निर्भया के माता-पिता ने की राष्ट्रपति से अपील, खारिज की जाए दोषी की दया याचिका
नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में सात साल पहले हुए निर्भया गैंगरेप और हत्या के मामले में दोषियों में से एक विनय शर्मा की दया याचिका को गृह मंत्रालय ने राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दिया है। ये याचिका दिल्ली सरकार से खारिज होने के बाद गृह मंत्रालय को भेजी गई थी। वहीं, निर्भया के माता-पिता ने दोषी विनय शर्मा की दया याचिका को खारिज करने की राष्ट्रपति से अपील की है।
निर्भया के माता-पिता ने याचिका खारिज करने की मांग की
निर्भया के माता-पिता ने राष्ट्रपति कार्यालय को लिखे पत्र में कहा है कि यह दया याचिका मौत की सजा से बचने और न्याय की प्रक्रिया में बाधा डालने के लिए जानबूझकर की जाने वाली कोशिश है, इसका हवाला देते हुए उन्होंने दया याचिका को खारिज करने की अपील की है। वहीं, मंत्रालय की तरफ से भी इस दया याचिका को खारिज करने की सिफारिश की गई है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी राष्ट्रपति से दया याचिका को खारिज करने की अपील कर चुके हैं। राष्ट्रपति को फांसी की सजा को माफ करने का अधिकार है। राष्ट्रपति ही याचिका पर आखिरी फैसला करेंगे।
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राष्ट्रपति के पास MHA ने भेजी याचिका
हैदराबाद के आरोपियों के एनकाउंटर के बाद निर्भया की मां का कहना है कि पिछले सात सालों से वह 2012 में ही खड़ी हैं और अभी तक उनकी बेटी के साथ राक्षसों सा सुलूक करने वाले दरिंदे जिंदा हैं। निर्भया गैंगरेप में शामिल आरोपियों को पकड़ने में छह दिन का समय लगा था। जनवरी 2013 में तत्कालीन चीफ जस्टिस ने फास्ट ट्रैक कोर्ट का उद्घाटन किया था। 3 जनवरी 2013 को पुलिस की तरफ से इस केस में पहली चार्जशीट फाइल की गई। फास्ट ट्रैक कोर्ट में 17 जनवरी से इस केस की सुनवाई शुरू हुई।
सीएम केजरीवाल ने भी याचिका खारिज करने की अपील की
छह माह के अंदर एक अभियुक्त को केस में नाबालिग घोषित कर दिया गया। 31 अगस्त 2013 को निर्भया के केस में आरोपी कोर्ट में दोषी साबित हुए थे। उस समय नाबालिग आरोपी को तीन साल के लिए सुधार गृह भेज दिया गया था। फास्ट ट्रैक कोर्ट को अपना फैसला सुनाने में नौ महीने का वक्त लग गया था। चारों आरोपियों को दोषी मानकर उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी। वहीं, एक आरोपी ने ट्रायल के दौरान ही तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी।
दोषी विनय शर्मा ने दया याचिका दी है
छह माह के बाद यानी तीन मार्च 2014 को दिल्ली हाई कोर्ट ने फास्ट ट्रैक कोर्ट का फैसला मानते हुए आरोपियों की मौत की सजा को बरकरार रखा। इसके बाद केस सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और अप्रैल 2016 से इस केस में फास्ट ट्रैक मोड में केस की सुनवाई शुरू हुई। मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने भी चारों आरोपियों की मौत की सजा को बरकरार रखा। जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने रिव्यू पीटीशन को भी खारिज कर दिया।