क्या मध्य प्रदेश के बाद अब बिहार में टूटेगी कांग्रेस? जदयू का ‘मिशन तीर’ शुरू !
नई दिल्ली। क्या सिंधिया की सुनामी से बिहार में भी कांग्रेस टूट-फूट कर बिखरने वाली है? बिहार कांग्रेस के कई नेताओं का मानना है कि राज्यसभा सीट के मुद्दे पर राजद का रवैया अपमानजनक है। चिरौरी के बाद भी कांग्रेस खाली हाथ रह गयी। दिल्ली दरबार की पैरवी भी काम न आयी। पार्टी की इस तौहीन से कई विधायक अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और नीतीश सरकार में मंत्री अशोक चौधरी ने कांग्रेस में टूट का दावा किया है। उनका कहना है कि कांग्रेस के कई नेता जदयू में आने की तैयारी कर रहे हैं। माना जा रहा है कि अशोक चौघरी के मार्फत जदयू का 'मिशन तीर’ शुरू हो गया है।
जदयू का 'मिशन तीर' शुरू !
अशोक चौधरी के मुताबिक, कांग्रेस के बहुसंख्यक नेता यह मानने लगे हैं कि वे राजद के साथ रह कर चुनाव नहीं जीत सकते। ऐसे नेता नीतीश की छत्रछाया में जाना चाहते हैं। राहुल-सोनिया राजद के अपमानजनक रवैये से वाकिफ हैं फिर भी खामोश हैं। इस खामोशी ने कांग्रेस नेताओं को सुरक्षित ठिकाना तलाशने के लिए मजबूर कर दिया है। पिछले कुछ समय से कांग्रेस विधायक दल के नेता सदानंद सिंह, विधायक संजय तिवारी, विधायक शकील अहमद खान, विधायक तौसीफ आलम, विधायक सुदर्शन कुमार नीतीश कुमार की सार्वजनिक रूप से तारीफ करते रहे हैं। जिस तरह से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राहुल और सोनिया गांधी को चुनौती देकर कांग्रेस छोड़ी है उससे बिहार के असंतुष्ट नेताओं को भी हौसला मिला है। उनका कहना है कि जब सिंधिया कांग्रेस छोड़ सकते हैं तो वे क्यों नहीं।
नीतीश ही सहारा
2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश, लालू और कांग्रेस में महाठबंधन हुआ था। उस समय लालू यादव कांग्रेस को 20-25 से अधिक सीट नहीं देना चाहते थे। सीट शेयरिंग की बैठक में लालू कांग्रेस को कोई भाव नहीं देते थे। उनकी राय थी कि राजद और जदयू को अधिकतम सीटों पर लड़ना चाहिए। लालू का तर्क था कि कमजोर कांग्रेस को अधिक सीट देने से महागठबंधन को नुकसान होगा। लालू के रवैये से कांग्रेस हताश थी। इस मुश्किल वक्त में नीतीश कुमार ने ही कांग्रेस को सहारा दिया था। नीतीश कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें देने के लिए अड़ गये। नीतीश के हस्तक्षेप के बाद ही लालू कांग्रेस को 41 सीटें देने पर राजी हुए थे। कांग्रेस 41 में से 27 सीटों पर जीतने में कामयाब रही। पिछले 20 साल में यह कांग्रेस की सबसे बड़ी जीत थी। नीतीश की वजह से ही चार सीटों वाली कांग्रेस 27 पर पहुंच गयी थी। उस समय से ही कांग्रेस के विधायकों में नीतीश कुमार के लिए एक विशेष सम्मान रहा है।
सवर्ण कांग्रेस विधायक नीतीश के करीब
2015 में कांग्रेस के जो विधायक जीते थे उनमें सवर्णों की तादाद अधिक थी। वे राजद की बजाय नीतीश के करीब थे। जब नीतीश ने 2017 में महागठबंधन छोड़ कर भाजपा के साथ सरकार बना ली तो कांग्रेस के ये नेता एक तरह से अनाथ हो गये। उनके लिए राजद के साथ रहना असहज हो गया। उनको चिंता सताने लगी कि क्या भविष्य में राजद के वोटर उनका समर्थन करेंगे ? ऐसे विधायक पिछले ढाई साल से पार्टी लाइन के खिलाफ जा कर काम करते रहे हैं लेकिन कांग्रेस उनके खिलाफ आज तक एक्शन नहीं ले सकी है। शीर्ष नेतृत्व विद्रोह के डर से जान कर भी अंजान बना हुआ है।
जब 14 विधायकों के टूटने की उड़ी थी खबर
जुलाई 2017 में नीतीश सरकार से दरकिनार होने के बाद कांग्रेस में निराशा थी। सितम्बर 2017 में अचानक इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया कि कांग्रेस के 27 में से 14 विधायक टूट कर जदयू में जाने वाले हैं। (इनमें वही विधायक शामिल थे जो आज नीतीश की तारीफ करते हैं।) उनको और चार विधायकों का इंतजार है ताकि दल बदल कानून से बचने के लिए दो तिहाई की शर्त पूरी हो जाए। बात दिल्ली तक पहुंची तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चिंता में पड़ गयी। उस समय अशोक चौधरी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे और विधायक दल के नेता सदानंद सिंह थे। सोनिया गांधी ने अशोक चौधरी और सदानंद सिंह को फौरन दिल्ली तलब किया। सोनिया ने दोनों को स्थिति से निबटने के लिए सख्त आदेश दिया। डैमेज कंट्रोल की कोशिश शुरू हुई। चार और विधायकों को असंतुष्ट खेमे में जाने से रोका गया। चूंकि बागी विधायकों की संख्या 18 नहीं हो पायी इसलिए कांग्रेस टूटने से बच गयी। लेकिन इसके चार महीने बाद ही फरवरी 2018 में अशोक चौधरी समेत चार विधानपार्षदों ने कांग्रेस छोड़ कर जदयू का दामन थाम लिया था।
अब विधायकी कुर्बान करने का समय
बिहार विधानसभा का चुनाव अक्टूबर-नवम्बर में संभावित है। कांग्रेस के कई विधायक मानते हैं कि अगर दो-चार महीने की विधायकी कुर्बान कर 2020 में जीत की गुंजाइश बनती है तो ऐसा किया जाना चाहिए। कांग्रेस के असंतुष्ट नेता इस बात से भी नाराज हैं कि समस्याओं से अवगत कराये जाने के बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। वे राजद के भरोसे ही बिहार में राजनीति करना चाहते हैं। उनकी इस सोच से लोकसभा चुनाव में पार्टी नुकसान उठा चुकी है। अगर राजद ने ईमानदारी से दोस्ती निभाई होती तो कांग्रेस एक नहीं बल्कि तीन सीटें जीत सकती थीं। चर्चा है कि कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं को साधने के लिए जदयू ने मंत्री अशोक चौधरी को मोर्चे पर लगाया है। वे कांग्रेस की राजनीति से वाकिफ भी हैं। अब अशोक चौधरी का दावा भी है कि मध्य प्रदेश की तरह बिहार में भी कांग्रेस टूटने वाली है।