दक्षिण एशियाई लोग आनुवंशिक रूप से गंभीर कोविड -19 के लिए अतिसंवेदनशील नहीं हैं :स्टडी
नई दिल्ली, 12 जून: वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दक्षिण एशियाई आबादी के बीच कोविड -19 परिणामों को निर्धारित करने में डीएनए की भूमिका का विश्लेषण किया है, जिससे पता चलता है यूरोपीय आबादी में कोविड-19 की गंभीरता के लिए प्रमुख आनुवंशिक जोखिम कारक दक्षिण एशियाई लोगों में बीमारी की संवेदनशीलता को नहीं बढ़ा सकता है। भारत और बांग्लादेश के आंकड़े का इस्तेमाल कर किये गये एक अध्ययन में यह बात सामने आई है।
इस अध्ययन में कहा गया था कि दक्षिण एशियाई लोगों में आनुवंशिक जोखिम कारक और कोविड की गंभीरता के बीच कोई संबंध नहीं है। यूरोपीय आबादी में कोविड-19 की गंभीरता के लिए प्रमुख आनुवंशिक जोखिम कारक दक्षिण एशियाई लोगों में बीमारी की संवेदनशीलता को नहीं बढ़ा सकता है।
बता
दें
कोरोना
के
शुरूआती
दौर
से
ये
रिसर्च
चल
रहा
है
कि
कुछ
लोगों
में
दूसरों
की
तुलना
में
कोविड-19
से
अधिक
गंभीर
लक्षण
और
प्रतिकूल
प्रभाव
क्यों
दिखाई
देते
है।
इससे
पहले
यूरोपीय
लोगों
के
डीएनए,
या
आनुवंशिक
कारणों
पर
शोध
हुआ
था
जो
कोविड-19
संक्रमण
की
गंभीरता
और
अस्पताल
में
भर्ती
होने
से
जुड़ा
है।
अध्ययन
ने
दक्षिण
एशियाई
आबादी
के
बीच
कोविड
-19
परिणामों
को
निर्धारित
करने
में
डीएनए
का
विश्लेषण
किया।
जर्नल
साइंटिफिक
रिपोर्ट्स
में
'द
मेजर
जेनेटिक
रिस्क
फैक्टर
फॉर
सीवियर
कोविड
-19'
शीर्षक
से
दक्षिण
एशियाई
आबादी
के
बीच
कोई
संबंध
नहीं
दिखाया
गया
है।"इस
शोध
में
कहा
गया
कि
दक्षिण
एशियाई
आबादी
की
अनूठी
अनुवांशिक
उत्पत्ति
को
दोहराता
है।
इस अध्ययन के पहले लेखक प्रजीवल प्रताप सिंह ने कहा दक्षिण एशियाई कोविड -19 रोगियों पर की गई जीनोम-वाइड एसोसिएशन स्टडी एशियाई उप-महाद्वीप में हमारे लिए समय की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि "इस अध्ययन में, हमने महामारी के दौरान तीन अलग-अलग समय पर दक्षिण एशियाई जीनोमिक डेटा के साथ संक्रमण और मामले की मृत्यु दर की तुलना की है। सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स के निदेशक और मुख्य वैज्ञानिक, सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के निदेशक डॉ थंगराज ने कहा, हमने विशेष रूप से भारत और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में आबादी पर ध्यान दिया है उनको लेकर ये अध्ययन किया है।
अध्ययन से यह भी पता चला है कि आनुवंशिक रूप, कोविड -19 परिणामों से संबंधित हैं, बांग्लादेश में जाति और आदिवासी आबादी के बीच काफी भिन्न हैं। अध्ययन के सह-लेखक प्रोफेसर जॉर्ज वैन ड्रिम ने कहा, "जनसंख्या अध्ययन के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों को बांग्लादेशी आबादी में जाति और आदिवासी आबादी में अंतर करके अपने निष्कर्षों की व्याख्या करने के लिए अधिक सतर्क रहना चाहिए।
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सीसीएमबी निदेशक डॉ विनय नंदीकुरी ने कहा बढ़ते आंकड़ों के साथ, यह बिल्कुल स्पष्ट होता जा रहा है कि आनुवांशिकी, प्रतिरक्षा और जीवनशैली सहित कई कारक हैं जो कोविड -19 की संवेदनशीलता के लिए योगदान कारक हैं। जनसंख्या अध्ययन में सीसीएमबी की विशेषज्ञता चल रहे कोविड -19 महामारी के इन विवरणों को समझने में उपयोगी साबित हो रही है। पहले यूरोपीय आबादी पर किए गए शोध ने एक विशिष्ट डीएनए खंड में भिन्नता का सुझाव दिया था जो गंभीर रूप से गंभीर कोविड -19 संक्रमण से जुड़ा था। अध्ययन में पाया गया कि यह डीएनए खंड 16 प्रतिशत यूरोपीय लोगों की तुलना में 50 प्रतिशत दक्षिण एशियाई लोगों में मौजूद था।