अयोध्या विवाद: निर्मोही अखाड़ा ने कहा- 1934 से राम जन्मस्थान में मुस्लिम को प्रवेश की अनुमति नहीं थी
नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आज से नियमित सुनवाई शुरू कर दी है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के पक्षकारों में से एक निर्मोही आखाड़ा ने उच्चतम न्यायालय में दलील दी कि 1934 से ही किसी मुसलमान को राम जन्मस्थल में प्रवेश की अनुमति नहीं थी और उस पर सिर्फ निर्मोही आखाड़ा का नियंत्रण था। निर्मोही अखाड़े की ओर से बहस शुरू करते हुये वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील जैन ने यह ढांचा पूरी तरह से उसके अधिकार में ही है और वे इस क्षेत्र का प्रबंधन और इस पर अधिकार चाहते हैं।
अखाड़ा के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उनका वाद मूलत: वस्तुओं, मालिकाना हक और प्रबंधन अधिकारों के बारे में है। वकील ने कहा, मैं एक पंजीकृत निकाय हूं। मेरा वाद मूलत: वस्तुओं, मालिकाना हक और प्रबंधन के अधिकारों के संबंध में हैं। साथ ही उन्होंने अदालत को बताया कि सैकड़ों साल तक भीतरी परिसर और राम जन्मस्थान पर आखाड़ा का नियंत्रण था। वकील ने कोर्ट को बताया कि, भीतरी परिसर और राम जन्मस्थान सैकड़ों साल से हमारे अधिकार क्षेत्र में था। बाहरी परिसर जिसमें सीता रसोई, चबूतरा, भंडार गृह हैं, वे हमारे नियंत्रण में थे और किसी मामले में उनपर कोई विवाद नहीं था।
निर्मोही अखाड़े की ओर से पेश वकील सुशील जैन अपनी दलीलों में उन पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि, किसी ऐसी जगह को मस्जिद करार नहीं दिया जा सकता, अगर वहां पर नमाज नहीं पढ़ी जा रही हो। सुशील जैन ने दावा किया कि विवादित जमीन पर मुस्लिमों ने 1934 से पांचों वक्त नमाज पढ़ना बंद कर दिया था। 16 दिसंबर 1949 के बाद तो जुमे की नमाज पढ़ना भी बंद हो गया। 22-23 दिसंबर 1949 को वहां अंदर मूर्तियां रखी गई।
इस विवाद का मध्यस्थता के माध्यम से समाधान खोजने का प्रयास विफल होने के बाद संविधान पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैासले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर आज से सुनवाई शुरू की है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। वहीं सुनवाई शुरू करते हुए शीर्ष अदालत ने मामले की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग या सीधे प्रसारण की मांग वाली आरएसएस के पूर्व विचारक के एन गोविंदाचार्य की अर्जी खारिज कर दी थी।
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