धारा-370 पर नीतीश के रवैये से राजद जैसा ना हो जदयू का हाल?
नई दिल्ली। धारा 370 के विरोध की वजह से नीतीश कुमार एनडीए में अलग- थलग पड़ते जा रहे हैं। एक समय बिहार में अल्पसंख्यक मुख्यमंत्री की वकालत करने वाली लोजपा ने भी अब केन्द्र के फैसले का समर्थन कर दिया है। लेकिन नीतीश कुमार ने बिहार में अपने राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए अलग स्टैंड लिया है। जदयू के सांसद ललन सिंह और रामनाथ ठाकुर लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी का पक्ष रख चुके हैं। हालांकि पार्टी की असल चिंता अल्पसंख्यक वोट बैंक से जुड़ी है। जदयू इन बातों पर पर्दा डालने के लिए 1996 के नेशनल एजेंडा ऑफ गवर्नेंस की बात कर रहा है जिसमें धारा 370 से छेड़छाड़ नहीं करने की बात कही गयी थी। लेकिन जदयू शायद ये भूल रहा है कि अब क्षेत्रीय राजनीति में भी राष्ट्रहित की अनदेखी नहीं की जी सकती।
कहीं राजद की तरह न हो जदयू का हाल
बालाकोट ने देश का नैरेटिव बदल दिया था। लोकसभा चुनाव के समय इस घटना ने लोगों के मन-मिजाज पर गहरा असर डाला था। लेकिन बिहार में जब राजद ने इसकी सत्यता पर सवाल उठा दिया तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी। क्षेत्रीय हित के साथ-साथ अब राष्ट्र हित भी अहम है। युवा वोटरों की बढ़ती भागीगारी के कारण अब बिहार वोटिंग पैटर्न बदल चुका है। जम्मू कश्मीर को देश के सभी नागरिकों के लिए सुलभ बनाना, एक ऐतिहासिक फैसला है। जो भाजपा के समर्थक नहीं हैं वे भी इस फैसले से खुश नजर आ रहे हैं। धारा 370 को हटाने के फैसले ने जनमानस को मोदी सरकार से जोड़ दिया है। यहां तक कि कई मुस्लिम संगठनों ने भी मोदी सरकार को इसके लिए शुक्रिया कहा है। इसका विरोध कर के नीतीश कुमार शायद रौंग नम्बर डायल करे रहे हैं। जिन अत्यंत पिछड़ी जातियों के भरोसे वे गेम खेलने के लिए तैयार बैठे हैं अगर उनके युवा वोटरों ने इरादा बदल दिया तो क्या होगा ? इस मामले में बिहार के नौजवान जाति, और समुदाय से ऊपर उठ कर जोश से लबरेज नजर आ रहे हैं। अगर उन्होंने क्रांतिकारी फैसले का समर्थन कर दिया तो जदयू के मंसूबे मिट्टी में मिल जाएंगे।
अलग-थलग पड़ रहे नीतीश
क्या धारा 370 को हटाने का समर्थन करने से बिहार के अल्पसंख्यक नाराज हो जाएंगे ? अगर जदयू को यह सवाल बेचैन कर रहा है तो फिर लोजपा क्यों मोदी सरकार के फैसले की तारीफ कर रही रही है। क्या उसको अल्पसंख्यक वोटों की जरूरत नहीं ? यकीनन लोजपा को भी इस तबके का वोट चाहिए। फरवरी 2005 में रामविलास पासवान ने बिहार में मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की शर्त रख दी थी जिसे लालू, नीतीश दोनों ने ठुकरा दिया था। रामविलास पासवान भी माइनोरिटी पोलिटिक्स के एक बिग प्लेयर हैं। उसकी पार्टी को अल्पसंख्यक वोट मिलते रहे हैं। फिर भी लोजपा ने धारा 370 को हटाने का समर्थन किया। वह इस लिए क्यों कि यह भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता से जुड़ा मसला है।
नीतीश की चिंता
अगर 370 को हटाने के समर्थन से अल्पसंख्यक वोट फिसलने का डर रहता तो मायावती जैसी नेता कभी भी ऐसा नहीं करतीं। वे तो उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं। फिर भी उन्होंने वक्त का तकाजा समझा। ऐसा लग रहा है कि अपनी धुन में मस्त नीतीश जनमानस का मन पढ़ नहीं पा रहे हैं। जदयू को इस बात की चिंता है कि जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा क्यों छीन लिया गया। अगर उन्होंने अभी समर्थन किया को फिर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई कैसे लड़ेंगे ? नीतीश चाहे जो सोचे, लेकिन देश के अधिसंख्यक लोग केन्द्र सरकार के इस फैसले से बेहद खुश हैं।