मानवाधिकार आयोग का निर्देश, DU प्रोफेसर सहित 13 एक्टिविस्ट को 1-1 लाख रुपए मुआवजा दे बघेल सरकार
नई दिल्ली। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने छत्तीसगढ़ सरकार को 13 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, विधिवेत्ताओं और शिक्षाविदों को 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। एनएचआरसी ने यह निर्देश साल 2016 में दो अलग-अलग मामले में इन 13 कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज केसों की सुनवाई के दौरान दिया है। आयोग ने मुआवजे की राशि उपलब्ध कराने के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को छह सप्ताह का समय दिया है।
दरअसल, मामला अक्टूबर 2016 तक है ,जब छत्तीसगढ़ पुलिस ने सुकमा, बस्तर में आर्म्स एक्ट के तहत आईपीसी की विभिन्न धाराओं और छह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ आईपीए और यूएपीए के तहत सात कानूनी की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने एफआईआर दर्ज की थी। बाद में, 15 नवंबर 2018 को, सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन भाजपा सरकार को आदेश दिया कि वह कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार न करे और एसआईटी गठित करके मामले की जांच करे। लेकिन 2018 में नई सरकार बनने तक कोई जांच नहीं हुई और फरवरी 2019 में एफआईआर वापस ले ली गई।
कार्यकर्ताओं में से मुख्य दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर व अर्चना प्रसाद के साथ विनीत तिवारी, संजय पराते, मंजू कवासी व मंगलराम कर्मा के खिलाफ हत्या, शस्त्र अधिनियम व जनसुरक्षा कानून की विभिन्न धाराओं में मामलों दर्ज किया गया था। इसके बाद दिल्ली के पटपड़गंज के निवासी डॉ वी सुरेश ने इस मामले के संबंध में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से संपर्क किया। आयोग ने इस साल 2 फरवरी को कार्यकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया और जुलाई में मुआवजे का आदेश दिया। कार्यकर्ताओं ने मुआवजे के आदेश पर आश्चर्य व्यक्त किया है, लेकिन अब विवादास्पद पूर्व बस्तर आईजी एसआरपी कल्लूरी के खिलाफ 'झूठे मामले' के लिए कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
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