दोस्त के दुश्मन से यारी, प्रशांत किशोर को पड़ेगी भारी, नीतीश करेंगे शंट
नई दिल्ली। प्रशांत किशोर यानी पीके जदयू के उपाध्यक्ष हैं। पार्टी में वे नीतीश के बाद नम्बर दो पर काबिज हैं। इसके बावजूद प्रशांत किशोर ने तृणमूल कांग्रेस का चुनावी रणनीतिकार बनना मंजूर कर लिया है। नीतीश एनडीए में हैं और ममता एनडीए के नेता नरेन्द्र मोदी की जानी दुश्मन हैं। यानी प्रशांत किशोर ने मोदी के दुश्मन नम्बर एक से हाथ मिला लिया है। अब नीतीश के सामने धर्मसंकट है कि वे प्रशांत किशोर का क्या करें ? अब माना जा रहा है कि नीतीश कुमार, प्रशांत किशोर की उपाध्यक्ष पद से छुट्टी कर सकते हैं। जदयू में नम्बर दो की हैसियत के बाद भी पीके पिछले कुछ समय से हाशिये पर पड़े थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू ने पीके को कोई जिम्मेदारी नहीं दी थी। अब मौका देख कर पीके अपनी वास्तविक दुनिया में लौट आये हैं। नरेन्द्र मोदी, नीतीश कुमार, जगन मोहन रेड्डी के बाद प्रशांत किशोर अब ममता बनर्जी को चुनाव जिताएंगे।
नीतीश के बाद दूसरे सबसे बड़े नेता थे प्रशांत किशोर
नीतीश कुमार ने 2015 में प्रशांत किशोर को अपना चुनावी रणनीतिकार बनाया था। इसके पहले पीके भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी के लिए कामयाब चुनवी रणनीति बना चुके थे। पीके ने नीतीश को भी जीत दिलायी। फिर तो पीके नीतीश की नाक का बाल हो गये। नीतीश पीके पर दिलोजान से मेहरबान हुए तो उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देते हुए अपना सलाहकार बना लिया। पीके का मन शासन में रमा नहीं तो वे पटना से गायब हो गये। यूपी, पंजाब में कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार बन गये। नीतीश ने प्रशांत किशोर को कुछ नहीं कहा। अक्टूबर 2018 में तो नीतीश ने सबको हैरान करते हुए प्रशांत किशोर को जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। जदयू के बड़े-बड़े नेता देखते रह गये और पीके नम्बर दो का ताज ले उड़े। वे एक महीना पहले ही वे जदयू का सदस्य बने थे और इतनी बड़ी पोजिशन हासिल कर ली थी। उस समय नीतीश ने कहा था कि पीके जदयू का भविष्य हैं। तब यह माना गया था कि नीतीश ने एक तरह से अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है।
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आसान नहीं थी पीके की राह
नीतीश ने प्रशांत किशोर को पार्टी में नम्बर दो तो बना दिया लेकिन जदयू के तपेतपाये नेताओं ने इनको नौसिखिया ही माना। कहा जाता है कि नीतीश ने पार्टी में मजबूत हो रहे कुछ नेताओं के पर कतरने के लिए ऐसा किया था। शुरू में उन्हें पार्टी की युवा इकाई को मजबूत करने की जिम्मेवारी दी गयी। पीके ने अपनी रणनीति से छात्र जदयू को पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव जिता दिया तो उनकी राजनीति पूछ और बढ़ गयी। यह देख कर पार्टी के पुराने नेता जलने लगे। एक चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर सियासी दांव पेंच से वाकिफ नहीं थे। पार्टी के वरिष्ठ नेता उनकी कमियां निकल कर नीतीश से शिकायत करने लगे। नीतीश शिकायतों को अनसुना कर पीके को काम आगे बढ़ाने के लिए हौसला देते रहे।
