प्रभु भी नहीं दे पाए बिहार की रेल परियोजनाओं को स्पीड
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) रेल मंत्री सुरेश प्रभु द्वारा पेश किए गए रेल बजट से बिहार की जनता सन्न है। बेशक, औसत बिहारी जितना रेलों में सफर उतना है, उतना शायद कोई नहीं करता। इसलिए उसे नई रेलों के शुरू होने से लेकर उसके प्रदेश में रेलवे की परियोजनाओं को लेकर गहरी दिलचस्प रहती है।
वरिष्ठ पत्रकार मृत्युंजय ने कहा कि बिहार के लोगों को रेल बजट से बहुत सी उम्मीदें धीं। इसके साथ ही उन्हें सुविधाओं की और अटकी पड़ी रेल परियोजनाओं के जल्द पूरा होने की आस भी थी। इसके साथ ही लालू प्रसाद का ड्रीम प्रोजेक्ट मधेपुरा विद्युत इंजन कारखाना अब तक शुरू नहीं हो पाया है। इस परियोजना को 2010 में ही पूरा हो जाना था। परियोजना के लिए 1,116 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जाना है, लेकिन अब तक एक-चौथाई भूमि का अधिग्रहण भी नहीं हो पाया है।
मधेपुरा से संबंध रखने वाले वरिष्ठ लेखक अरुण कुमार ने कहा कि रेल मंत्री को अपने बजट में बिहार में चल रही रेल परियोजनाओं को तुरंत लागू करने पर फैसला लेना चाहिए था।
परियोजनाएं अभी भी अटकी
बिहारी सिर्फ इस बात से ही निराश नहीं है कि नई रेलें उन्हें नहीं मिली, वे इसलिए भी निराश हैं क्यों कि रामविलास पासवान, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के कार्यकाल में शुरू हुई बिहार की कई रेल परियोजनाएं अभी भी अटकी पड़ी हैं। सुरेश प्रभु ने उको लेकर कोई साफ घोषणा भी नहीं की।
परियोजनाओं की घोषणा
बिहार के लोगों का आरोप रहा है कि जब उनके प्रदेश के रेल मंत्री थे, तब बिहार के लिए कई रेल परियोजनाओं की घोषणा की गई थी और कई महत्वपूर्ण रेलगाड़ियां भी मिलीं, लेकिन उसके बाद बिहार को रेल मंत्रालय से कोई बड़ी सौगात नहीं मिली है.
इसके अलावा वर्ष 2006 में छपरा के रेल पहिया संयंत्र को मंजूरी मिली थी, लेकिन अब तक इसका अता-पता नहीं है। 31 जुलाई, 2010 तक बनकर तैयार हो जाने वाले इस कारखाने में प्रतिवर्ष एक लाख पहिया बनाने का लक्ष्य रखा गया था।
मृत्युंजय ने कहा कि बिहटा-औरंगाबाद, मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी, सीतामढ़ी-जयनगर, सीतामाढ़ी-जयनगर-निर्मली, हाजीपुर-मोतीपुर, मधेपुरा-प्रतापगंज जैसी नई रेल लाइनों से संबंधित कई परियोजनाएं भी अटकी हुई हैं। अफसोस की कि इस बजट में भी इन परियोजनाएं पर कोई फैसला नहीं हुआ।