपने कार्यकाल के पहले ही हफ्ते 93 नए सांसदों को बोलने का मौका देकर एक रिकॉर्ड बनाया था। वे सदन के कामकाज में वे जिस तरह से शुद्ध हिंदी शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह भी पहलीबार और अपने आप में अनोखा है। कोई भी सदस्य चाहे सत्ता पक्ष का हो या विपक्ष का, अगर सदन की कार्यवाही में उसके चलते दिक्कत होती है, तो वे उन्हें टोकने से गुरेज नहीं करते। फिर चाहे वे कितने सीनियर ही क्यों न हों।
प्रश्नकाल में हो रहे हैं ज्यादा सवाल-जवाब
नए स्पीकर ने शून्यकाल और प्रश्नकाल में भी बहुत बड़ा बदलाव किया है। अब शून्यकाल में नए सांसदों को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया जाता है और इसके लिए लंच की टाइमिंग तक बढ़ा दी जाती है। प्रश्नकाल में भी वह सदस्यों और मंत्रियों से सवाल और जवाब छोटा और सटीक रखने के लिए बार-बार कहते हैं। इसका नतीजा ये हुआ है कि जहां पहले औसतन एक दिन में साढ़े चार तक सवाल-जवाब हो पाते थे, अब उनकी संख्या 8 तक पहुंच जा रही है। यानी इस तरह से लोकसभा में सवाल-जवाब का आउटकम लगभग दोगुना हो गया है। बड़ी बात ये है कि इसके लिए आसन से मंत्रियों को भी टोकते देखा जा रहा है।
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