कोरोनिल के ट्रायल पर पलटे बीएस तोमर, बोले- 'मैं नहीं जानता रामदेव ने दवा कैसे बनाई, वही जानें'
नई दिल्ली। बाबा रामदेव की योगपीठ पतंजलि द्वारा बनाए गए कोरोना वायरस की दवा 'कोरोनिल' को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है। केंद्रीय आयुष मंत्रालय द्वारा विज्ञापन पर रोक के बाद अब निम्स के चेयरमैन बीएस तोमर के बयान ने बाबा रामदेव की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पतंजलि के साथ कोरोना की दवा का क्लीनिकल ट्रायल करने वाले निम्स विश्वविद्यालय के मालिक और चेयरमैन बीएस तोमर ने भी अब अपने बयान से पलट गए हैं। बीएस तोमर ने गुरुवार को साफ शब्दों में कहा कि उनके अस्पतालों में कोरोना की दवा का कोई क्लिनिकल ट्रायल नहीं हुआ है।
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बीएस तोमर ने कोरोनिल ट्रायल पर दिया बड़ा बयान
बता दें कि बीएस तोमर का यह बयान उनके खिलाफ राजस्थान की राजधानी जयपुर में केस दर्ज होने के बाद आया है। जयपुर के गांधी नगर थाने में बाबा रामदेव के खिलाफ भी परिवाद दायर किया गया है। बीएस तोमर ने अब बाबा रामदेव के बयान पर ही सवाल खड़ा कर दिया है, उन्होंने कहा कि मैं नहीं जानता योग गुरु रामदेव ने किस आधार पर 'कोरोनिल' को कोरोना का 100 फीसदी तोड़ बताया है, हमने तो इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में अश्वगंधा, गिलोय और तुलसी दिया था।
रामदेव ने दवा कैसे बनाई है वह वही जानें: बीएस तोमर
'कोरोनिल' को लेकर शुरू हुए विवाद से खुद को अलग करते हुए गुरुवार को बीएस तोमर ने कहा, 'हमारी फाइंडिंग अभी 2 दिन पहले ही आई थी लेकिन योग गुरु रामदेव ने दवा कैसे बनाई है वह वही बता सकते हैं, मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता हूं।' हैरानी की बात यह है कि निम्स यूनिवर्सिटी की ओर से सीटीआरआई से औषधियों के ईम्यूनिटी टेस्टिंग 20 मई को अनुमति ली गई और 23 मई से ही इसका ट्रायल शुरू कर दिया गया। इसके ठीक एक महीने बाद यानी 23 जून को बाबा रामदेव ने दवा लॉन्च कर दुनिया को भी हैरान कर दिया।
आयुष मंत्रालय ने दी पतंजलि को चेतावनी
बता दें कि बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद की 'दिव्य कोरोना किट' के विज्ञापन पर आयुष मंत्रालय ने रोक लगा दी है। साथ ही मंत्रालय ने पतंजलि को चेतावनी दी है कि ठोस वैज्ञानिक सबूतों के बिना कोरोना के इलाज का दावे के साथ दवा का प्रचार-प्रचार किया गया तो उसे ड्रग एंड रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) कानून के तहत संज्ञेय अपराध माना जाएगा। मंत्रालय ने पूछा है कि उस अस्पताल और साइट के बारे में भी बताएं, जहां इसकी रिसर्च हुई। मंत्रालय ने दवा के रिसर्च से जुड़े प्रोटोकॉल, सैंपल साइज, इंस्टीट्यूशनल एथिक्स कमेटी क्लियरेंस, सीटीआरआई रजिस्ट्रेशन और रिसर्च का रिजल्ट डेटा मांगा है। दावों का सत्यापन होने तक विज्ञापन पर रोक रहेगी।
आचार्य बालकृष्ण ने दी सफाई
गुरुवार को मीडिया से बात करते हुए आचार्य बालकृष्ण ने कहा, हमने कोरोनिल के निर्माण में सभी प्रक्रियाओं का पालन किया है। इस दवा में इस्तेमाल किए गए कपाउंड के आधार पर हमने लाइसेंस के लिए आवेदन दिया। क्लीनिकल ट्रायल के नतीजों को भी हमने लोगों के सामने रखा है। उन्होंने आगे कहा कि हमने लाइसेंस प्राप्त करते समय कुछ भी गलत नहीं किया है। हमने दवा (कोरोनिल) का विज्ञापन नहीं किया, हमने बस लोगों को दवा के प्रभावों के बारे में बताने की कोशिश की है।
हल्के लक्षण वाले मरीजों पर किया गया ट्रायल
प्राप्त जानकारी के मुताबिक पतंजलि की दवा कोरोनिल का ट्रायल कोरोना के गंभीर मरीजों पर नहीं किया गया था। जब हल्के लक्षण वाले सिंपटोमैटिक मरीजों में बुखार था तो उनपर यह ट्रायल किया गया, उनकी देखरेख एलोपैथिक दवा पर की गई। यह ट्रायल सिर्फ एसिंपटोमैटिक और हल्के सिंप्टोमैटिक मरीजों पर किया गया। गंभीर रूप से बीमार मरीज, जिन्हें सांस लेने में काफी दिक्कत हो रही थी, उनपर यह ट्रायल नहीं किया गया है। निम्स जयपुर के प्रिंसिपल डॉक्टर गणपत देवपुरा ने कहा कि इन ट्रायल के आधार पर जो अध्ययन किया गया है उन्हें अन्य संस्थाओं ने मॉनिटर नहीं किया है।
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