लोकसभा चुनाव 2019: सरकार किसी की आए, ये होगी सबसे बड़ी चुनौती
जैसे-जैसे भारत आम चुनावों के अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी बीजेपी दूसरे कार्यकाल के लिए बहुमत मांग रही है, कुछ चिंताजनक ख़बरें भी आने लगी हैं.
जैसे-जैसे भारत आम चुनावों के अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी बीजेपी दूसरे कार्यकाल के लिए बहुमत मांग रही है, कुछ चिंताजनक ख़बरें भी आने लगी हैं.
ऐसा लगता है कि दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थवव्यवस्था मंदी की ओर जा रही है. और इसके संकेत चारों ओर हैं.
दिसम्बर के बाद के तीन महीनों में आर्थिक विकास दर 6.6% पर आ गई है, जो कि पिछली छह तिमाही में सबसे कम है.
कारों और एसयूवी की बिक्री सात साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है. ट्रैक्टर और दोपहिया वाहनों की बिक्री भी कम हुई है.
फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस अख़बार के अनुसार, बैंक और वित्तीय संस्थानों को छोड़कर 334 कंपनियों का कुल लाभ 18% नीचे आ गया है.
इतना ही नहीं, मार्च में दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले उड्डयन बाज़ार में पैसेंजर ग्रोथ पिछले छह सालों में सबसे कम रहा. बैंक क्रेडिट की मांग अस्थिर है.
उपभोक्ता सामान बनाने वाली भारत की अग्रणी कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर ने मार्च की तिमाही में अपने राजस्व में सिर्फ़ 7% की विकास दर दर्ज कराई, जो कि 18 महीने में सबसे कम है.
एक अख़बार ने हैरानी जताई है कि भारत कहीं 'उपभोक्ता आधारित बाज़ार की कहानी' में पिछड़ तो नहीं रहा.
हालात कहीं ज़्यादा ख़राब
ये सब शहरी और ग्रामीण आमदनी में कमी को दर्शाते हैं, मांग सिकुड़ रही है.
फसल की अच्छी पैदावार से खेतीबाड़ी में आमदनी गिरी है. बड़े ग़ैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों के दिवालिया होने से क्रेडिट में ठहराव आ गया है जिससे कर्ज़ देने में गिरवाट आई है.
कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर और विश्व बैंक के पूर्व मुख्य आर्थशास्त्री कौसिक बसु का मानना है कि ये मंदी उससे कहीं गंभीर है जितना वो शुरू में समझते थे.
उन्होंने बताया, "अब इस बात के पर्याप्त सबूत इस बिंदु पर पहुंच गए हैं जहां इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है."
उनका मानना है कि इसका एक बड़ा कारण 2016 में विवादित नोटबंदी भी है, जिसने किसानों पर उल्टा असर डाला.
नक़दी आधारित भारतीय अर्थव्यस्था में मौजूद 80% नोटों को प्रतिबंधित कर दिया गया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक सलाहकार के शब्दों में कहा जाए तो नोटबंदी एक मनमाना मौद्रिक झटका थी.
"ये सब 2017 के शुरुआत से ही सभी को दिखाई देने लगा था. उस समय विशेषज्ञों को ये महसूस नहीं हुआ कि इस झटके ने किसानों के कर्ज़ पर असर डाला और इसके कारण उन्हें लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ा और ये अभी भी जारी है और कृषि क्षेत्र में लगातार गिरावट आ रही है."
निर्यात पर सबसे अधिक चिंता
प्रोफ़ेसर बसु के अनुसार, निर्यात भी निराशाजनक रहा है.
वो कहते हैं, "पिछले पांच सालों में निर्यात में विकास की दर लगभग शून्य के पास रही है. भारत जैसी कम वेतन वाली अर्थव्यवस्था के लिए मौद्रिक नीति और माइक्रो इंसेंटिव का संतुलन इस सेक्टर के विकास के लिए ज़रूरी है. लेकिन अफसोस है कि बयानबाज़ी नीतियों में दिखाई नहीं दी."
वहीं प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार समिति के सदस्य राथिन रॉय मानते हैं कि भारत की उपभोक्ता आधारित अर्थव्यवस्था की रफ़्तार अब संतुलित हो रही है.
डॉ रॉय का मानना है कि भारत की तेज़ आर्थिक विकास दर में इस देश की ऊपर की 10 करोड़ आबादी की प्रमुख भूमिका है.
वो कहते हैं कि कार, दोपहिया वाहन, एयरकंडिशन आदि की बिक्री आर्थिक सम्पन्नता के संकेतक हैं.
घरेलू ज़रूरत के सामानों की ख़रीद के बाद अब इन अमीर भारतीयों का अब झुकाव विदेशी लक्ज़री को ख़रीदने की ओर हो गया है, जैसे कि विदेशी टूर, इटैलियन किचन आदि.
लेकिन अधिकांश भारतीय चाहते हैं कि उन्हें पोषणयुक्त भोजन, सस्ते कपड़े और घर मिले, स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधा हो. आर्थिक विकास दर के संकेतक वास्तव में ये होने चाहिए.
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मिडिल इनकम ट्रैप में भारत
डॉ रॉय कहते हैं, "बड़े पैमाने पर ऐसे उपभोग के लिए सिर्फ सब्सिडी और आर्थिक सहायता पर निर्भर नहीं रहा जा सकता. कम से कम आधी आबादी की आमदनी इतनी होनी चाहिए जिससे वो ये उपभोक्ता सामान सस्ती दरों पर ख़रीद सकें ताकि कल्याण के लिए सब्सिडी अधिकतम 50 करोड़ लोगों को दी जा सके."
जबतक भारत अगले दशकों में ऐसा नहीं कर पाता देश की विकास दर ठहराव का शिकार रहेगी.
डॉ रॉय कहते हैं, "भारतीय अर्थव्यवस्था 'मिडिल इनकम ट्रैप' में फंसती दिखाई दे रही है. यानी जब देश की तेज़ रफ़्तार विकास दर ठहराव का शिकार हो जाए और विकसित अर्थव्यवस्थाओं की बराबरी करना बंद कर दे. अर्थशास्त्री आर्डो हैनसन इस स्थिति को एक ऐसा जाल बताते हैं जिसमें आपकी लागत बढ़ती जाती है और आप प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाते हैं."
समस्या ये है कि जब आप एक बार मिडिल इनकम ट्रैप में फंस जाते हैं तो इससे निकलना मुश्किल हो जाता है.
विश्व बैंक के एक अध्ययन में पाया गया है कि 1960 में मिडिल इनकम वाले 101 देशों में केवल 13 देश ही 2008 तक हाई इनकम (अमरीका के मुकाबले प्रति व्यक्ति आमदनी) देशों में शामिल हो पाए.
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इन 13 देशों में केवल तीन देशों की आबादी ढाई करोड़ से अधिक है. भारत लोवर मिडिल इनकम अर्थव्यवस्था है और ऐसे समय में इस जाल में फंसना दुखदायी है.
रॉय कहते हैं कि मिडिल इनकम ट्रैप का मतलब है कि धनिकों पर टैक्स लगा कर ग़रीबों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं.
वो कहते हैं, "ब्राज़ील जैसा हमारा हाल होगा. दूसरी ओर अगर भारत वो सामान बनाए जो सभी भारतीय इस्तेमाल करना चाहते हैं और वो भी सस्ती दरों पर, तब समावेशी विकास दर मिडिल इनकम ट्रैप को रोक पाएगी. हम जापान जैसे हो जाएंगे."
अगली सरकार चाहे जिसकी हो, उसके सामने ये बड़ी चुनौती होगी.