EDITOR'S PICK: अविश्वास प्रस्ताव के ये 7 चुनिंदा भाषण गंभीरता से सुने जाने चाहिए
नई दिल्ली। देश की संसद वो जगह है, जहां पर चर्चा और बहस का स्तर ऐसा होना चाहिए जो लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूती प्रदान करे। जो मुद्दे या विषय हमारे निर्वाचित जनप्रतिनिधि उठाएं, उनमें समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के उत्थान की बात हो। विकास की नई ऊंचाइयां छूने की नीतियों पर चर्चा हो तो गरीब से गरीब के मूलभूत अधिकारों की सुरक्षा की बात हो। सामाजिक ताने-बाने, सौहार्द को ना केवल बरकरार रखने बल्कि उसे बढ़ाने के प्रयासों पर भी चर्चा हो। लेकिन पिछले कुछ सालों में संसद का मतलब हंगामा हो गया है।
शुक्रवार को ये बड़ा सुखद अनुभव रहा कि कई हंगामेदार सत्रों के बाद मॉनसून सत्र की शुरुआत में ही अविश्वास प्रस्ताव के बहाने देश की जनता ने अपने जनप्रतिनिधियों को सुना। देश की जनता बिल्कुल ऐसा ही चाहती है कि उनके जनप्रतिनिधि उनके और देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की बात पर संसद में चर्चा करें, उस पर बहस करें और जो लोग सत्ता में हैं उनकी जवाबदेही सुनिश्चित करें। सत्ता में बैठे लोगों की भी उतनी ही जिम्मेदारी बनती है कि वो विपक्ष और अपनी पार्टी के जनप्रतिनिधियों की तरफ से उठाए गए जनहित और देशहित के मुद्दों को गंभीरता से लें और अगर इसमें कुछ चूक हुई है तो उसे ठीक करने की कोशिश करें। लेकिन संसद में ऐसी बहसें और चर्चा अब कम ही देखने को मिलती हैं। हंगामा-हंगामा और लगातार शोर-शराबे के बीच सत्र खत्म हो जाता है। अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के बहाने ही सही लोगों ने बहुत अर्से बाद अपने सांसदों को सार्थक चर्चा करते सुना। जनता उन्हें लगातार ऐसा करते हुए ही देखना चाहती है।
अविश्वास प्रस्ताव के दौरान दिए गए भाषणों की गुणवत्ता की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी इस दिन के दो बड़े स्वभाविक किरदार थे लेकिन दोनों के भाषणों में भी केवल चुनावी राजनीति की झलक दिखाई दी। राहुल गांधी ने बिना तथ्यों के सरकार पर आरोप लगाए तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने पारंपरिक चुनावी अंदाज में उनका जवाब दिया। 12 घंटे की पूरी इस बहस के बीच हमने सात ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुना जिनके भाषणों में ना केवल विषयों की पकड़ थी, बल्कि उन्होंने तथ्यों पर पूरी तैयारी की थी। इन नेताओं ने अपनी सहज और स्वभाविक शैली से अपने भाषणों को और भी प्रभावी बना दिया। इन नेताओं ने अपने भाषण में देश के सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक हालात पर जो तथ्य पेश किए, उन्हें गंभीरता से सुना जाना चाहिए।
1. मोहम्मद सलीम (सीपीआई-एम)
2. राममोहन नायडू (टीडीपी)
3. भगवंत मान (आप)
4. जयप्रकाश यादव (आरजेडी)
5. राकेश सिंह (भाजपा)
6. अनुप्रिया पटेल (अपना दल)
7. प्रेमसिंह चंदूमाजरा (अकाली दल)
इसे भी पढ़ें:- अविश्वास प्रस्ताव: बीजेपी ने राकेश सिंह को क्यों दिया पहला मौका?