पीके जदयू में ऐसे हुए शंट
प्रशांत किशोर एक प्रोफेशनल थे। उन्हें घुमाफिरा कर बात करने की आदत नहीं थी। जो मन में आता वो बोल देते। यही आदत उनके लिए आफत बन गयी। 5 फरवरी 2019 को मुजफ्फरपुर में युवाओं का एक कार्यक्रम था। बातचीत के दौरान प्रशांत किशोर ने इस कार्यक्रम में कह दिया कि अगर मैं किसी को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनाने में मदद कर सकता हूं तो नौजवानों को मुखिया और विधायक बनाने में भी मदद कर सकता हूं। प्रशांत किशोर के इस बयान से राजनीति में हलचल मच गयी। जदयू के नेताओं ने इस बयान को नीतीश कुमार का अपमान बताया और प्रशांत किशोर पर टूट पड़े। नीतीश को गुमान था कि जनता उन्हें काम के बदले सत्ता का इनाम देती है। एक चुनावी रणनीतिकार उन्हें कैसे सीएम बना सकता है ? ये पहला मौका था जब नीतीश पीके से नाराज हुए। यहीं से दुरियां बननी शुरू हो गयीं।
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नीतीश के फैसले पर पीके ने उठाया था सवाल
मार्च 2019 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले प्रशांत किशोर ने एक और विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने एक इंटरव्यू में कह दिया कि 2017 में नीतीश को महागठबंधन छोड़ने के बाद नया जनादेश लेना चाहिए था। भाजपा से दोबारा गठबंधन कर सत्ता हासिल करना ठीक नहीं था। इस बयान के बाद नीतीश कुमार, प्रशांत किशोर से नाखुश हो गये। पहले से तल्खी चल ही रही थी। मौका देख कर जदयू के पुराने नेताओं ने आग में घी डाल दिया। उपाध्यक्ष के रूप में प्रशांत किशोर के कामकाज की समीक्षा होने लगी। उनको अपने काम पर ध्यान देने के लिए कहा गया। उनके अटपटे बयानों से पार्टी असहज होने लगी तो विरोध बढ़ने लगा।
2019 के चुनाव में हो गये थे दरकिनार
लोकसभा चुनाव के पहले प्रशांत किशोर के बयानों से जदयू असहज था। तब नीतीश ने भी उनसे दूरी बना ली। कहा जाता है कि जदयू के वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह को कट टू साइज के मकसद से पीके को पार्टी में अहमियत दी गयी थी। नीतीश को उनके बारे में कई शिकायतें मिली थीं। लेकिन कालचक्र ऐसा घूमा कि आरसीपी सिंह तो अपनी जगह पर कायम रहे उल्टे पीके ही पत्ते की तरह उड़ गये। नीतीश ने प्रशांत किशोर को चुनाव से जुड़ी कोई जिम्मेदारी नहीं दी। जब कि वे इसी काम के माहिर थे। सीट बंटवारे की जवाबदेही आरसीपी सिंह और ललन सिंह को मिली। भाजपा से बातचीत करने के लिए इन दोनों नेताओं को मोर्चे पर लगाया गया। जब नीतीश ने प्रशांत किशोर को चुनावी प्रबंधन से दरकिनार कर दिया तो उन्होंने ट्वीट के जरिये अपने दर्दे दिल का इजहार भी किया था। उन्होंने कहा था कि चुनावी प्रबंधन की जिम्मेवारी तो आरसीपी सिंह जी के मजबूत कंधों पर है, मेरी भूमिका तो सीखने और सहयोग की है। इसके बाद पीके राजनीतिक गतिविधियों से ओझल रहे। लोकसभा चुनाव में जदयू की शानदार जीत ने उनकी अहमियत और कम कर दी। वे नीतीश के लिए अप्रासंगिक होने लगे। तब प्रशांत किशोर भी राजनीति के जाल से निकलने के लिए छटपटाने लगे। जैसे ही मौका मिला पुराना चोला ओढ़ लिया।
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